वरिष्ठ संवाददाता (करंट क्राइम)
गाजियाबाद।
इन्दिरापुरम का इलाका दिल्ली से सटा इलाका है। यहां चार नगर निगम वार्ड हैं और जनता यहां अपने पार्षद को चुनती है। पार्षद निगम के सदन में जाते हैं और निगम के पार्षद अपने वार्ड में विकास कराते हैं। लेकिन इस इलाके की सबसे अजीब कहानी है क्योंकि यहां जनता पार्षद भी चुनती है, पार्षद निगम के सदन भी जाते हैं लेकिन ये पार्षद विकास नहीं करा पाते। ऐसा नहीं है कि ये सदन में आवाज नहीं उठाते। ऐसा भी नहीं कि ये मेयर के पास नहीं जाते लेकिन हकीक त ये है कि ये सबके पास जाते हैं मगर ये पार्षद होते हुए भी विकास वाले काम नहीं करा पाते। वजह ये है कि यहां के चारो वार्ड जीडीए के अंडर में आते हैं। नगर निगम में इन वार्डों को टेकओवर नहीं किया है जिसकी वजह से विकास की फाईल इधर से उधर घूमती है। मंगलवार को भी इन्दिरापुरम के चार पार्षद अफसरों की चौखट पर धक्के खा रहे थे। वो अपने क्षेत्र की समस्याओं को लेकर अधिकारियों के पास गये। वो अपने क्षेत्र की समस्याओं को लेकर मेयर के पास गये। मंगलवार को ये आलम था कि चार पार्षद एक नहीं दो नहीं बल्कि तीन अफसरों की चौखट पर थे। वैभवखंड वार्ड 99 के पार्षद अभिनव जैन, नीतिखंड शक्तिखंड वार्ड 81 के पार्षद धीरज अग्रवाल, अभयखंड न्यायखंड वार्ड 79 से पार्षद हरीष कड़ाकोटी, वार्ड 98 अहिंसा खंड-1 अहिंसा खंड 2 के पार्षद अनिल तोमर पूरा दिन अधिकारियों से मिलते रहे। वो टेकओवर को लेकर पहले नगर आयुक्त से मिले। फिर उन्होंने जीडीए वीसी से मुलाकात की। फिर वह मेयर के पास अपनी समस्या लेकर गये।
जनता और पार्षदों का क्या है गुनाह आखिर क्यों नही होता है फैसला
(करंट क्राइम)। इन्दिरापुरम के वैभवखंड, नीतिखंड, अभयखंड, न्यायखंड, अहिंसाखंड का इलाका कोई डूब क्षेत्र का इलाका नहीं है। ये अनाधिकृत कॉलोनी भी नहीं है। यहां जनता ने रजिस्ट्री शुल्क देकर आशियाना खरीदा है। स्टॉम्प ड्यूटी चुकाई है और अधिकृत रूप से प्रोपर्टी खरीदी है। मूलभूत सुविधायें देना सरकार का काम है। ये सरकार की जिम्मेदारी है और अफसरों के माध्यम से पूरी होनी है। जब कालोनी बसी तो मूलभूत सुविधा का वादा सरकार ने किया। आखिर जनता का गुनाह क्या है और पार्षद का भी क्या गुनाह है। टेकओवर-हैंडओवर के बीच मामला फंसा है। अधिकारियों को समाधान निकालना है। जनप्रतिनिधि पहल कर सकते हैं। जनता ने वैद्य तरीके से प्रोपर्टी खरीदी, लोकतांत्रिक तरीके से पार्षद को चुना तो फिर वो ये जानने का हक रखती है कि उसे मूलभूत सुविधाओं से क्यों वंचित रखा जा रहा है। सड़क, पानी, लाईट की समस्या का समाधान क्यों नहीं हो रहा है। सवाल ये भी है कि स्थानीय विधायक इस टेकओवर में कितनी रूचि ले रहे हैं।
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