नेपाल सुलग रहा है तो उसके पीछे राष्ट्र विरोधी ताकतें हैं। उन्हें नेपाल से भारत का सदियों पुराना रिश्ता खटक रहा है। (international news hindi) सामरिक दृष्टि से भी तराई में हो रही उथल-पुथल भारत के लिए खतरनाक हैं। अगर समय रहते भारत सरकार ने मधेशियों की मदद न की, तो नेपाल में भारत विरोधी ताकतें सशक्त हो जाएंगी, जिसका खामियाजा बाद में भारत को भी भुगतना पड़ेगा।
भयंकर भूकंप से तबाह हो चुका नेपाल अभी संभलने की कोशिश में लगा था कि वहां गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा हो गए हैं। इसके पीछे विदेशी ताकतों का हाथ स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है, क्योंकि नेपाल के पुनर्निर्माण में भारत बढ़-चढ़ कर हाथ बंटा रहा है। शायद यही कारण है कि चीन जैसे साम्राज्यवादी राष्ट्र को यह अच्छा नहीं लग रहा है।
नेपाल का भारत के साथ हजारों साल पुराना रोटी-बेटी का संबंध है। त्रेतायुग में मिथिला नरेश महाराज सीरध्वज जनक की बेटी सीता का विवाह अयोध्या के महाराज दशरथ के पुत्र राम से हुआ था। नेपाल के जनकपुर को मिथिला का हिस्सा माना जाता है। भारत यानी बिहार का मिथिला क्षेत्र उससे जुड़ा हुआ है। दोनों देशों के निवासियों के बीच सजीव संबंध रहा है। आज उस रिश्ते को समाप्त करने की सुनियोजित साजिश रची जा रही है।
पहले संपर्क भाषा हिन्दी पर आपत्ति की गई, फिर नागरिकता के मसले पर अवरोध पैदा किए गए और अब पहाड़ी इलाके को मधेशी क्षेत्र में मिलाने का प्रयास किया जा रहा है, जिसके खिलाफ लोग सड़कों पर उतर रहे हैं।
नेपाल के 56 लाख लोगों को अब तक वहां की नागरिकता नहीं मिल पाई है। जिन्हें नागरिकता मिली भी है, वह किसी काम की नहीं, क्योंकि उन्हें न ही सरकारी नौकरी में स्थान मिलता है और न ही संपत्ति में। यानी सिर्फ कहने को नेपाली नागरिक।
नेपाल में पहाड़ की महज सात-आठ हजार की आबादी पर एक सांसद है लेकिन तराई में सत्तर से एक लाख की आबादी पर एक सांसद है। इसी भेदभाव के खिलाफ मधेशी आंदोलन कर रहे हैं।
वर्तमान हालात से नेपाल की संविधान सभा के सदस्य भी इन दिनों घबराए हुए हैं। नेपाली सांसदों का कहना है कि चीन और पाकिस्तान के इशारे पर मधेशियों को कुचला जा रहा है। संविधान सभा में तीसरी पीढ़ी का नेतृत्व कर रहे सांसद अभिषेक प्रताप शाह ने कहा है कि यह आंदोलन अब नेपाल की 51 फीसद आबादी हिस्सा रखने वाले मधेशियों के लिए स्वाभिमान का सवाल बन गया है।
मधेशियों का रिश्ता भारत के दार्जिलिंग से उत्तराखंड तक के निवासियों से रिश्ता है। फिर भी हमारी राष्ट्रीय पहचान पर प्रश्न खड़े किए जा रहे हैं। वर्तमान शासक वर्ग नेपाल के भूमि पुत्र मधेशी व थारुओं का दमन इसलिए कर रहा है, ताकि भारत-नेपाल मैत्री संधि टूट जाए और पहाड़ पर प्रभाव रखने वाले चीन-पाकिस्तान परस्त नेता उनकी गोद में खेलने लगे।
