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मध्यप्रदेश

मप्र सरकार ने बनाया काला कानून : सेक्युलर मंच

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भोपाल,| मध्य प्रदेश सरकार सरकार द्वारा मानसून सत्र में पारित किए गए ‘मप्र तंग करने वाली मुकदमेबाजी (निवारण) विधेयक 2015’ को राष्ट्रीय सेक्युलर मंच ने काला कानून करार दिया है और कहा है कि राज्य सरकार ने व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले की व्यापक जांच के चलते यह कानून बनाने की कवायद की है, ताकि कोई भी व्यक्ति सरकार की कारगुजारियों के खिलाफ न्यायालय में जनहित याचिकाएं दायर न कर सके। (madhya pradesh hindi news) राजधानी भोपाल में मंच के संयोजक एल.एस. हरदेनिया ने अन्य सदस्यों की मौजूदगी में गुरुवार को संवाददाताओं से चर्चा करते हुए कहा कि राज्य सरकार ने जो विधेयक पारित किया है, उसमें किए गए प्रावधानों के मुताबिक, महाधिवक्ता की सहमति पर ही उच्च न्यायालय किसी जनहित याचिका पर सुनवाई कर सकेगा।

उन्होंने आगे कहा कि यह कानून व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन है। जब सरकार व प्रशासन बात नहीं सुनता है, तभी भी पीड़ित न्यायालय की शरण में जाता है, मगर राज्य सरकार ने इस विधेयक के जरिए न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप किया है। इस विधेयक पर अभी राज्यपाल के हस्ताक्षर हालांकि नहीं हुए हैं, मंच राज्यपाल से अनुरोध करेगा कि वह इस विधेयक पर हस्ताक्षर न करें।

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इस कानून में इस बात का भी प्रावधान है कि अगर महाधिवक्ता संबंधित व्यक्ति को परेशान करने वाला करार दे देता है तो न्यायालय उस पर याचिका दायर करने से प्रतिबंधित भी कर सकता है।

हरदेनिया ने आगे कहा कि इस समय सरकार की व्यापमं घोटाले को लेकर किरकिरी हो रही है और कई याचिकाएं उच्च न्यायालय में दायर है, जिन पर सुनवाई चल रही है, इन याचिकाओं के चलते कुछ लोगों के प्रभावित होने की आशंका है, लिहाजा सरकार ने इस कानून के जरिए अपने लिए सुरक्षा कवच खोजने की कोशिश की है। मंच इसका हर स्तर पर विरोध करेगा।

मंच के अन्य सदस्यों- पूर्णेदु शुक्ल, शैलेंद्र शैली, पी.सी. शर्मा व जे.पी. धनौपिया ने कहा कि यह कानून भ्रष्टाचार करने वालों और गैर कानूनी क्रियाकलाप में लिप्त लोगों को बचाने के मकसद से बनाया जा रहा है।

ज्ञात हो कि मानसून सत्र में 22 जुलाई को सरकार ने कांग्रेस के भारी हंगामे के बीच कुल छह विधेयक पारित किए थे, जिनमें से एक ‘तंग करने वाली मुकदमेबाजी (निवारण) विधेयक-2015’ भी था। इस पर राज्यपाल के हस्ताक्षर होने अभी बाकी हैं।

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कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने संघ की तुलना ‘दीमक’ से की

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इंदौर । मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना दीमक से की है। इंदौर में युवक कांग्रेस के कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री सिंह ने आरएसएस पर हमला करते हुए कहा, “आप ऐसे संगठन से लड़ रहे हैं, जो ऊपर से नहीं दिखता। जैसे घर में दीमक लगती है, यह उसी तरह से काम करता है।”

