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ज्योतिष

सांई और भक्त सम्बन्ध

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Dinesh Gupta

दिनेश कुमार गुप्त मुख्य ट्रस्टी श्री सांई ज्ञान आश्रम मो. 0 9971795716, 0120-4563404

श्री सांई अपने भक्त से कब और कैसे सम्बन्ध बना लें, यह वही जानते हैं। इतना निश्चित है कि भक्त के भाव को जानकर ही सांई उस पर कृपा करते हैं तथा उसे यह अहसास दिला देते हैं कि तेरे भावों को मैं अच्छी प्रकार जानता हूँ। (jyotish hindi news, ) परिणाम स्वरूप भक्त को यह आभास होने लगता है कि प्रभु सांई का साया उस पर अपना अस्तित्व बना रहा है। अन्तत: एक ऐसा तालमेल प्रारम्भ होता है जिसमें बाबा भक्त के भावों को उच्च कोटि में परिवर्तित कर देते हैं और भक्त बाबा के भावों को जानने लगता है। भक्त चाहता है कि वह बाबा की रुचि का अनुसरण करे और बाबा तद्नरूप उसे उसी क्रिया में लगा देते हैं। उसकी भक्ति की तरंगें बाबा की रुचि को पल में ग्रहण कर लेती हैं और क्रियान्वित हो जाती हैं।

जो भक्त किसी बात की चाह नहीं रखते, सांई का ही चिन्तन मनन करते रहते हैं तथा शांत चित्त से सर्वत्र उनको ही देखते हैं, ऐसे भक्तों के पीछे बाबा सदैव विचरण करते रहते हैं। जिनके रग-रग में सांई समा गये हैं और जो उनके बिना स्वयं को आधा-अधूरा महसूस करते हैं, उनके ही हृदय में बाबा वास करते हैं। वे कहते हैं कि मैं उनके पीछे इसलिए फिरता रहता हूँ ताकि उनकी चरण धूलि से स्वयं को पवित्र करता रहूँ क्योंकि वे मेरा कार्य करके मुझपर उपकार करते हैं। वास्तव में वे मेरा नहीं अपितु मेरे प्रभु का कार्य करते हैं, इसीलिए मैं उनका आभारी हूँ। ऐसे महान विचार हैं सांई के अपने भक्तों के सम्बन्धों के प्रति।

अनन्य भक्त सालोक्य (एक प्रकार की मुक्ति), सामीप्य अर्थात निकटता, सारूप्य अर्थात एकरूपता तथा सायुज्य अर्थात एक में मिल जाना जैसी मुक्ति प्रदान करने की युक्तियाँ कदापि नहीं खोजते। इसी कारण वे काल से नाष होने वाली अन्यान्य वस्तुओं की परवाह भी नहीं करते। यह तभी सम्भव है जब भक्त का तार सीधा बाबा के तार से जुड़ा हो तथा जिन्होंने अपना चिश्र बाबा को समर्पित कर दिया हो। ऐसा करने पर भक्त केवल बाबा की सेवा में ही पूर्ण रूप से आनन्द प्राप्त करते हैं एवं उनकी सेवा को छोड़कर उन्हें अन्य किसी भी क्रिया कलापों में रुचि नहीं रहती। ऐसी स्थिति में वे मोक्ष की चाह भी नहीं रखते। यही भक्त के भावों का दिग्दर्शन है जिसे प्रभु सांई लोकहित व लोकशिक्षा हेतु भक्ति और भक्त के महत्व को समझाना चाहते हैं। भक्त के भाव ही भक्ति की प्रधानता का स्तर माने गयें हैं, किन्तु भक्ति भाव का दिखावा या आडम्बर बाबा को आकर्षित करने में असफल ही सिद्ध हुआ है। जैसे-जैसे बाबा से सामीप्य बढ़ता जाता है वैसे-वैसे सम्बन्धों की निकटता गूढ़ होने लगती है। सांई मिलन की चाह तथा सांसारिक भोगों व सुविधाओं का त्याग भक्त को सांई के अत्यन्त निकट ले जाता है। बाबा राणा और भक्त चेतक की भाँति कार्य करते हैं। भाव तथा भक्ति का प्रवाह विद्युतीय तरंगों से भी तीव्र होता है। भक्ति के इस आनन्द की कोई चरम सीमा नहीं है। यह वर्णन से परे है तथा वाणी भी इसका बखान करने में स्वयं को मूक ही पाती है। यह तो भक्त और प्रभु सांई भी नहीं जानते कि इस सम्बन्ध को किस नाम से सम्बोधित करें? बाबा के अनन्य भक्तों की संगत से हम परम पवित्र हो सकते हैं तथा उनके उत्तम गुणों को ग्रहण कर सकते हैं क्योंकि बाबा के भक्त और बाबा दो स्वरूपों में एक ही परम वस्तु हैं। उनके एक स्वरूप में लीला है और दूसरे में आत्मीयता। यही पावन सम्बन्ध है। सांई बाबा बड़ी सहजता से कहते थे कि ईश्वर सब में है और किसी में नहीं है, सब ईश्वर में हैं और कोई ईश्वर में नहीं है। ये वैसे तो पारस्परिक विरोधी सम्बन्ध प्रतीत होता है परन्तु इसका सकारात्मक दृष्टिकोण बिलकुल भिन्न है। यही वचन भक्त और भगवान के सम्बन्ध के प्रतीक हैं। ‘ईश्वर सब में है और किसी में नहीं, का तात्पर्य है कि ईश्वर सब में है अन्य किसी में नहीं (यहाँ ‘और, शब्द को ‘अन्य, शब्द के स्थान पर प्रयोग किया गया है)। उसी प्रकार ‘सब ईश्वर में हैं और कोई ईश्वर में नहीं है, से तात्पर्य है कि जब सबकुछ ही ईश्वर में है तो ‘और, अर्थात ‘अन्य, अर्थात रहा ही क्या? जब हम ऐसे सम्बन्ध की व्याख्या करते हैं तो हमारे लिए उसे शब्दों में बाँधना अत्यन्त कठिन हो जाता है। ऐसे वचनों के मंथन से ही भक्त बाबा के सान्निध्य को सराह सकते हैं तथा उनकी सर्वव्यापकता को जान सकते हैं। बात घूम कर वहीं आती है कि भक्तों की भावना सांई के वचनों को सकारात्मक नज़रिये से देखती है अथवा सांसारिकता की उलझनों में उलझ कर रह जाती है।

