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गुजरात

कहीं मोहरा तो नहीं हैं हार्दिक पटेल

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आरक्षण की मांग पर जाति विशेष का जमावड़ा कर लेना आसान होता है। रोजगार बड़ी समस्या है। इसमें भी सरकारी नौकरी का क्रेज अलग होता है। जब इससे संबंधित सब्जबाग दिखाए जाते हैं तो भीड़ एकत्र होने लगती है। गुर्जर और जाट आंदोलन में भी हुजूम कम नहीं था, जबकि ये जातियां राजस्थान या उत्तर प्रदेश के सीमित क्षेत्र में हैं। फिर भी इनके आरक्षण की मांग संबंधी आंदोलन ने सरकारों की नींद हराम कर दी थी। इन जाति समूह के लोगों ने सड़कों की जगह रेल पटरियों पर आंदोलन चलाया था।

हार्दिक पटेल ने भी एक आसान रास्ता चुना। वह गुजरात के पटेल समुदाय को आरक्षण देने की मांग पर आगे बढ़े और पीछे भीड़ बढ़ती गई, 22 साल की उम्र में वह नेता बन गए। नेता बनने का उन्होंने कोई अन्य रास्ता चुना होता तो उसमें अधिक समय लगता, अधिक संघर्ष करना होता। वह गुजरात क्या राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गए। लेकिन यह तय है कि हार्दिक पटेल के नेता बनने की कीमत पूरे देश को तनाव से चुकानी पड़ सकती है। ऐसे में दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इसका समाधान करना होगा। खासतौर पर देश के युवको को हार्दिक पटेल जैसे जातिवादी मानसिकता के लोगों को नकारना होगा।

आज कई विपक्षी पार्टियां खुश हैं, उन्हें लगता है कि यह परेशानी गुजरात की है। वहां की भाजपा सरकार के सामने संकट उत्पन्न हुआ है। लेकिन यह सोच घातक हो सकती है। कल्पना कीजिए कि देश के अन्य राज्यों में भी आरक्षण की मांग पर ऐसे ही जाति समूह सड़कों या रेल पटरियों पर जमा होने लगे, तो क्या होगा। तब क्या गैर भाजपा पार्टियों की सरकारें चैन से बैठ सकेंगी।

इसमें संदेह नहीं कि वंचित या शोषित वर्ग को आरक्षण का लाभ देकर बराबरी पर लाना उचित है। लेकिन यह भी समझना होगा कि आरक्षण असीमित नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी सीमा भी निर्धारित की है। ऐसे में गुजरात सरकार यदि आरक्षण की नई मांग स्वीकार करती है, तो इसे ओबीसी कोटे के तहत ही किया जा सकता है। यदि इस पर आम सहमति हो तब आपत्ति नहीं हो सकती। लेकिन इससे ऐसे आंदोलनों से समस्या पेंचीदा भी हो सकती है। गुजरात में इसके लक्षण दिखाई भी देने लगे हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग ने पटेल समुदाय को आरक्षण देने का विरोध किया है। उनके अनुसार कुल मिलाकर यह समुदाय गुजरात में सवर्ण श्रेणी का रहा है।

ऐसे में चर्चा तो यह भी है कि इस भीड़ में भाजपा विरोधी तत्व भी बड़ी संख्या में शामिल हैं। इनका पटेल संप्रदाय से कोई लेना-देना नहीं, ये गुजरात में अराजकता फैलाना चाहते हैं। इसके तार गुजरात के बाहर तक जुड़े हो सकते हैं। हार्दिक कभी अरविंद केजरीवाल की कार चला चुके हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि आंदोलन की स्टेयरिंग हार्दिक नहीं, किसी अन्य के हाथ में हो। आर्थिक रूप से इस वर्ग को संपन्न माना जाता है। गांव-शहर सभी जगह इस वर्ग का प्रभाव है। हीरे के कारोबार में इनका वर्चस्व है।

