नई दिल्ली| कन्नड़ विद्वान और तर्कशास्त्री एम.एम.कलबुर्गी की हत्या ने कर्नाटक में हर क्षेत्र के लोगों को झकझोर दिया है। (delhi hindi news) हंपी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति कलबुर्गी की हत्या और तर्कशास्त्री नरेंद्र दाभोलकर तथा गोविंद पनसारे की हत्या में कई समानताओं का जिक्र कई दलों के नेता कर रहे हैं।
कलबुर्गी की हत्या 30 अगस्त को उनके धारवाड़ स्थित घर में दिनदहाड़े कर दी गई थी।
कलबुर्गी की हत्या को विद्वान प्रतिरोधी विचारों को ताकत के बल पर कुचल देने की लगातार बढ़ रही चिंताजनक प्रवृत्ति के अंग के रूप में देख रहे हैं।
लेखिका एच.एस.अनुपमा ने आईएएनएस से फोन पर कहा, “मेरे हिसाब से यह विचार को निशाना बनाना है। व्यक्ति को चुप कराना है। कलबुर्गी समेत कई लोग हैं जो संघ परिवार और उसके विचार के खिलाफ हैं। हालांकि हम यह नहीं कह सकते कि कलबुर्गी की हत्या में संघ परिवार का हाथ है। इस हत्या के कई पहलू हैं।”
उन्होंने कहा, “कोई भी विचार, जो वर्तमान में सत्ता में बैठे लोगों के थोड़ा भी खिलाफ हो, उसे बर्दाश्त नहीं किया जा रहा है। अभिव्यक्ति की आजादी मजाक बनकर रह गई है और अब इसका वजूद न के बराबर है। देश में कितने ही लोगों को उनके विचारों की वजह से चुप करा दिया गया है।”
कलबुर्गी को पुरालेख विशेषज्ञ, कन्नड़ साहित्य और 12वीं सदी के वाचना साहित्य का विशेषज्ञ माना जाता था। अनुपमा के मुताबिक लिंगायतवाद के जनक माने जाने वाले बसावा के साहित्य पर उन्होंने काफी काम किया था। उनका कहना था कि बसावा के साहित्य के हिसाब से मूर्तिपूजा, जाति प्रथा का विरोध, मंदिर नहीं बनाने जैसी बातों की वजह से लिंगायत समुदाय हिंदू समाज का हिस्सा नहीं है।
लिंगायत समुदाय राजनीति में काफी दखल देता है। भाजपा से इसके नेताओं की नजदीकी है। इस मामले में कलबुर्गी का लेखन हिंदुत्ववादियों के लिए खतरा पैदा कर रहा था।
एक बार लिंगायत नेताओं के दबाव पर उन्हें अपना कुछ लेखन वापस लेना पड़ा था। कलबुर्गी ने तब कहा था कि अपने घरवालों को बचाने के लिए उन्होंने बौद्धिक खुदकुशी की है।
फेडरेशन ऑफ रैशनलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेंद्र नायक ने कहा, “77 साल के एक आदमी को उसके विचारों के लिए मार देना बुजदिली है। बातों को व्याख्यायित करने का उनका अपना वैज्ञानिक तरीका था। उन्हें मारा जा सकता है लेकिन उनके विचारों को नहीं।”
100 से अधिक किताबें लिखने वाले कलबुर्गी ने राज्य की कांग्रेस सरकार द्वारा प्रस्तावित अंधविश्वास विरोधी विधेयक का समर्थन किया था। काले जादू और ओझैती-सोखैती का विरोध करने वाले इस विधेयक की भाजपा और अन्य िंहंदू संगठनों ने आलोचना की थी।
हंपी विश्वविद्यालय में उनके साथ काम कर चुके एक प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वह बेहद ईमानदार आदमी थे। बतौर कुलपति पूरी तरह पारदर्शी। उन्हें सिर्फ पढ़ाई-लिखाई से सरोकार था। उनकी हत्या के पीछे किसी तरह के संपत्ति विवाद की कोई संभावना नहीं हो सकती। प्रोफेसर ने बताया कि उबली हुई सब्जी और ज्वार की दो रोटी, यही उनका खाना हुआ करता था।
प्रोफेसर ने कहा कि अपने विचार की वजह से कलबुर्गी को नफरत से भरे ई-मेल और खत मिलते रहते थे।
मनोहर ग्रंथ माला के प्रकाशक रमाकांत जोशी ने कहा कि सिर में गोली लगने से बने दो छेद के साथ धारवाड़ अस्पताल में रखा कलबुर्गी का शव कभी भी उनके दिमाग से ओझल नहीं हो सकेगा।
कलबुर्गी द्वारा संपादित किताब ‘केवुर वासुदेवाचार्य समग्र’ के प्रकाशक जोशी ने बताया कि कलबुर्गी 18 घंटे तक लिखने का काम किया करते थे।
जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल की तर्ज पर होने वाले धारवाड़ साहित्य संभ्राम के सचिव एच.वी.काखनदिकी ने कलबुर्गी के साथ काफी काम किया था। कलबुर्गी, अभिनेता एवं नाटककार गिरीश कर्नाड के साथ संभ्राम के मानद अध्यक्ष थे। काखनदिकी कहते हैं कि इस साहित्यिक अयोजन को लेकर कलबुर्गी के पास कई योजनाएं थीं। उनकी मौत बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
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