संघ प्रमुख मोहन भागवत का कथन न केवल तार्किक बल्कि ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित

उनके कथन से मुस्लिम समाज के कुछ लोगों में भी भरोसा जगा है: बालेश्वर त्यागी
गाजियाबाद (करंट क्राइम)। एक समय में राजनीति में हम नारा लगाते थे-अंधेरे में एक चिंगारी, अटल बिहारी अटल बिहारी। आज सामाजिक क्षेत्र में जो द्वंद है, सामाजिक व्यवस्था दो राहे पर दिग्भर्मित सी खड़ी है उस समय देश में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी एक प्रकाश का विश्वास बन कर उभरे हैं। चाहे हिन्दू समाज में समाज को विभाजित करने वाले जातीय, ऊंच नीच, छोटा बड़ा, छुआछात जैसे विषय हों या भारत के मुसलमानों को लेकर उठे सवालों पर जिनसे देश और समाज विभाजित होता है पर अगर कोई स्पष्ट और तार्किक बोले हैं तो केवल श्री मोहन भागवत जी हैं। आज श्री मोहन भागवत जी पर देश के उन तमाम लोगों का भरोसा जगा है जिनको कई कारणों से विभक्त करने के प्रयास हो रहे हैं। श्री मोहन भागवत जी का कथन न केवल तार्किक है बल्कि ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित और धर्म सम्मत भी है।
श्री मोहन भागवत जी ने मुंबई में संत शिरोमणि रविदास जी की 647वीं जयंती के अवसर पर अपने सम्बोधन में कहा है कि जातियां ईश्वर ने नहीं बनाई । ईश्वर के सामने सभी जातियां और धर्म समान हैं। ये जातियां तो विद्वानों (पंडितों) ने बनाई । ये कथन एक दम सही है । जातिव्यवस्था न तो प्राकृतिक है और न मानवता और समाज के हित में है । किसी समय में उन विद्वानों ने जिन्होंने ने समाज की व्यवस्था के संचालन के लिए कुछ व्यवस्था बनाई होगी। उसमें से जातिवाद विकसित हुआ है । स्पष्ट है कि जातिव्यवस्था ईश्वर निर्मित नहीं है । मानव निर्मित है । इसलिए जन्मगत भी नहीं है। एक समय में ये कर्मगत थी लेकिन कालांतर में इसे जन्मगत भी बना दिया । और फिर जो सबसे ज्यादा श्रम का काम करते हैं उन्हें छोटा और जो बौद्धिक काम करते हैं ,उन्हें बड़ा बना दिया गया।
ये समाजिक विकृतियां हैं। अगर समाज को एक जुट करना है ,उसे शक्तिशाली और समर्थ बनाना है तो इन सभी समाजिक बुराइयों को दूर करना ही पड़ेगा। श्री मोहन भागवत जी ने इन सब बुराइयों की ओर इंगित किया है और उन्हें समाप्त करने का आह्वान किया है। श्री मोहन भागवत जी का ये प्रयास देश और समाज को सशक्त बनाने के लिए बहुत आवश्यक है। सारे हिन्दू समाज को श्री मोहन भागवत जी के प्रयासों के साथ जुड़ना चाहिए। एक एक शब्द को पकड़ कर,अर्थ का अनर्थ करके समाज की एकता के प्रयासों को विफल करने से बचना चाहिए।
मेरा मत है कि वर्तमान समय में आम आदमी के लिए जातिवाद शादी विवाह तक सीमित हो गया है। शहरीकरण ने जातीय व्यवस्था को अप्रसांगिक बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है । अब जातिवाद को बढ़ावा देने के लिए दो ही वर्ग सबसे ज्यादा प्रयास करते हैं । एक राजनेता ,वोट के लिए जातिवाद को खूब बढ़ावा देते हैं और दूसरे सरकारी कर्मचारी अधिकारी, वे भी मलाईदार पोस्टिंग के लिए जातीय व्यवस्था को खूब खाद पानी देते हैं।
श्री मोहन भागवत जी के कथन से मुस्लिम समाज के कुछ लोगों में भी ये भरोसा जगा है कि देश में एक व्यक्ति ऐसे हैं जो उनके सम्बन्ध में भी समाज की एकजुटता के लिए बोलते हैं। वैसे श्री मोहन भागवत जी जो बोलते हैं वह एक व्यक्ति नहीं हैं, वह पूरा भारतीय विचार दर्शन है।ये ही हिंदुत्व है जिसे श्री मोहन भागवत बोलते हैं। इसे विकृतियों से बचाकर और निस्वार्थ समाज और राष्ट्र के हित मे सही परिपेक्ष्य में प्रस्तुत करने के साहस की सर्वत्र प्रशंसा होनी चाहिए।
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