दीवाली पांच विशेष दिनों का त्योहार है, जिनमें से प्रत्येक का अपना अलग महत्व है। इसका आरंभ धनतेरस से होता है, जब लोग सोना या चांदी खरीदते हैं, जिससे समृद्धि की कामना होती है। छोटी दीवाली यानी नरक चतुर्दशी पर लोग अंधकार पर प्रकाश की विजय का उत्सव मनाते हैं और सूर्योदय से पहले पारंपरिक तेल स्नान करते हैं। मुख्य दीवाली के दिन, घरों को दीयों से सजाया जाता है, जो अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक हैं। गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा से जुड़ी है, जबकि भाई दूज भाई-बहन के रिश्ते को और भी मजबूत बनाने के लिए मनाया जाता है। इन सभी दिनों का अपना अनूठा महत्व है, जो दीवाली को परंपरा, अध्यात्म और आपसी मिलन से भरपूर एक उल्लासमय त्योहार बनाते हैं।
धनतेरस: समृद्धि का स्वागत
धनतेरस से दीवाली की शुरुआत होती है। इसे कार्तिक मास की त्रयोदशी को मनाया जाता है, जिसमें “धन” का अर्थ संपत्ति और “तेरस” का अर्थ तेरहवां दिन है। इस दिन लोग सोना, चांदी या अन्य कीमती वस्तुएं खरीदते हैं, जिससे साल भर के लिए शुभता और वित्तीय समृद्धि की कामना होती है। घरों में रंगोली बनाई जाती है, और देवी लक्ष्मी का स्वागत करने के लिए दीपक जलाए जाते हैं। विशेष पूजा में लक्ष्मी मां से धन-धान्य की प्राप्ति की प्रार्थना की जाती है। धनतेरस केवल धन प्राप्ति की कामना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह परिवार को एकजुट करने, घर को स्वच्छ और सुसज्जित करने और नई खुशियों को साझा करने का अवसर भी है।
नरक चतुर्दशी (छोटी दीवाली): अंधकार पर प्रकाश की विजय
नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दीवाली भी कहा जाता है, दीवाली के त्योहार में एक महत्वपूर्ण दिन है। इसे कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। यह दिन भगवान श्रीकृष्ण की नारकासुर राक्षस पर विजय की कहानी से जुड़ा है। इस दिन प्रातःकाल तेल स्नान किया जाता है, जो शारीरिक और मानसिक शुद्धिकरण का प्रतीक है। कुछ स्थानों पर प्रतीकात्मक रूप से मिट्टी का पुतला बनाया जाता है और उसे तोड़ा जाता है, जो बुराई के नाश का प्रतीक है।
मुख्य दीवाली: प्रकाश और उल्लास का पर्व
मुख्य दीवाली का दिन एक विशेष अवसर होता है, जो प्रकाश, खुशी और सांस्कृतिक उत्सवों से भरा होता है। यह कार्तिक मास की अमावस्या की रात को मनाई जाती है, जो अंधकार पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। घरों को दीयों, मोमबत्तियों और रंग-बिरंगी सजावटों से सजाया जाता है। लोग विशेष पूजा करते हैं, लक्ष्मी माता का आशीर्वाद पाने के लिए, जो समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक हैं। इस दिन मिठाइयां और उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता है, जिससे एकता और खुशी का भाव बढ़ता है। पटाखों की रौनक से आकाश चमक उठता है और स्वादिष्ट व्यंजन भी तैयार किए जाते हैं। दीवाली एकता, उदारता और अच्छाई की जीत का संदेश देती है।
गोवर्धन पूजा: प्रकृति की महत्ता
गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट या पड़वा भी कहते हैं, दीवाली के चौथे दिन मनाई जाती है। यह भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाकर गांव वालों को इंद्र देव के क्रोध से बचाने की कथा का स्मरण कराती है। इस दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाकर फूलों और खाद्य पदार्थों से सजाया जाता है। यह पूजा भगवान कृष्ण की करुणा और प्रकृति की सुरक्षा में हमारी भूमिका को याद दिलाती है। अन्नकूट में विभिन्न खाद्य पदार्थों का अर्पण किया जाता है, जो प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। यह दिन पर्यावरण संरक्षण, प्रकृति के प्रति सम्मान और समुदाय की सुरक्षा का महत्व सिखाता है।
भाई दूज: भाई-बहन के रिश्ते का पर्व
भाई दूज, दीवाली के पांचवें दिन मनाया जाता है। यह भाई-बहन के पवित्र संबंध को समर्पित त्योहार है। बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए आरती करती हैं, उनके माथे पर तिलक लगाती हैं और उनकी सुरक्षा की प्रार्थना करती हैं। भाई भी उपहार देते हैं और जीवनभर बहन का साथ देने का संकल्प करते हैं। यह दिन प्रेम और आपसी समर्थन का संदेश देता है। भाई दूज सिर्फ धार्मिक परंपराओं का नहीं भाई और बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है।