- समें कितना है दम, तय होगा रिजल्ट आने के बाद
गाजियाबाद। जिला पंचायत चुनाव का विगुल बज चुका है, 20 सितंबर के आसपास अधिसूचना जारी हो जायेगी। (ghaziabad hindi news) इस चुनाव में इस बार जिस तरह रूची दिखा रहे हैं, उससे यह तय है कि इस चुनाव को वर्ष-2017 में होने वाले चुनाव का सेमिफाइनल माना जा रहा है। खासतौर पर सभी दल ये आंकलन करना चाह रहे हैं, ग्रामीण वोटो का झुकाव उनके दल के प्रति कितना है। भाजपा इस चुनाव को जहां फिर नमो लहर के बूते पर लड़ने की योजना बना रही है, वहीं सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के पास अपने विकास कार्यो का रिपोर्ट कार्ड है। बसपा इस चुनाव से ये जांचना चाह रही है कि जिस मुस्लिम फैक्टर पर वह काफी समय से काम कर रही है उस पर कितनी कामयाबी मिली है। वहीं रालोद इस चुनाव के माध्यम से जाट फैक्टर के बिखराव को समेटने की कौशिश में है। कांग्रेस के लिए यह चुनाव करो या मरो स्थिति जैसा है, क्योंकि कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। ऐसे में जिला पंचायत चुनाव की महत्ता हर दल के अध्यक्ष के लिए महत्तवपूर्ण हो जाती है, क्योंकि अध्यक्ष का नेतृत्व ही तय करेगा, कि उसकी पार्टी की स्थिति पंचायत चुनाव में कैसी है। ऐसे में जिला पंचायत चुनाव प्रमुख दलों के अध्यक्षों की साख का सवाल भी बन गया है।
चुनाव तय करेंगे लंबी पारी
भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष नंदकिशोर गुर्जर के कार्यकाल में यह पहला चुनाव है। हालांकि श्री गुर्जर ने धरने प्रदर्शन आन्दोलनों से अपनी सक्रियता दिखाई है, लेकिन उनका गांव देहात में क्या नेटवर्क है, यह सब पंचायत चुनाव से ही तय होना है। भाजपा के वरिष्ठ नेता ब्रजपाल तेवतिया को पंचायत चुनाव का प्रभारी बनबाकर नंदकिशोर गुर्जर ने भले ही मजबूत दाव चला है, लेकिन उनके विरोधी इस बात पर नजर बनाये हुए हैं कि जिलाध्यक्ष नंदकिशोर गुर्जर क्या करके दिखाते हैं। माना जा रहा है कि चुनावी हार से नंदकिशोर गुर्जर को झटका लगेगा, और स्थितियां अगर विपरित हुई तो वर्ष-2017 की पारी की कमान इस युवा अध्यक्ष को मिल सकती है।
उपलब्धियों का सच आयेगा सामने
जिला पंचायत चुनाव में सपा पूरे लाव लश्कर के साथ उतरने जा रही है। सरकार की उपलब्धियों के एक लाख कलेंडर संगठन के पास पहुंच चुके हैं, साथ ही जिले की सभी विधानसभा सीट अध्यक्ष भी घोषित हो चुके हैं। सपा के जिलाध्यक्ष साजिद हुसैन फिलहाल हज यात्रा पर हैं और यात्रा से आने के बाद जिला पंचायत चुनाव की कमान संभालेंगे, लेकिन इस सबके बावजूद जिला पंचायत चुनाव को लेकर सपा की स्थिति ठीक नजर नही आ रही है। पंचायत चुनाव से पता चल जायेगा कि उपलब्धियों का सपाईयों ने साईकिल चलाकर कितना प्रचार किया है। पार्टी की पुरानी टीम दोनों अध्यक्षों को पटखनी देने के लिए पूरी ताकत से लगी हुई है। अगर रिजल्ट नैगेटिव आया तो परिवर्तन तय है।
भारती की भविष्य भी दाव पर
