धन के बारे में, आयु के बारे में, सम्भोग के बारे में और स्वादिष्ट भोजन के बारे में सभी मनुष्य असंतुष्ट होकर ही इस संसार से...
सर्प के दांत में विष होता है मक्खी के सर में विष होता है बिच्छु के पूंछ में विष होता है दुष्ट मनुष्य के सब अंगो...
मजबूरी में दुर्बल व्यक्ति सज्जन बन जाता है, निर्धन ब्रम्हचारी बन जाता है, रोगी ईश्वर भक्त बन जाता है और वृद्धा स्त्री पतिव्रता बन जाती है।
अन्न और जल से बड़ा कोई दान नहीं है। द्वादशी के सामान कोई तिथि नहीं है, गायत्री से बड़ा कोई मंत्र नहीं है और माता से...
जो गुरु अपने शिष्य को सच्चा ज्ञान एवं मार्गदर्शन देता है उसके चित्त के शंशय का नाश करता है शिष्य को जीने का तरीका सिखा देता...
राजा, अग्नि, गुरु और स्त्री इन सबका सेवन मध्यावस्था से करना चाहिए (न इनके बहुत पास रहे न बहुत दूर रहे) क्योंकि बहुत पास रहने से...
बिना अपनी आय का विचार किये व्यय करने वाला, सहायकों के बिना युद्ध ठान लेने वाला, हर स्त्री या पुरुष से सहवास के लिए उतावला रहने...
जस घर में ब्राह्मण के पैर नहीं धोये जाते, वेद मंत्र स्वाहा स्वधा प्रार्थना के स्वर नहीं सुनाई देते, बड़ो को सम्मानसूचक शब्द नहीं पुकारे जाते,...
मनुष्य को चाहिए की वह आँख से देखकर धरती में पैर रखे, वस्त्र से छानकर पानी पिए, शास्त्र से शुद्ध करके वाणी बोले और सोच विचार...
लोभी का शत्रु याचक यानि मांगने वाला है तथा समझदार व्यक्ति मूर्खों का शत्रु होता है। व्यभिचारी का शत्रु उसका जीवनसाथी और चोर का शत्रु चन्द्रमा...