मधेशी की संख्या नेपाल के तराई इलाकों में ज्यादा है। उनकी मांग है कि नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाए और मधेशी बहुल इलाकों को स्वायत्तता दी जाए। वे संविधान में मधेशियों के समावेशी अधिकार, सेना और पुलिस समेत लोकसेवा आयोग की भर्ती में बराबरी के हक, भारत की किसी लड़की से शादी के बाद तुरंत नागरिकता और समान अधिकार देने और ऐसी शादी से होने वाली संतान को वंशज मानते हुए नागरिकता देने की मांग कर रहे हैं।
नेपाल की संविधान सभा ने देश के नए संविधान को मंजूरी दी है। इस संविधान के तहत नेपाल अब हिंदू राष्ट्र नहीं कहा जाएगा। इसे धर्मनिरपेक्ष स्वरूप दिया गया है। साथ ही भारतीय महिला से विवाह के बाद उसे नेपाल में दूसरे दर्जे की नागरिकता देने की बात भी मधेश आंदोलन का प्रमुख कारण है।
मधेशी जन नेपाल के मूल निवासी हैं, लेकिन उनके साथ नेपाल में भेदभाव किया जाता है। इसी के चलते वह अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। नेपाल की आधी के करीब आबादी मधेशियों की है। नेपाल में मधेशियों की पार्टी संयुक्त लोकतांत्रित मधेशी मोर्चा (यूडीएमएफ) है।
नेपाल में भारत की सीमा से सटे इलाके में बसे लोगों को मधेशी कहा जाता है। भारत की सीमा और पहाड़ के बीच के इलाके को नेपाल में मध्यदेश कहा जाता है। इसी से मधेशी शब्द का जन्म हुआ है।
हफ्तेभर से ज्यादा से इलाके में मधेशी आंदोलन चल रहा है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, नेपाल में 51 फीसदी आबादी मधेशियों की है। इसमें नेपाल के मूल और भारत से गए दोनों शामिल हैं। यहां की भाषा मैथिली, भोजपुरी, बज्जिका और नेपाली है।
दो करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले नेपाल में कुल पांच राज्य और 75 जिले हैं। आंदोलनकारी थारू और मधेशियों के लिए अलग-अलग राज्य बनाए जाने की मांग कर रहे हैं। नेपाल के 22 जिले मधेशी आंदोलन से प्रभावित हैं। मधेशी नेताओं का आरोप है कि एक करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले उनके इलाके को नजरअंदाज किया जा रहा है। नए संविधान में अलग मधेशी राज्य को मान्यता नहीं देने का प्रस्ताव रखा गया है।
भारतीय युवतियां और उनसे जन्मे बच्चों को दोयम दर्जे की नागरिकता का प्रस्ताव नए संविधान में रखा गया है। इस इलाके में एक लाख से ज्यादा की आबादी पर एक सांसद हैं, जबकि पहाड़ी इलाकों में 4-5 हजार पर एक सांसद की सीट है। आंदोलनकारी इसी भेदभाव का विरोध कर रहे हैं।
नए संविधान के मसौदे में सात राज्यों का प्रस्ताव तो है, लेकिन उसमें मधेशी और थरूहट नहीं है। संविधान के नए मसौदे में मधेशी बहुल जिलों को अलग-अलग राज्यों में मिलाया जा रहा है। मधेशी समुदाय इसी भेदभाव का विरोध कर रहा है।
नेपाली सांसद बृजेश गुप्त का कहना है कि मधेशी समुदाय अहिंसक आंदोलन कर रहा है, लेकिन प्रदर्शनकारियों के बीच शासक वर्ग के गुर्गे घुसपैठ कर हिंसा कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, “मधेश आंदोलन में अब तक 52 लोग शहीद हो चुके हैं और शासक वर्ग हमसे संवाद नहीं बना रहा। शासक वर्ग आरोप लगा रहा हैं कि हम पृथक प्रदेश बनवाकर भारत में शामिल हो जाएंगे, जबकि हम नेपाल के नागरिक हैं और वहीं रहना चाहते हैं।”
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