एक बात तो सत्य है कि जिनका भी सांई से सम्बन्ध बनता है वह न केवल उनके होकर रह जाते हैं अपितु आनन्दमयी सांई के आनन्द से आनन्दित भी होते रहते हैं। जब हम आये थे तो रोते आये थे। आज बाबा से सम्बन्ध बना तो हमारा दुखड़ा प्रसन्नता में परिवर्तित हो गया। यह भी एक प्रकार का भाव है तथा भक्तों के अहसास पर निर्भर करता है। कुछ भक्त सदैव बाबा से अपना दुखड़ा ही रोते रहते हैं तथा स्वयं को उनका सर्वोत्तम भक्त होने का प्रमाण देने का प्रयास करते रहते हैं। यदि वे जऱा सा हटकर बाबा के सकारात्मक भावों को जानने का प्रयास करें तो उन्हें बाबा से अपने सम्बन्ध की सत्यता ज्ञात हो सकती है।

सांई का सम्बन्ध अटूट है। भक्तों की भक्ति की प्रबलता इसमें दरार तक नहीं आने देती। अब यह भक्तों पर निर्भर करता है कि वे बाबा से अपने सम्बन्ध को कितना दीर्घ और गूढ़ बना पाते हैं क्योंकि बाबा भी अपने भक्तों की समय-समय पर परख करते रहते हैं। जब बाबा से गहरा और अटूट नाता बन जाता है तब ऐसा प्रतीत होने लगता है कि बाबा तो बस मेरे ही हैं, मेरे सिवाय वे किसी और के नहीं ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार माता-पिता सिर्फ मेरे हैं और मैं उनकी इकलौती संतान हूँ। सच्चे भक्त इस भावना से भी ऊँचा सोचते हैं। वे स्वयं को बाबा का भक्त तो मानते हैं, साथ-साथ यह भी मानते हैं कि वे शरीर न होकर उसी दिव्य परमात्म का रूप हैं जिसके रूप में समस्त जीव इस संसार में जीवन भोग रहे हैं। उनका बाबा से सम्बन्ध गत जन्मों के शुभ कर्मों का फल है। वे बाबा का साथ जन्म जन्मान्तरों तक चाहते हैं। वे भक्त और भी निराले हैं जिन्हें किसी चीज की लालसा नहीं है, किसी की चिन्ता नहीं है और किसी प्रकार का भय नहीं है। वे तो सांई के रूप से मोहित हैं जो निराकार है, निर्विकार है तथा अवर्णनीय है। उनकी चाह तो मात्र उसी रूप में एकाकार होने की है। उस अटूट नाते से जुड़े रहने की है जिसे उन्होंने इस जन्म में प्रभु सांई से प्राप्त किया है। शिरडी में बाबा की परम भक्ति का अनूठा उदाहरण भागोजी शिंदे थे जो कोढ़ के रोग से पीडि़त थे, फिर भी बाबा ने उन्हें अपने निकट रखा। वे नित्य उनकी सेवा प्राप्त करते थे तथा स्वयं भी उनकी सेवा करते थे। यह भागोजी शिंदे के पूर्व जन्मों का संस्कार था जिन्हें बाबा ने अपनी भक्ति का पूर्ण अवसर प्रदान किया क्योंकि बाबा उनके मन में बसी भक्ति की भावना को जानते थे। नि:स्वार्थ थे भागोजी जो कभी मस्जिद से बाहर नहीं जाते थे तथा सदैव साये की भाँति बाबा के पीछे-पीछे रहते थे। सांई ही उनकी आत्मा थे जबकि बाबा कहते थे कि शिंदे ही मेरी आत्मा है। यही भक्त और भक्ति के एकाकार होने का सजीव उदाहरण है।