बसपा के जिलाध्यक्ष प्रेमचंद भारती का भविष्य इस चुनाव से दाव पर लग गया है क्योंकि एक समय माना जा रहा था कि बसपा पंचायत चुनाव नहीं लडेगी, लेकिन स्थितियां बदल चुकी हैं, पार्टी पूरी तैयारी से मैदान में है। जिलाध्यक्ष होने के साथ श्री भारती बसपा को अपनी सेवाएं विभिन्न पदों पर रहते हुए काफी लंबे समय से दे रहे हैं। सवाल उनकी अध्यक्षी का नही है, सवाल पंचायत चुनावों की जीत का है। अगर पार्टी इसमें सफल होती है तो इनका कद अप्रत्याशित रूप से बढ़ेगा और वर्ष-2017 की कमान भी इनके पास रहेगी। खास बात यह हैं कि संगठन में अच्छे रिजल्ट देने वालों को बसपा सुप्रीमों मायावती हमेशा प्रमोट करती है, जिसका ताजा उदाहरण पूर्व जिलाध्यक्ष एवं वर्तमान में एमएलसी प्रदीप जाटव हैं, जिन्होंने वर्ष-2012 के विधानसभा चुनाव में गाजियाबाद जिले की पांच विधानसभा सीटों में से चार विधानसभा सीट पार्टी की झोली में डाली थी, जिसके बाद प्रदीप जाटव ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वर्तमान में प्रदीप जाटव उत्तराखंड के प्रभारी भी हैं, ऐसे में प्रेमचंद भारती की राह जिलाध्यक्ष से आगे की है, और उस राह को सही दिशा पंचायत चुनाव में मिली जीत ही दिखायेगी।
बहुत कठित डगर है कसाना की
जिला पंचायत चुनाव में कांग्रेस की स्थिति करो या मरो वाली है। प्रदेश में कांग्रेस को दोबारा से जीवत करने की दिशा में काम किया जा रहा है और पार्टी के वरिष्ठ नेता निरंतर सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं और जनता का रूझान पार्टी की ओर करने में किया जा रहा है। जनपद गाजियाबाद में कांग्रेस के लिए भी जिला पंचायत किसी चुनौती से कम नही है। कांग्रेस के जिलाध्यक्ष हरेंद्र कसाना संगठन प्रमुख के रूप में पहला चुनाव देख रहे हैं, ऐसे में उनके लिए पंचायत चुनाव बहुत महत्तवपूर्ण हैं। श्री कसाना की राह में उनके विरोधी भी कांटा बिछाने का काम कर रहे हैं ऐसे में खुद को एक सुलझे हुए नेता के रूप में स्थापित करना हरेंद्र कसाना के लिए एक चुनौती होगा, और पंचायत चुनाव में कांग्रेस को जीत मिलेगी, तो निश्चित रूप से श्री कसाना का कद बढ़ जायेगा।
वजूद को कायम रखना है चुनौती
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में रालोद का डंका बजता रहा है, इस बार पार्टी के लिए विपरित स्थितियां हैं। ऐसे में चुनाव में सफलता के कार्यक्रम को जारी रखना किसी चुनौती से कम नहीं है। जिला पंचायत चुनाव में रालोद के लिए इस बार अग्निपरिक्षा होगी। फिलहाल रालोद के जिलाध्यक्ष चौधरी मनवीर सिंह लंबे समय से राजनीति कर रहे हैं और रालोद की राजनीति ग्रामीण क्षेत्रों से होकर गुजरती है ऐसे में मनवीर सिंह के लिए चुनाव जीतना संजीवनी देने वाला होगा। अगर पंचायत चुनाव में रालोद को सफलता मिलती है तो निश्चित रूप से चौधरी मनवीर सिंह का कद रालोद प्रमुख चौधरी अजीत सिंह के सामने बढ़ेगा और आगे उन्हें महत्तवपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी जायेगी।
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