इस वर्ग का नौकरी में कम प्रतिशत होने का कारण यह नहीं कि इनका शोषण होता रहा है, या यह वंचित वर्ग रहा है, जिसे पढ़ने का मौका नहीं मिला। यह शोषित, वंचित वर्ग नहीं है। गुजरात में इस समुदाय ने स्वेच्छा से व्यवसाय को तरजीह दी। नौकरी पर कम ध्यान दिया।

जाहिर है कि यहां समस्या अलग है। यदि हार्दिक पटेल अपने समुदाय की इस स्थिति में बदलाव चाहते थे, और उन्हें लगता था कि अब व्यवसाय की जगह नौकरी पर अधिक ध्यान देना चाहिए, तो उन्हें इसके मद्देनजर अपने जाति समुदाय में जन आंदोलन चलाना चाहिए था। उन्हें बताना चाहिए था कि उनका समुदाय अब नौकरी प्राप्त करने को अपना लक्ष्य बनाए। लेकिन जन जागरण का ऐसा अभियान कठिन होता, वह आज की तरह रातों-रात हार्दिक को इतना चर्चित न बना देता। इसलिए उन्होंने जातीय तनाव का रास्ता चुना। इसमंे सफलता की नहीं, लेकिन उनके नेता की गारंटी अवश्य थी। इसमें वह सफल रहे।

जातीय मानसिकता से प्रेरित आंदोलन ने हार्दिक पटेल को अवश्य शानदार रोजगार दे दिया, वह राजनीति मंे चल निकले। लेकिन गुजरात के पटेल समुदाय को कोई बड़ा लाभ नहीं मिलेगा। यदि आरक्षण की मांग मान ली गयी, तब भी यह देखना चाहिए कि अब सरकारी नौकरियों की संख्या कम हो रही है। इसमें पहले से ही अन्य पिछड़ी जातियां आरक्षण में शामिल हैं उसमें गुजरात के पटेल जुड़ गए तो कितना लाभ मिलेगा। जो लोग अब तक पढ़ाई की जगह व्यवसाय और खेती को महत्व देते रहे हैं, वह आरक्षण का कितना लाभ उठा सकेंगे। इनमें से किसी बात का जवाब हार्दिक के पास नहीं है।

हार्दिक की बातों पर विश्वास करे कि गुजरात के सवा करोड़ लोग उनके साथ हैं, तो यह भी मानना होगा कि लगभग पांच करोड़ लोग उनके विरोध में है। वह उनके आंदोलन का विरोध कर रहे हैं। जवाबदेह केवल हार्दिक ही नहीं है।

उनके कथन ने खासतौर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी जवाबदेह बनाया है। हार्दिक ने इन्हें अपना माना। अब इन्हंे बताना होगा कि क्या ये ऐसे जातिवादी आंदोलन का समर्थन करते हैं? यदि हां, तो यह बताएं कि यदि इनके प्रदेशों में भी आरक्षण की मांग को लेकर ऐसे आंदोलन हुए तो क्या वे उसका स्वागत करेंगे, यदि नहीं तो खुलकर विरोध करें, जिससे अन्य जाति समूह इससे प्रेरणा न लें।

गुजरात

भारतीय सीमा से लगे चीन के 680 गांव ‘चिंता का विषय’: विशेषज्ञ

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गांधीनगर। ग्लोबल काउंटर टेररिज्म काउंसिल के सलाहकार बोर्ड ने एक चौंकाने वाले खुलासे में जानकारी दी है कि चीन ने भारत के साथ अपनी सीमा पर 680 ‘जियाओकांग’ (समृद्ध या संपन्न गांव) बनाए हैं। ये गांव भारतीय ग्रामीणों को एक बेहतर चीनी जीवन की ओर आकर्षित करने के लिए हैं, ये भी बीजिंग के लिए अतिरिक्त आंख और कान के रूप में काम करने वाले हैं।

