पटना| बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद सभी राजनीतिक दल अपने नए ‘दोस्तों’ के साथ चुनावी समर में खम ठोंकने के लिए तैयार हो रहे हैं। (bihar latest news) कई पार्टियां जहां अपने नए दोस्तों के साथ चुनावी सफर पर आगे बढ़ चुकी हैं तो कई पार्टियां अब भी अपने ‘दोस्तों’ की तलाश में हैं।
वैसे इस चुनाव में तय है कि मुकाबला गठबंधनों के बीच होगा और सभी गठबंधनों के लिए यह चुनाव अग्नि परीक्षा होगी।
इस चुनाव में मुख्य मुकाबला जहां सत्ताधरी गठबंधन जनता दल (युनाइटेड), राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस तथा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के बीच माना जा रहा है वहीं वामपंथी विचारधारा के छह दलों ने एक मोर्चा बनाकर इस लड़ाई को और रोचक बना दिया है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और समाजवादी पार्टी भी नए मोर्चे के रूप में चुनावी मैदान में उतरने को हाथ-पांव मार रही है।
गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव में राजनीतिक समीकरणों का आकार कुछ दूसरा था। पांच साल बाद मतदाताओं के सामने सियासी पार्टियां नए मित्रों के साथ सामने होगी। पिछले चुनाव के महारथी इस चुनाव में दूसरो शिविरों में नजर आएंगे वहीं कई योद्घा भी दोस्त से दुश्मन बन चुके हैं।
पिछले चुनाव में राजग खेमे में जद (यू) व भाजपा एक साथ थी तो राजद और कांग्रेस अलग-अलग दूसरी ओर। भाकपा, माकपा और भाकपा (माले) जैसी वाम पार्टियां भी अपनी स्वतंत्र हैसियत के साथ चुनाव मैदान में थीं। हालांकि कुछ सीटों पर उनके बीच तालमेल भी हुआ था।
इस चुनाव में जद (यू), राजद और कांग्रेस एक साथ होगी तो भाजपा, लोजपा, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) उनके सामने नजर आएगी। ऐसे में चुनाव के दौरान सामाजिक समीकरणों के लिए चर्चित बिहार के इस चुनाव में बदलते इस राजनीतिक समीकरण का सामाजिक समीकरणों में कितना प्रभाव पड़ेगा यह देखने वाली बात होगी।
दरअसल, इन दोनों गठबंधनों की दावेदारी सामाजिक आधारों को अपने-अपने पक्ष में बताने के उनके तर्क पर टिकी है। जद (यू)-राजद महागठबंधन को भरोसा सामाजिक न्याय की ताकतें और न्याय के साथ विकास पर है वहीं राजग को अपने पारंपरिक आधारों के अलावा केन्द्र सरकार के कार्यो पर टिकी है।
राजद के प्रवक्ता मनोज झा ने आईएएनएस को बताया कि इस चुनाव में मुकाबला दो गठबंधनों के बीच है। एक गठबंधन सामाजिक समरस और विकास की बात करता है जबकि दूसरा गठबंधन सामाजिक न्याय पर कुंडली मारकर बैठकर सीमित लोगों के विकास की बात कर रहा है। ऐसे में अन्य गठबंधनों की बात नहीं की जा सकती।
भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी कहते हैं कि बिहार में नीतीश और लालू के गठबंधन को जनता ने नकारने की तैयारी कर ली है। यहां की जनता कभी जंगल राज-2 नहीं आने देगी। ऐसे में उस गठबंधन का कोई औचित्य नहीं। वे दोनों तो नकारे हुए नेता हैं।
इस चुनावी समर में पहली बार छह वामपंथी दल एक साथ होकर चुनाव मैदान में हैं। वामपंथी दल के नेताओं का कहना है यह मोर्चा तीसरे विकल्प के रूप में मतदाताओं के पास है। आज बिहार में लोग परिवर्तन चाहते हैं और पहली बार वामपंथी दल तालमेल के साथ चुनाव मैदान में हैं।
पिछले चुनाव में वामपंथी पार्टियों को गंभीर धक्के से गुजरना पड़ा था क्योंकि विधानसभा में उसकी मौजूदगी अब तक के न्यूनतम स्तर एक तक पहुंच गई थी। पिछले चुनाव में माकपा ने जहां 30 सीटों पर वहीं भाकपा (माले) ने 104 और भाकपा ने 56 सीटों पर उम्माीदवार उतारे थे, परंतु भाकपा ही एकमात्र सीट जीत पाई थी।
इधर, महागठबंधन से अलग हो चुके समाजवादी पार्टी और राकांपा भी तीसरे मोर्चे के रूप में मतदाताओं के लिए विकल्प देने की तैयारी में है। इस घटनाक्रम से महागंठबंधन को वोटों में बिखराव का भले बड़ा खतरा न हो, पर इससे गैर राजग और गैर राजग महागठबंधन का मोरचा तो खुल ही गया है।
इस चुनाव में कल तक दूसरे शिविरों में कारगर योद्घा के रूप में पहचाने जाने वाले योद्घाओं को भी नकारा नहीं जा सकता। सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव राजद से निष्कासित किए जाने के बाद जन अधिकार मोर्चा बनाकर नीतीश और लालू को किसी भी हाल में हराने का दावा कर रहे हैं। पप्पू को कोसी के इलाके में खास पकड़ वाला नेता माना जाता है। ऐसे में भाजपा के नजदीक होने का आरोप झेल रहे पप्पू महागठबंधन को परेशान करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
इधर, पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि भी समरस समाज पार्टी का गठन कर चुनावी समर में मतदाताओं को एक विकल्प देने का दावा कर रहे हैं वहीं लालू प्रसाद के साले साधु यादव भी अपनी नई भूमिका तलाश रहे हैं।
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