गाजियाबाद से आंखे नम कर देने वाली खबर सामने आई है, आपको बता दें कि 58 वर्षीय लीलाावती को मंगलवार को गाजियाबाद के खोड़ा पुलिस स्टेशन से एक संदेश मिला, जिसमें बताया गया कि उन्होंने उनके बेटे को ढूंढ लिया है। लेकिन वह ज्यादा उत्साहित नहीं हुईं।
पिछले 31 सालों में, पुलिस ने उन्हें सात से ज्यादा बार ऐसे ही कॉल किए हैं, लेकिन हर बार उन्हें निराश होकर लौटना पड़ा। लीलाावती बताती हैं कि उनका बेटा भीम सिंह सिर्फ नौ साल का था, जब उसे दिनदहाड़े अगवा कर लिया गया था। “मुझे लगा, ये भी पहले की तरह ही होगा,” वह याद करती हैं। “पुलिस किसी आदमी को मेरे सामने लाएगी और पूछेगी कि क्या वह मेरा बेटा है। हर बार मैंने उन्हें (पुलिसवालों को) मेरे बेटे के शरीर पर मौजूद निशानों के बारे में बताया।”
खोड़ा पुलिस स्टेशन के अंदर, लीलाावती ने जैसे ही एक आदमी को देखा, अपने सिर को नीली साड़ी से ढक लिया। “उसने मुझे देखा और चिल्लाकर कहा… यह मेरी मां है,” वह याद करती हैं।
“मैं थोड़ी हैरान हुई और उसे पहचान नहीं पाई। लेकिन जब उसने दोबारा मुझे मां कहा, तो मेरी आंखों में आंसू आ गए,” वह बताती हैं। लेकिन उनके लिए एक और चौंकाने वाली बात थी। उन्होंने पुलिसवालों को अपने लापता बेटे के शरीर पर मौजूद निशानों के बारे में बताया और जब उन्होंने जांच की, तो उनका विवरण पूरी तरह मेल खाता था। “वह वाकई मेरा बेटा था।”
भीम अब बड़ा हो चुका है। वह अब 40 साल का है।
इस परिवार की दर्दभरी कहानी, जो गाजियाबाद के शहीद नगर में एक दो मंजिला इमारत की छत पर एक कमरे के घर में रहती है, 8 सितंबर, 1993 को शुरू हुई थी। भीम, जो उस समय लगभग 9 साल का था, डीबीएस पब्लिक स्कूल से अपनी दो बड़ी बहनों, राजो और संतोष के साथ घर लौट रहा था।
भीम उस दिन को साफ-साफ याद करता है। “मुझे याद है कि मैंने अपनी बहन राजो से कहा था कि वह मुझे एक छाता खरीद दे। वह नहीं चाहती थी और हम बहस कर रहे थे,” वह याद करता है। “अचानक, कुछ आदमियों ने मुझे घेर लिया। उन्होंने मुझे उठाया, ऑटो में धकेल दिया और वहां से चले गए।”
हालांकि, लीलाावती के दिल में एक छोटी सी उम्मीद की किरण बाकी थी। “मैंने अपने लापता बेटे से फिर मिलने की उम्मीद लगभग खो दी थी… लेकिन फिर भी मैं खुद से कहती रही, ‘क्या होगा अगर उन्होंने उसे सच में ढूंढ लिया हो?’’ वह कहती हैं। “मुझे जाना ही था।”