सपा के थिंक टैंक कहे जाने वाले प्रोफेसर रामगोपाल यादव की दल में विदाई और वापसी दोनों ही ऐतिहासिक अंदाज में हुई। ऐतिहासिक इस मायने में है कि प्रोफेसर रामगोपाल यादव की गिनती समाजवादी पार्टी के थिंक टैंक नेताओं में होती है। प्रोफेसर रामगोपाल यादव की सबसे बड़ी खूबी किसी भी मुद्दे पर निष्पक्ष और निर्भीक राय रखना है। रामगोपाल यादव ने बड़ी गलतियों को भी आसानी से माफ कर दिया। जब समाजवादी पार्टी में घमासान मचा था, तब प्रोफेसर रामगोपाल यादव एक मात्र नेता थे, जो पत्र लिखकर बाकायदा अखिलेश के समर्थन में आए थे। इस पत्र की कीमत उन्हें अपने निष्कासन से चुकानी पड़ी। बड़ी सोच और बड़े विजन के धनी प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने इतने बड़े कदम के बाद भी अपना संयम नहीं खोया। सपा को जब बड़े मुद्दे पर बड़े चेहरे की जरूरत थी तो प्रोफेसर रामगोपाल यादव राज्यसभा में नोटबंदी के मुद्दे पर मोर्चा संभालने के लिए आ गए। राज्यसभा में नोटबंदी के मुद्दे पर प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने सपा के नेता के तौर पर चर्चा की। प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने नोटबंदी मामले पर जब अपने विचार रखे तो वह कैप्टन की भूमिका में आ गए और समाजवादी पार्टी के सभी सांसद उनके पीछे खड़े नजर आए। सदन में रेवती रमन सिंह, बेनीप्रसाद वर्मा और अमर सिंह भी बैठे थे। लेकिन मुद्दों पर तर्कों के साथ राज्यसभा में सपा की जो दमदार आवाज गंूजी वह प्रोफेसर रामगोपाल यादव की थी। सपा के ज्यादातर सांसद राज्यसभा में रामगोपाल के इर्द-गिर्द ही रहे। यहां तक की जया बच्चन ने भी प्रोफेसर रामगोपाल यादव की जमकर तारीफ की। यहां से समाजवादी क्रांति का एक नया अध्याय भी शुरू हुआ है। प्रोफेसर रामगोपाल यादव शुरू से अखिलेश को मुख्यमंत्री चेहरा बनाए जाने की वकालत कर रहे हैं। इसमें खास बात यह भी है कि प्रोफेसर ने अपने पुत्र को प्रोजेक्ट नहीं किया, बल्कि समाजवादी पार्टी की खातिर भविष्य की सोच रखते हुए अखिलेश यादव को सीएम चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट किया। राज्यसभा में प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने तमाम कड़वाहट के बावजूद जिस तरीके से जिम्मेदार भूमिका निभाई है, उसकी मिसाल राजनीति में बहुत कम देखने को मिलती है। प्रोफेसर रामगोपाल यादव को ऐसे ही थिंक टैंक नहीं कहा जाता। राज्यसभा में उनकी वाणी और कार्यशैली के सभी दल मुरीद हैं। यह समाजवादी आवाज की गंूज है, जो राजनीति के फलक पर छा गई है।
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