ज्योतिष

मंगलवार से शुरु होगा पितृपक्ष

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जबलपुर। श्राद्धपक्ष की शुरूआत आज मंगलवार से हो रही है। इस बार श्राद्ध पक्ष १६ दिन के ही हैं। आज से १६ दिन तक पितृपक्ष चलेंगे। सनातन परम्परा के अनुसार पितरों को पानी देने वाले श्रावक स्नान दान पूर्णिमा की सुबह-सुबह नर्मदा तट पर पहुंचेगे और अपने पितरों का आह्वान करेंगे। पितृपक्ष के इन दिनों में प्रतिदिन नर्मदा के पावन तट पर पितरों को जल अर्पण करने, पिण्डदान करने का सिलसिला जारी रहेगा। पितृपक्ष में सभी शुभ कार्य बन्द कर दिये जाते हैं। पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों के श्राद्ध-कर्म में ब्राम्हण-भोज, तर्पण और पिण्डदान की क्रियाएं की जाती हैं। इन दिनों में शादी विवाह, भवन-भूमि या वाहन खरीदी के साथ-साथ कपड़े, सोना-चांदी भी नहीं खरीदा जाता है। नर्मदा तटों के अलावा घरों में भी पितरों का तर्पण किया जाता है। नियत तिथि पर श्राद्ध करने की विधि निश्चित है। जिन जातकों को अपने पितरों के मृत्यु की तारीख ज्ञात नहीं होती, वे पितृमोक्ष अमावस्या के दिन तर्पण कर सकते हैं। आज श्राद्ध पूर्णिमा पर पहले तर्पण के साथ पितृपक्ष आरंभ होगा। पिण्डदान, तर्पण का सिलसिला शुरु होगा। ऐसी मान्यता है कि आश्विन मास के पहले पखवाड़े में दिवंगत पूर्वज मृत्यु-लोक में अपनी संतानोंं की कुशलक्षेम जानने आते हैं। कृतज्ञ संतानें अपने इन पूर्वजों को कुश की विशेष अंगूठी धारण कर पूरे पखवाड़े जल से तर्पण देते हैं। इसके साथ ही दिवंगत पूर्वजों की मृत्यु तिथि पर पिण्डदान करने के अलावा बाह्मण भोजन और एक अंश भोजन गाय व कौओं को भी अर्पित करते हैं।

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राशिफल

आज का राशिफल (19/06/2021)

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शुभ संवत 2078, शाके 1943, सौम्य गोष्ठ, ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष, ग्रीष्म ऋतु, गुरु उदय पूर्वे शुक्रोदय पश्चिमें तिथि दसवीं, रविवासरे, चित्रा नक्षत्रे, वलयोगे, गणकरणे, तुला की चंद्रमा, भद्रा 12/23 रात्रि तक श्री गंगा दशहरा, वृक्षारोपण, नवान्त पद विद्यारंभ व्यापार मुर्हूत रवियोग तथापि पश्चिम दिशा की यात्रा शुभ होगी।

आज जन्म लिए बालक का फल…..
आज जन्म लिया बालक दार्शनिक, बुद्धिमान, चपल, चतुर, चंचल, वाक पटु तथा नीत निपुण, शिक्षक, लेक्चरार, अधिवक्ता, नेता-अभिनेता, कुशल वक्ता-अधिवक्ता, विधायक, राज्य मंत्री, मुख्यमंत्री होगा।

