नई दिल्ली| यदि सरकार शांति प्रक्रिया लागू करने के लिए एनएससीएन के शेष पांच गुटों को मनाने में सफल हो जाती है तो इससे पूर्वोत्तर में कई अन्य संगठन कमजोर होंगे जो हथियारों, आर्थिक सहायता और ट्रेनिंग के लिए नागा संगठनों पर निर्भर हैं। (national hindi news) ऐसा विशेषज्ञों का कहना है।
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि दशकों से हिंसा और विघटन के बाद शांतिपूर्ण पूर्वोत्तर के लिए यह एक नया द्वार खोलेगा।
क्षेत्र के सांसदों ने जोर दिया कि यदि सरकार नागालैंड की नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन) के विभिन्न गुटों को हथियार डालने के लिए बाध्य कर देती है, तो इसका अन्य विद्रोही संगठनों पर सीधा प्रभाव पड़ेगा, जिसमें असम का यूनाइटेड लिबरेशन फंट्र, बोडोलैंड राष्ट्रीय डेमोकेट्रिक फंट्र, कामतापुर मुक्ति संगठन और कैंग्ली यावोल कन्ना लप शामिल हैं।
नागालैंड के राज्यसभा सदस्य खेखिको झीमोमी ने आईएएनएस को बताया, “नागा विवाद पूर्वोत्तर में सर्वाधिक पुराना रहा है। निश्चित तौर पर अगर इसे सुलझा लिया जाता है और सरकार इसके सभी गुटों को समझाने में सफल हो जाती है तो इस क्षेत्र में अन्य विद्रोही संगठनों की ताकत कम होगी।”
नागालैंड पीपुल्स फंट्र के 70 वर्षीय नेता जो दशकों से नागा विवादों से वाकिफ रहे हैं, ने बताया कि स्वतंत्र असम की मांग उठाने वाले उल्फा ने भी नागा नेशनल काउंसिल और एनएससीएन से प्रेरित होकर हथियार उठाए थे।
एनएससीएन-आईएम और भारत सरकार ने 20 वर्षो से चल रहे शांति समझौते के प्रयास पर विराम लगाते हुए तीन जून को नागा शांति प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए।
नागा शांति वार्ता के केंद्र सरकार के प्रतिनिधि, आर. एन. रवि नागालैंड में हैं, जहां वे संभवत: एनएससीएन के अन्य पक्षों के प्रतिनिधियों से मिलेंगे।
झिमोमी ने कहा कि नागा समस्या की जड़ भारत सरकार के 1919 एक्ट से संबंधित है, जब नागा पहाड़ियों को पिछड़ा घोषित किए जाने और उसे ब्रिटिश भारतीय शासन से अलग रखे जाने के बावजूद बाद में इसे भारत के हिस्से में शामिल कर दिया गया।
झिमोमी के अनुसार, “नागा संगठनों ने भारतीय संविधान का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया है और सरकार एक स्थायी समाधान चाहती है, जो कि संपूर्ण नागा जाति को लाभ प्रदान करेगा।”
पूर्वोत्तर में 50 से अधिक विद्रोही संगठन हैं जिनमें एनएससीएन नागा राष्ट्रीय समिति सबसे पुरानी है।
इस बात पर जोर देते हुए कि नागा विवाद को सुलझाए बिना पूर्वोत्तर में शांति संभव नहीं है झिमोमी ने कहा, “एनएससीएन के प्रमुख एस. एस. खापलांग के नेतृत्व में नवगठित पश्चिमी दक्षिण पूर्वी एशिया संयुक्त मुक्ति मोर्चा, इस बात का प्रमाण है कि क्षेत्र में अन्य विद्रोही गुटों को नागा आतंकवादी संगठन का समर्थन प्राप्त है।”
असम के कोकराझार जिला के लोकसभा सदस्य नबा सरानिया ने बताया, “एनएससीएन के सभी गुटों को नागा प्रस्ताव के अंतर्गत लाकर सरकार, क्षेत्र के अन्य विद्रोही संगठनों के ठिकानों को नष्ट कर पाएगी।”
उन्होंने कहा, “मानसिक संबल के साथ ही नागा विद्रोही संगठन ने पूर्वोत्तर में उभरते हुए संगठनों को हथियार और ट्रेनिंग मुहैया कराई है। अगर एनएससीएन के सभी दल हथियार डाल देते हैं तो अन्य गुट भी यही करेंगे और बातचीत के द्वारा समाधान चाहेंगे क्योंकि फिर उन्हें प्रेरित करने के लिए कोई नहीं होगा।”
मिजोरम के लोकसभा सदस्य सी. एल. रौला ने बताया, “अब तक नागा नेताओं के जरिए ही बांग्लादेश और म्यांमार में शरण लेना संभव था। लेकिन अगर नागा स्वयं ही शांति प्रस्ताव को मान लेते हैं तो अन्य आतंकवादी संगठनों के पास कोई अन्य विकल्प नहीं बचेगा।”
उन्होंने कहा, “एनएससीएन के गुटों के विपरीत अन्य उभरते हुए गुटों के पास स्वतंत्र रूप से संचालन के लिए मानव संसाधन और वित्तीय व्यवस्था नहीं है।”
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