वरिष्ठ संवाददाता (करंट क्राइम)
गाजियाबाद। कांग्रेस के पूर्व पार्षद मनोज चौधरी का कहना है कि नगर निगम के नए सदन का गठन हुए चार महीने का समय हो गया है। लेकिन चार माह बीतने के बाद भी बोर्ड बैठक का ना होना लोकतंत्र में चिंता का विषय है। कई पार्षद पहली बार चुनकर निगम के सदन में पहुंचे है। ऐसे में जब बोर्ड बैठक ही नहीं होगी तो वह नगर निगम की कार्य प्रणाली कैसे समझ पायेंगे। दिसंबर, 2022 में सदन का कार्यकाल पूरा होने से मार्च 2023-24 के लिए नगर निगम के बजट को भी बोर्ड की मंजूरी आज तक नहीं मिल पाई है। हालांकि जिलाधिकारी, गाजियाबाद ने आंशिक रूप से मार्च तक बजट को मंजूरी दी थी, बिना बजट पास करे नगर निगम कैसे चल रहा है यह समझ से परे है। सिर्फ कार्यकारिणी मीटिंग में ही बजट पास हुआ है, बोर्ड मीटिंग में बजट पास कराए बिना ही नगर निगम, गाजियाबाद में विकास कार्य कैसे करवा रहा है, यह नगर निगम की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान है। क्योंकि मई में नया सदन चुनकर आ गया है तो नगर निगम को अपना बजट सदन से पास करवाना चाहिए। गाजियाबाद की महापौर सुनीता दयाल ने पिछले चार महीने में भ्रष्टाचार के खिलाफ जमकर आवाज उठाई और कड़ी मेहनत कर कूड़े के खेल में भ्रष्टाचार को पकड़ा। लेकिन जिस कंपनी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई गई, वह संस्था आज भी नगर निगम का गाजियाबाद में कूड़ा उठाने का कार्य कर रही है। मनोज चौधरी का कहना है कि कूड़े का खेल सिर्फ अखबारों की सुर्खियां बन कर रह जाएगा। क्या विपक्ष के पार्षदों को एक मंच पर आकर अपनी आवाज बोर्ड मीटिंग के लिए नहीं उठानी चाहिए। आखिर क्या कारण है कि गाजियाबाद की महापौर बोर्ड मीटिंग नहीं करवाना चाहती। लोकतंत्र में पार्षदों के लिए सदन ही अपने क्षेत्र के विकास कार्य के लिए व अपने वार्ड की समस्या पर आवाज उठाने का उपयुक्त माध्यम है और उसी माध्यम को पार्षदों से छीना जा रहा है।
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