“चीन ने लगभग 680 जि़याओकांग का निर्माण किया है, जिसे वे अपनी सीमाओं पर और भूटान की सीमाओं पर गांव कहते हैं। इन गांवों में उनके लोग रहते हैं और स्थानीय भारतीय आबादी को प्रभावित करते हैं कि चीनी सरकार कितनी अच्छी है।
ग्लोबल काउंटर टेररिज्म काउंसिल के सलाहकार बोर्ड के एक सदस्य कृष्ण वर्मा ने आईएएनएस को बताया, “ये उनकी ओर से खुफिया अभियान, सुरक्षा अभियान हैं। वे ‘लोगों को भारत विरोधी बनाने’ की कोशिश कर रहे हैं। इसलिए हम अपने पुलिस कर्मियों को इन प्रयासों के बारे में प्रशिक्षण दे रहे हैं और उन्हें उनकी हरकतों का मुकाबला करने के लिए संवेदनशील बना रहे हैं।”
भारत सरकार (जीओआई) के पूर्व विशेष सचिव वर्मा शुक्रवार को गांधीनगर में राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय (आरआरयू) में 16 परिवीक्षाधीन उप अधीक्षकों (डीवाईएसपी) के लिए 12 दिवसीय विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन के अवसर पर एक कार्यक्रम में थे। वह आरआरयू में मीडिया के साथ एमेरिटस रिसोर्स फैकल्टी, स्कूल ऑफ इंटरनेशनल कोऑपरेशन, सिक्योरिटी एंड स्ट्रैटेजिक लैंग्वेजेज भी हैं।
वर्मा ने कहा, “इसलिए आरआरयू ने अरुणाचल प्रदेश पुलिस के लिए एक विशेष दर्जे का पाठ्यक्रम तैयार किया है, ताकि घुसपैठ के चीनी प्रयासों का मुकाबला किया जा सके। आरआरयू डिजाइन किया गया कार्यक्रम पूर्वोत्तर राज्य की जरूरतों के लिए खास है और अरुणाचल प्रदेश डीजीपी आरपी उपाध्याय के परामर्श से बनाया गया था, जो दो महीने पहले गुजरात आए थे।”
आरआरयू सत्रों ने कर्मियों को न केवल फोरेंसिक और जांच तकनीकों में प्रशिक्षित किया, बल्कि डार्क वेब, साइबर अपराध और अपराध स्थल प्रबंधन, इंटरनेट बैंकिंग, धोखाधड़ी, फर्जी समाचार का पता लगाने, चीनी और पूर्वोत्तर में पुलिस अधिकारियों के लिए आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों का परिचय भी दिया।
वर्मा ने आगे कहा, “वे (चीनी) प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बहुत उन्नत हैं, विशेष रूप से इंटरनेट और सोशल मीडिया। वे भारत के लोगों को गुमराह करने के लिए, झूठी खबरें फैलाने के लिए सोशल नेटवकिर्ंग साइटों का उपयोग कर रहे हैं। इसलिए हमने उन्हें ये सिखाया। पूर्वोत्तर सीमा क्षेत्र हैं बहुत संवेदनशील है और उनके लिए तोड़फोड़ के ऐसे प्रयासों के बारे में जानना नितांत आवश्यक है।”
साथ ही वर्मा ने यह भी कहा, “हम उन्हें मंदारिन (चीनी भाषा) भी सिखा रहे हैं क्योंकि घुसपैठ करने वाले लोग इसे बोलते हैं। विश्वविद्यालय ने एक साल का पाठ्यक्रम तैयार किया है जो भाषा का बुनियादी ज्ञान देता है। भविष्य में आरआरयू की भी योजना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुशल मार्गदर्शन में, पोस्ट ग्रेजुएशन के पांच साल के पाठ्यक्रम के साथ आने वाले हैं, जहां वे अपनी संस्कृति, इतिहास, उनकी जरूरतों, आदतों, उनकी नीतियों को समझेंगे।”

