लंदन| टाटा, बिड़ला, अंबानी और ऐसे ही बड़े उद्योगपतियों का नाम याद कीजिए और सोचिए कि इसमें बंगाली कितने हैं? आपको कम ही मिलेंगे। (business hindi news) इसकी क्या वजह हो सकती है? एक जवाब ब्रिटेन के हाउस आफ लार्ड्स के लार्ड कुमार भट्टाचार्य ने दिया है। उनका कहना है कि इसकी वजह बंगालियों का ‘बौद्धिक अहंकार’ है।
भट्टाचार्य खुद भी बंगाली मूल के हैं। आईआईटी खड़गपुर से स्नातक हैं। इंजीनियर होने के अलावा सरकारी सलाहकार भी हैं। इन्होंने ही टाटा को तब घाटे की शिकार जगुआर लैंड रोवर खरीदने का सुझाव दिया था। आज यह कंपनी यूरोप की सबसे अधिक कामयाब कंपनियों में से एक है। भट्टाचार्य वारविक मैन्युफैक्चरिंग ग्रुप के संस्थापक चेयरमैन हैं। उन्होंने साबित किया है कि उच्च शिक्षा और व्यापार साथ-साथ काम कर सकते हैं।
लंदन में रवींद्रनाथ टैगोर के दादा द्वारकानाथ टैगोर की याद में टैगोर सेंटर की तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि हम बंगाली बिजनेस नहीं करते।
द्वारकानाथ टैगोर भारत के पहले उद्यमियों में से एक थे। लेकिन उनकी बाद की पीढ़ी ने व्यापार से किनारा कर लिया और बौद्धिक कार्यकलाप को जीवन का हिस्सा बना लिया और यही फिर बंगालियों का आदर्श बन गया।
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