नई दिल्ली, 5 मार्च (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में 7/11 मुंबई ट्रेन विस्फोट मामले में मौत की सजा पाए दोषी एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसने सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत मामले की जांच और अभियोजन में शामिल आईपीएस और आईएएस अधिकारियों का ब्योरा मांगा था।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने अपने फैसले में कहा कि ऐसी जानकारी का खुलासा किए जाने से अधिकारियों की सुरक्षा को गंभीर खतरा हो सकता है और यह सार्वजनिक हित में नहीं है।
सिद्दीकी को बम विस्फोटों में उसकी भूमिका के लिए 2015 में मौत की सजा सुनाई गई थी। इस हादसे में 189 मौतें हुई थीं और 800 से अधिक लोग घायल हुए थे। सिद्दीकी ने उन आईपीएस और आईएएस अधिकारियों के बारे में ब्योरा मांगा, जिन्होंने जांच की निगरानी की और अभियोजन के लिए मंजूरी दी।
उनकी याचिका में उनके संघ लोक सेवा आयोग के फॉर्म और अन्य नियुक्ति-संबंधी दस्तावेजों की प्रतियों का अनुरोध भी शामिल था।
अदालत ने कहा कि चूंकि घटना 2006 में हुई थी और अभी 20 साल से कम समय बीता है, इसलिए आरटीआई अधिनियम (धारा 8 3), जो दो दशकों के बाद जानकारी जारी करने की अनुमति देता है, इस मामले में लागू नहीं होता।
न्यायमूर्ति प्रसाद ने कहा कि इस जानकारी का खुलासा करने में सार्वजनिक हित की कमी को देखते हुए 20 साल बाद भी इसमें शामिल अधिकारियों की गोपनीयता और सुरक्षा को दोषी के अनुरोध पर प्राथमिकता दी जाएगी।
इसके अलावा, कथित इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) रिपोर्ट की एक प्रति के लिए सिद्दीकी की एक अलग याचिका भी खारिज कर दी गई, जिसमें उसने बम विस्फोट मामले में गलत गिरफ्तारी की बात कही थी।
अदालत ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के फैसले को बरकरार रखा और आईबी के हलफनामे की विश्वसनीयता की पुष्टि की।
–आईएएनएस
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