-सुभाष शर्मा, वरिष्ठ संवाददाता
शहर के पक्के मकानों से वो ला रहें है पता नही कौन सी माटी
ये जो कहते हैं कि चरखा चलाने से आजादी नही आई थी वो ही मानस कोरोना काल
में घंटी थाली पीट रहे थे दिये जला रहे थे और कोई उन्हे यकीन दिला रहा था कि
महामारी इसी से जायेगी। खैर वैक्सीन आई और उसके बाद अस्पतालों में इलाज ना
मिलने से जो मौत का तांडव हुया उसे अनसीन कर दिया गया। बड़ी टेंशन का दौर था
और फिर से इलेक्शन का दौर आ रहा है। कभी इंडिया सही तो कभी भारत सही की
बहस में मिडिल क्लास उलझ रहा है। नया खेल मिटटी का भी शुरू हो गया है और
कंक्रीट के शहर में घड़े में मिटटी आ रही है। शहीद के घर फूल वालो के बड़े बड़े नेता
गये और मिटटी लेकर आये। शहीद के अड़ोसी पड़ोसी हैरान कि इतने पक्के मकान
में उन्हे मिटटी कहां से मिल गई। मिटटी खुद ही लेकर आये थे या गमलों से निकाल
ली। पता चला कि फर्श से तो मिटटी मिलने से रही और इतनी जमीन है नही कि पेड़
लगे। मिटटी तो गमलों में है और माली बता सकता है कि कितने रूपये की मिटटी वो
कहां से लाया था। दिलजले भाजपाई ने ही कहा कि कोई बतायेगा कि मिटटी चावल
की इस चाल से क्या कमाल हो जायेगा। शहर के पक्के मकानों से मिटटी इन्हे ही मिली।
वार्ड मेरा और मेंबर मेरी लुगाई फिर ये कौन है भाई
भगवा गढ़ में फूल वालों के लिये चुनौती ही फूल वाले हैं। कमल वालों को हाथ वालों
से कोई दिक्कत नही हैं, साईकिल वालों और फूल वालों में परस्पर मित्रता हैं और हाथी
वाले भी कोई प्राब्लम क्रिएट नही करते हैं। मगर फूल वालों ने ही फूल वालों के लिये
सारे कांटे बो रखे हैं। किस्सा उस वार्ड का हैं जहां विकास को लेकर फूल वाले ही
उलझ गये और विकास को लेकर फाईट होते होते रह गई। जिन्हे टिकट नही मिला
वो टिकट ना मिलने और चुनाव ना लड़ने के बाद भी पार्टी में देवतुल्य और मौहल्ले में
जनसेवक बनकर पूरी सियासी कसर निकाल रहे हैं। जिस वार्ड से फूल वाले जीते हैं
उसी वार्ड से भगवा देवतुल्य रोज कभी सड़क के लिये आवेदन तो कभी गढढो के लिये
अर्जी दे आते हैं। निगम के नये साहब ने आते ही गढढो को लेकर पेंच कसें तो निगम
वालों ने भी पुरानी फाईल निकाल कर अपने स्टाईल में आवेदन करने वाले के साथ
मौका मुआयना किया। मेंबर साहब को पता चला तो वो भी आ लिये और जिरह शुरू
हुई कि वार्ड मेंरा मेंबर मेरी लुगाई फिर निरीक्षण ये क्यों करा रहा है भाई। निगम वालों
ने भी समझा दिया कि जिसकी शिकायत है जो आवेदन कर्ता हैं उसे मौके पर बुलाकर
समाधान कर रहे हैं। बताते हैं कि इसके बाद फूल वालों में घमासान होते होते बच गया।
मडंल वाला कमंडल ये धरा जब चाहें इसें उठाकर ले जायें वो
निगम वाले इलेक्शन से पहले मडंल वाले एक पदाधिकारी पूरी जिम्मेदारी से लगे पड़े
थे। ये पन्ना वो बूथ वो आयाम ये काम इसे राम राम उसे प्रणाम सब आईटम उनके द्वारा
हो रहे थे लेकिन टिकट वाली सूची के बाद पता नही क्या हुया वो बूथ से भी आऊट है
और मिटटी चावल में उनकी कोई रूची नही हैं। जब उदासीनता को लेकर कुरेदा गया
तो मडंल वालों की जुबान खुली। उन्होने कहा कि भाईसाब बहुत कर ली बेगारी अब
वो जिसे चाहे उस सौंप दें जिम्मेदारी। मडंल वाला पद देकर उन्हे लग रहा हो कि मेरा
कद भारी हो रहा है तो वो जिसे चाहें उसे ये जिम्मेदारी सौंप दें। भगवा गढ़ की एक
धरा के मडंल फूल ने साफ कहा कि मडंल वाला कमंडल ये धरा है और जब चाहें वो
इस कमंडल को उठाकर ले जायें। टिकट ना मिलने से पूरी तरह जले भुने बैठे देवतुल्य
ने साफ कहा कि ऐसा है किअब आयाम से लेकर प्रणाम की दुकान बंद कर दी हैं मैनें।
अपोजीशन की पालिटिक्स का भी इतना ही कूल सीन चल रहा हैं
एक भगवा फूल इतनी कूल पालिटिक्स से आहत हैं। किसी सिपाही से लेकर बाबू तक
से ऊंची आवाज में बात नही कर सकते। धरना प्रर्दशन की सोच नही सकते और
अफसर की तो हां मेंं हां के अलावा कुछ और आप्शन ही नही हैं। मन की बात शेयर
करते हुये कहा कि कभी कभी सोचता हूं कि इससे अच्छा तो अपोजीशन का लीडर
बन जाऊं। फिर कहा कि वहां तो और भी बुरे हालात हैं इससे तो फूल में ही राहत हैं।
Discussion about this post