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा, “मैं समझता हूं कि जब यह कहूंगा, तो सबसे ज्यादा गालियां खाऊंगा, क्योंकि मैंने आरएसएस की तुलना दीमक से की है।”
उन्होंने कहा कि संघ रजिस्टर्ड संस्था नहीं है। इसकी सदस्यता नहीं है, कोई अकाउंट नहीं है। संघ का कोई कार्यकर्ता जब आपराधिक कृत्य में पकड़ा जाता है, तो वे कहते हैं कि हमारा सदस्य ही नहीं है। यह ऐसा संगठन है, जो गुपचुप और छुपकर काम करता है। ये लोग केवल कानाफूसी करते हैं और गलत भावना फैलाते हैं। कभी आंदोलन नहीं करते और न ही किसी की समस्या के लिए लड़ते हैं।
उन्होंने सीधे तौर पर संघ पर हमला करते हुए कहा, “आरएसएस की विचारधारा नफरत की है। हिंदुओं को खतरा दिखाकर डर पैदा करो और डर पैदा करके बताओ कि हम ही तुम्हारी रक्षा कर सकते हैं, बाकी कोई नहीं कर सकता। आज जब राष्ट्रपति से लेकर नीचे तक के पदों पर हिंदू हैं, तो फिर खतरा किससे है?”

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मानहानि मामले में मध्य प्रदेश की अदालत ने सीएम सहित दो अन्य को जारी किया नोटिस

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भोपाल। मध्य प्रदेश की एक जिला अदालत ने हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा द्वारा दायर मानहानि मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने चौहान के अलावा शहरी विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वी.डी. शर्मा को भी उसी मामले में नोटिस जारी किया है, जिसमें कांग्रेस नेता ने ओबीसी आरक्षण के संबंध में ‘गलत तथ्यों का प्रचार’ करके उन्हें बदनाम करने का आरोप लगाया है।

कांग्रेस सांसद ने सर्वोच्च न्यायालय में ओबीसी आरक्षण मामले के बारे में कुछ टिप्पणियों को लेकर चौहान और दो अन्य के खिलाफ जबलपुर जिला अदालत में मामला दायर किया था। तन्खा ने कहा कि अदालत ने उनसे जवाब मांगा है और अगली सुनवाई की तारीख 25 फरवरी तय की है।
तन्खा ने कहा कि “मुझे अपने वकील (वाजिद हेडर) से जानकारी मिली है कि 10 करोड़ के मूल्य के नुकसान के हमारे दावे में, जबलपुर कोर्ट ने मुख्यमंत्री और अन्य प्रतिवादी पक्षों को अपना जवाब प्रस्तुत करने के लिए नोटिस जारी किया है। अदालत मामले पर 25 फरवरी को सुनवाई करेगी। तब से, सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) को स्थानीय निकाय में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षित सीटों पर मतदान प्रक्रिया पर रोक लगाने और सामान्य वर्ग के लिए उन सीटों को फिर से अधिसूचित करने का निर्देश दिया। सरकार ने पंचायत चुनाव रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में तन्खा पर ओबीसी आरक्षण कोटा का विरोध करने का आरोप लगाया है।
यह तब शुरू हुआ, जब तन्खा स्थानीय कांग्रेस नेताओं द्वारा दायर एक याचिका के वकील के रूप में पेश हुए, जिसमें 2014 के रोटेशन और आरक्षण के आधार पर राज्य में पंचायत चुनाव कराने के लिए भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के अध्यादेश को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने राज्य में समुदाय (ओबीसी) को आरक्षण प्रदान करने में बाधा उत्पन्न करने के लिए एक-दूसरे पर आरोप लगाए। राज्य विधानसभा के हाल ही में संपन्न शीतकालीन सत्र के दौरान ओबीसी मुद्दे पर घंटों बहस हुई थी।

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सावित्रीबाई फुले को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने याद किया

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भोपाल। छुआछूत मिटाने, विधवा विवाह कराने और महिलाओं को शिक्षित करने का अभियान चलाने वाली सावित्रीबाई फुले कि आज सोमवार को जयंती है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनके छायाचित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें याद किया।

मुख्यमंत्री चौहान ने महान समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले की जयंती पर उन्हें नमन किया। मुख्यमंत्री चौहान ने निवास कार्यालय स्थित सभागार में उनके चित्र पर माल्यार्पण कर पुष्पांजलि अर्पित की।
सावित्री बाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थी। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जिया, जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह कराना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। सावित्रीबाई फुले ने 3 जनवरी 1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की 9 छात्राओं के साथ महिलाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की । लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी।
सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ स्वयं पढ़ी अपितु दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया। दस मार्च 1897 को प्लेग के कारण सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया।

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