मेष राशि :- हर्ष, यात्रा, सुख-सफलता, हानि, गृह-कलह, मानसिक अशांतिकारक हो ।
वृष राशि – विरोध, व्यय, कष्ट, अशांति, लाभ होगा, शिक्षा-लेखन कार्य में सफलता मिले।
मिथुन राशि :- व्यापार में क्षति, यात्रा, विवाद, उद्योग-व्यापार की स्थिति में कमी, हानि होगी।
कर्क राशि – शरीरादि मध्यम, भूमि व राजलाभ, असफलता का दिन सबित होगा।
सिंह राशि – वाहन आदि भय, कष्ट, राजसुख, यात्रा होगी, शुभ कार्य में व्यावधान होगा।
कन्या राशि – व्यय, प्रवास, विरोध, भूमि लाभ होगा, राजकार्य में व्यावधान, लाभ होगा।
तुला राशि – रोगभय, मातृ-सुख, खर्च, यात्रा, व्यापार में सुधार हो सकता है, कार्य होगा।
वृश्चिक राशि – कार्यसिद्ध, लाभ, विरोध, भूमि लाभ होगा, राजकार्य में व्यस्तता रहेगी।
धनु राशि – लाभ, धर्म रुचि, यश, हर्ष, यात्रा, समय शिक्षा जगत की ख्याति सामान्य रहेगी।
मकर राशि – विरोध, व्यापार में हानि, शरीर कष्ट, अधिक खर्च करने से कुछ कार्य होवेंगे।
कुंभ राशि – व्यय, प्रभाव, लाभ, प्रतिष्ठा, रोगभय, विरोधी असफल अवश्य होंगे।
मीन राशि – राजभय, यश लाभ, मान, चोटभय, राजकार्य में विलम्ब, परेशानी बढ़ेगी।

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राशिफल

आज का राशिफल (18/06/2021)

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शुभ संवत 2078, शाके 1943, सौम्य गोष्ठ, ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष, ग्रीष्म ऋतु, गुरु उदय पूर्वे शुक्रोदय पश्चिमें तिथि नवमी, शनिवासरे, हस्त नक्षत्रे, वलयोगे, कौलवकरणे, रोग विमुक्ता, स्नान मुर्हूत, गृह प्रवेश देव प्रतिष्ठा त्रिपुस्कर योग उपक्रर्म औषधि सेवन मुर्हूत वाहन क्रय विक्रय मुर्हूत तथापि दक्षिण दिशा की यात्रा शुभ होगी।

आज जन्म लिए बालक का फल….
आज जन्म लिया बालक योग्य, बुद्धिमान, कुशल वक्ता, शासक-प्रशासक, शिक्षक, लेक्चरार, प्रोफेसर, प्रिंसपाल, लेखक-कवि, उत्तम प्रकृति का लोभी, दम्भी, जिद्दी-हठी, संत-महात्मा, ज्ञानी तथा परोपकारी, योगी पुरुष होगा।

मेष राशि :- यात्रा व वृत्ति से लाभ, कुसंग से हानि, कुछ सहयोग रहे, पारिवारिक समाचार।
वृष राशि – शुभ कार्य, भूमि से हानि, सिद्धी, कभी-कभी विरोधी अडंगे करते रहेंगे, कार्य बनेंगे।
मिथुन राशि :- अधिक व्यय, स्वजन कष्ट, विवाद, आर्थिक कमी का अनुभव अवश्य होगा।
कर्क राशि – हानि, रोगभय, नौकरी में कष्ट, चिन्ता, राजकार्य, मामले-मुकदमे में असंतोष।
सिंह राशि – निराशा, लाभ, कार्य में सफलता, आर्थिक सुधार आदि होगा।
कन्या राशि – शरीर कष्ट, लाभ, राजभय, उद्योग-व्यापार में अडंगे अवश्य ही आयेंगे।
तुला राशि – चोट-अग्नि भय, धार्मिक कार्य, कष्ट, व्यर्थ अनाप-शनाप खर्च से परेशानी।
वृश्चिक राशि – बाधा, उलझन, लाभ, यात्रा, कष्ट, गृहकार्य में परेशानी अवश्य रहेगी।
धनु राशि – शत्रुभय, मुकदमे में जीत, रोगभय होगा, व्यापार में सुधार, कष्ट अवश्य होगा।
मकर राशि – व्यापार में लाभ, शत्रुभय, धन सुख, सुधार, खर्च होते ही रहेंगे, ध्यान रखें।
कुंभ राशि – कलह, व्यर्थ खर्च, सफलता प्राप्त हो, विरोधी असफल रहें, व्यापार में सुधार होगा।
मीन राशि – स्वजन सुख, पुत्र-चिन्ता, धन हानि, व्यापार की स्थिति अच्छी नहीं रहे।

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