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गुजरात

हार्दिक पटेल ने गुजरात के सीएम से पाटीदारों के खिलाफ मामले वापस लने की मांग की

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गांधीनगर। पाटीदार नेता और गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने 2015 में पाटीदार आंदोलन से संबंधित लंबित मुद्दों और मांगों को उठाते हुए गुजरात के नवनियुक्त मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को पत्र लिखा है, जो पाटीदार समुदाय से हैं। पत्र में हार्दिक पटेल ने पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (पीएएएस)से जुड़े विभिन्न लंबित मुद्दों को लेकर अपनी पूर्व की मांगों को दोहराया है।

हार्दिक पटेल ने पत्र में लिखा, “अगर आरक्षण आंदोलन (उनके नेतृत्व वाली पाटीदार अनामत आंदोलन समिति द्वारा शुरू किया गया) अनुचित था, तो सरकार को आरक्षण का प्रावधान नहीं करना चाहिए था। उन्होंने राजद्रोह के आरोपों सहित अपने खिलाफ दर्ज करीब 28 मामलों का भी जिक्र किया। उन्होंने पत्र में कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी के खिलाफ राजद्रोह का आरोप नहीं लगाया जा सकता है।  गुजरात में जुलाई 2015 में शुरू हुए पाटीदार आरक्षण आंदोलन के बाद 438 मामले दर्ज किए गए। उस आंदोलन के दौरान चौदह पाटीदार युवाओं की जान चली गई थी।
हार्दिक पटेल ने पत्र में कहा कि पीएएएस आंदोलन के बाद गुजरात सरकार के गृह विभाग ने 391 मामले वापस लेने का वादा किया था, लेकिन यह आश्वासन अभी तक पूरा नहीं हुआ है। पटेल ने कहा कि उनके आंदोलन के बाद केंद्र सरकार ने पिछड़ी सवर्ण जातियों के लिए 10 फीसदी आरक्षण की घोषणा की थी। हार्दिक पटेल ने कहा कि यह साबित करता है कि आरक्षण आंदोलन गलत नहीं था। गुजरात सरकार को नैतिक रुख अपनाते हुए पाटीदारों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेना चाहिए।
उन्होंने पत्र में कहा कि सरकार ने अभी भी पाटीदार आंदोलन के दौरान मारे गए लोगों के परिवार के सदस्यों के लिए नौकरी जैसी हमारी मांगों को पूरा नहीं किया है। पत्र में यह भी कहा गया है कि यह पाटीदार समाज के साथ विश्वासघात है। राज्य में एक करोड़ से अधिक पाटीदार हैं जो गुजरात के सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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गुजरात में आज होगा मंत्रिमंडल का विस्तार, इन नए चेहरों को मिल सकती है कैबिनेट में एंट्री

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गांधीनगर। गुजरात के सीएमओ के बुधवार को किए गए एक ट्वीट के मुताबिक, मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व में गुजरात के नए मंत्रिमंडल का शपथ ग्रहण समारोह गुरुवार दोपहर 1.30 बजे राजभवन में होगा।

राज्य में अगले साल होने वाले चुनावों में चुनावी जीत के लिए भाजपा पाटीदार पटेल पर भरोसा कर रही है।
घाटलोदिया से पहली बार विधायक भूपेंद्र पटेल ने सोमवार को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। रविवार को प्रदेश भाजपा मुख्यालय में उन्हें सर्वसम्मति से भाजपा विधायक दल का नेता चुना गया।
कयास लगाए जा रहे हैं कि भूपेंद्र पटेल की कैबिनेट में सभी नए चेहरे होंगे। यह भी संभावना है कि युवा विधायकों को कैबिनेट में शामिल किया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक सभी मौजूदा चेहरों को बाहर किए जाने की संभावना है।गुरुवार को शपथ ग्रहण से पहले प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सीआर पाटिल ने बुधवार को गांधीनगर स्थित अपने आवास पर एक के बाद एक बैठक की।

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