
दिनेश कुमार गुप्त मुख्य ट्रस्टी श्री सांई ज्ञान आश्रम मो. 0 9971795716, 0120-4563404
बहुधा यह देखा गया है कि सांई की ओर आकर्षित होने वाले उनके बारे में जानने की तीव्र जिज्ञासा रखते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मानव अपने धर्मानुसार पारिवारिक ईष्ट या गुरु इत्यादि को तो जानता है किन्तु सांई के अस्तित्व से अनभिज्ञ रहता है। यदि उसे इस सन्दर्भ में कुछ ज्ञान भी होता है तब भी वह इस ओर गहराई से नहीं सोचता। यदि अचानक कभी उसे सांई के प्रति जानकारी की जिज्ञासा उत्पन्न हो जाये अथवा अनजाने में ही वह सांई को जानने का प्रयास करे तो यह निश्चित रूप से मान लेना चाहिये कि उसका बाबा के प्रति आकर्षण प्रारम्भ हो गया है।
कभी-कभी मन में यह उत्कण्ठा उठती है कि सांई की वास्तविकता क्या है? उनके उद्गम, अस्तित्व व अन्त का सत्य क्या है ? वे अवतार थे अथवा मानव के रूप में एक महान व्यक्तित्व, वे संत थे अथवा किसी प्रकार के योगी महात्मा, वे तांत्रिक थे अथवा चमत्कार दिखाने वाले बाबा। इस प्रकार की विचार धाराएं मानव को जिज्ञासु बनाने लगती हैं। ऐसी स्थिति में यदि सांई के बारे में सत्य जानकारी न दी जाये तो लोग दूसरों के मतानुसार अथवा अपनी सुविधानुसार बाबा केबारे में ना-ना प्रकार की धारणा बना लेते हैं। ऐसी धारणाएं वास्तविकता से दूर होती हैं तथा भक्तों को सांई के यथार्थ से अनभिज्ञ रखती हैं। कुछ ऐसे भी भक्त हैं जो वर्षों से बाबा का अनुसरण कर रहे हैं, किन्तु अभी तक उनके यथार्थ से अपरिचित हैं। सांई का वास्तिविक रूप क्या है ? उनकी सत्यता क्या है? इस तथ्य से अवगत होने का प्रयास करते हैं।
आप यह जानते होंगे कि सांई का अर्थ ईश्वर है जिसे अलग-अलग धर्मों में अनेकों नामों से जाना जाता है। कलियुग में ईश्वर में विष्वास उत्पन्न होना ही एक चुनौती है क्योंकि यह विलासिता का युग है तथा मानव में वर्तमान अर्थात आज को जीने की जिज्ञासा है। उसे भविष्य अर्थात कल को सुधारने की तमन्ना या तो है नहीं अथवा बहुत कम है।फिर भी समाज के कुछ जिज्ञासु ऐसे हैं जो बाबा के बारे में यथार्थ जानना चाहते हैं तथा अपने आने वाले कल को बेहतर बनाना चाहते हैं। वे सभी इस लघु लेख से लाभान्वित हो सकते हैं।
यह सत्य है कि सांई बाबा का अवतरण मानव देह में हुआ तथा उन्होंने एक असाध्य साधारण जीवन-यापन किया जो सामान्य मनुष्य नहीं कर सकता। बाबा के साक्षात रूप का वर्णन करने के लिए न तो कोई शब्द हैं, न कोई वाक्य हैं, न कोई व्याकरण है, न कोई भाषा है और न ही कोई शैली है। जो मेरा अनुभव है उसे स्याही से शब्दों में अंकित करने का प्रयास कर रहा हूँ यह जानते हुए कि जो अनुभूति मुझे हुई है वह व्याख्या से परे है और मैं स्वयं को उसके वर्णन में लाचार, असमर्थ तथा पूर्ण रूप से असफल पाता हूँ। यह तो बाबा की अनुकम्पा है जो मेरे जैसे अपूर्ण व्यक्ति से ऐसा अनूठा कार्य करवा रहे हैं।
अखण्ड समाधि में लीन रहने वाले बाबा उस दिव्य प्रभा का रूप थे जो अनन्त ब्रह्माण्ड का मालिक है तथा जिसकी असंख्य रचनाओं में से मनुष्य एक मात्र श्रेष्ठ रचना है, जो स्वयं मालिक होकर भी सेवक जैसा व्यवहार करता है, जो सबकी उत्पत्ति व उनकी पुनरावृत्ति करता है किन्तु अपनी उत्पत्ति को किसी अन्य की रचना मानता है तथा जिसको वह अपना रचयिता मानता है वह रचयिता भी स्वयं को किसी और की रचना मानता है, जिसके ओर-छोर का ही पता नहीं है, जो यह आभास देता है कि पृथ्वी जैसा गृह राई के दाने से भी छोटा है तथा सब में अपना रूप व अपने में सबका रूप समाये रखता है। ऐसे भाव रखने वाला और कोई नहीं स्वयं सांई है।
