साहब ने चुनाव के दिनों में ही ऐलान कर दिया था कि गंगा की सफाई उनकी प्रथम प्राथमिकता होगी। (ghaziabad hindi news) चुनाव की रणभेरी भी गंगा तट से ही बजी ओर चुनाव जीतने के बाद एक नया मंत्रालय खुला, जिसका नाम रखा गया गंगा पुर्नउद्धार। फायर ब्रांड नेता केंद्रीय जल संसाधन और गंगा पुर्नउद्धार मंत्री बनाया गया। चुनाव जीतने के बाद ना जाने कितना पानी गंगा में बह गया, लेकिन उसका कचरा वहीं का वहीं अटका है। देश की जनता को जुमलों में समझाने वाली पार्टी का एक बार फिर से नया चोचला लेकर हाजिर है।
आमतौर पर मंत्रालय नदी की सफाई के लिए योजना बनाता है, लेकिन उमा भारती ने काशी में गंगा निर्मलीकरण के अन्न के परित्याग का ऐलान कर दिया। सारे बड़े चकित हुए कि अरे सांध्वी मंत्री ऐसे तो गंगा के लिए जान दे देंगी, लेकिन गंगा अपनी जगह और चोंचले अपनी जगह, लिहाजा सांध्वी ने ऐलान किया कि अरे मुर्खो गंगा के लिए रोटी छोड़ी हैं फल थोड़ी ना छोड़े हैं। इसलिए गंगा के निर्मलीकरण के लिए वे 2 अक्टूबर तक रोटी न खाकर सेब, केले, पपीते आदि खायेंगी। हमनें सुना था कि दूषित फैक्ट्रियों के पानी को नदी में गिरने से रोकने पर घाटो पर साफ सफाई रखने से गंगा साफ होती है, पर मोदी की सरकार में पता चला कि सेब और केले खाने से भी गंगा साफ होती है।
2 अक्टूबर को निर्मलीकरण के लिए सरकार ने साधू संतो और तीर्थ पुरोहितों की सभागिता मांगी है। सेब खाने वाली सांध्वी ने कहा कि उन्होंने अंहकार की भी परित्याग कर दिया है। साधू संत भी आगे आ जायेेंगे, और आम आदमी भी गंगा को साफ करने में अपना योगदान दे देगा, लेकिन गंगा के लिए सेब और केले खाकर जिंदा रह रही राजनीति को इतना जरूर सोचना चाहिए कि इस देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा, रात को भूखे पेट ही सो जाता है। गंगा पतित पावनी है लेकिन आज अपने ही उद्धार की राह देख रही है। देश का मीड़िया राधे मां के लिए कैमरा भेज सकता है, लेकिन गंगा मां की दुर्दशा दिखाने के लिए उसके पास वक्त नहीं है।
सरकार बनने के एक साल बीतने के बाद उस मंत्री को साधुओं की याद आई है, जो खुद साधू कही जाती है, ठोस कदम उठाने से नदी साफ होती है, सेब केले खाने से नहीं।अगर हर आदमी अपने हिस्से की नदी यानी नदी का उतना हिस्सा जिसे वह इस्तेमाल करता है, उसे ही साफ रखने का संकल्प ले ले तो गंगा के मंत्रियों को अन्न छोड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी, अंहकार का त्याग तो देश हित में सभी को करना होगा, उमा भारती ने अंहकार का त्याग करके गंगा पर जो अहसान किया है, उसे पता नहीं संत पुरूहित और साधू कैसे चुका पायेंगे। अपनी बात इन शब्दों के साथ कि…तुम्हारा क्या है तुम तो खैर मखमलों पे सो गये, थकन बिछा बिछा के लोग पत्थरों पर सो गये।
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