एक और सिर्फ एक तथा वही सम्पूर्ण, भले ही स्वयं को अपूर्ण मानता हो, जो उसकी महानता है, वही सांई है। जिसने अहंकार, इच्छायें, आकांक्षायें, लोभ, विलासितायें, लालसायें स्वरचित अग्नि को भेंट की हैं, वही सांई है, जिसने पे्रम, सद्भाव, सामन्जस्य, संयम, परिश्रम आदि करना तथा नाम के परित्याग का सबक सिखाया, वही सांई है, जिसने समय की पाबन्दी को सर्वोच्च माना, जिसने नियमों को रचा व उनका पालन स्वयं किया तथा भक्तों की भावनाओं का सम्मान किया, वही सांई है, जिसने न तो चमत्कार दिखाने का प्रयास किया न ही अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्षन किया और न ही अपना आधिपत्य जमाया, वही सांई है, जिसने न तो तन्त्र का प्रयोग किया, न दिखावा किया, न किसी धर्म को प्राथमिकता दी और न ही अपनी विचार धारा को किसी पर थोपा, वही सांई है, जिसने किसी का अहित नहीं किया, किसी से कुछ भी नहीं चाहा, जिसने किसी रीति-रिवाज अथवा आध्यात्मिक व धार्मिक प्रचलनों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तथा जिसने किसी को विभाजित नहीं किया, वही सांई है, जिसने पूजा-पाठ की न तो कोई सामग्री बताई न ही विधि बताई न ही दिन बताया, जिसने हर दिन, हर पल, हर घड़ी व हर वस्तु को प्रभु की देन मानकर उसके सदुपयोग की प्रेरणा दी, वही तो सांई है। जो स्वयं फकीरी का प्रदर्षन कर दूसरों के लिए मसीहा बन सबकुछ देता रहा, वही तो सांई है।
जब हम स्वार्थवश या तो स्वयं भटक जाते हैं अथवा किसी अन्य को अज्ञानवष सांई के बारे में कुछ करता देखते हैं तब हम बाबा को समझने में पीछे रह जाते हैं। उनके सम्पूर्ण साहित्य में अध्यात्म व उनकी विचार धारा को व्यापारीकरण से दूर रखा गया है, उन्होंने किसी भी मान्यता को नहीं माना। सादगी, संयम, नियम व त्याग को ही बाबा ने सर्वोपरि माना था तथा समर्पण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी थी। दिखावा, आडम्बर व स्वयं को सांई वाणी मानने वालों से जिज्ञासुओं को सावधान रहने की आवष्यकता है। स्वयं को सांई का सेवक मानने वाले अज्ञानवष, स्वार्थवश अथवा अपनी कीर्ति फैलाने के लिए बाबा की दार्षनिकता से काल्पनिक अवधारणायें बना लेते हैं तथा उन्हीं को बाबा की वास्तविकता से जोड़ देते हैं जो अनुचित है।
भेंट व चढ़ावा बाबा को सदा अप्रिय रहा। वे श्रद्धा के सुमनों को सर्वश्रेष्ठ भेंट मानते थे तथा आध्यात्मिक प्रणाम को सर्वोत्तम चढ़ावा। वे उसी दान को सच्चा मानते थे जिससे किसी असहाय अथवा गरीब का कल्याण होता हो। सच्चा अमीर वही है जो किसी गरीब का हो सके। जिज्ञासुओं को चाहिये कि वे इसका पालन करें।
अनभिज्ञता कभी-कभी गलत मान्यताओं को जन्म दे देती है। अज्ञानता उन मान्यताओं को पालन करने के लिए प्ररित करती है। सांई की दार्शनिकता में छिपी गूढ़ता के लिए नित्य श्री साई सच्चरित्र का पाठ तथा उस पर चिन्तन करना अतिआवश्यक है। केवल पाठ करने से अनभिज्ञता व अज्ञानता दूर नहीं हो सकती। चिन्तन से तात्पर्य है कि इसमें बाबा द्वारा कहे गये वचनों को हृदय में उतार कर समझना, वचनों का पालन करना और साथ ही उनकी प्रेरणा से प्रेरित होकर दिखावे से दूर रहना। बाबा के वचन आपके कलेजे के टुकड़े बन जायें तभी सही अर्थ में सांई की निकटता का अहसास होगा। इसके लिए पूर्ण समर्पण चाहिये, संकल्प चाहिये तथा सांई को जानने की सच्ची जिज्ञासा चाहिये। सांई बाबा के सम्पूर्ण आचरण अपनाना सम्भव नहीं है किन्तु जो साधारण हैं तथा सामाजिक व पारिवारिक बन्धनों मे अपनाये जा सकते हैं उन्हें अवश्य अपनाना चाहिये।
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