लखनऊ। उपन्यास-सम्राट मुंशी प्रेमचन्द की जंयती के उपलक्ष्य में 7 कालीदास मंत्री आवास स्थित सभागार में आयोजित “प्रेमचन्द व समाजवाद” विषयक परिचर्चा में अपने विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ समाजवादी नेता व सपा के प्रमुख प्रवक्ता शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि प्रेमचन्द के साहित्य का मूल ध्येय भारत को आजाद करा कर शोषण विहीन समाज की स्थापना करना था जिसमें किसी भी प्रकार का मानवीय विभेद एवं सामाजिक कुरीतियां न हो। (samajwadi party news in hindi) प्रेमचन्द सामाजिक सद्भाव, प्रगतिशील तथा सामाजवादी मूल्यों के प्रबल पैरोकार थे।
उन्होंने साम्प्रदायिकता तथा उपनिवेशवादी प्रवृतियों की खुली खिलाफत की। वे मानते थे कि लेखकों को कभी भी सामाजिक सरोकारों से कटकर नहीं रहना चाहिए। वे अमीर-गरीब तथा शहर-गांव के मध्य व्याप्त खाई से काफी मर्माहत थे। उन्होंने हमेशा गरीब और गांव की वेदना को स्वर दिया। वे उन साहित्यकारों में सबसे आगे थे जिन्होंने 1934 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के गठन की मुक्त हृदय प्रशंसा की। 1954 में सामाजवादी युवजनों को महान चिन्तक राममनोहर लोहिया ने मुंशी प्रेमचन्द की कहानियों को पढ़ने और उनमें निहित संदेशांे पर बहस चलाने का निर्देश दिया था।
शिवपाल ने लोहिया के कथन “प्रेमचन्द के साहित्य से भारतीय समाजवादी विचारधारा को वैचारिक ताकत व तर्क मिलता है” से सहमति जताते हुए कहा कि मुंशी प्रेमचन्द, विष्णु राव पराड़कर, गणेश शंकर विद्यार्थी, राहुल सांस्कृत्यायन जैसे साहित्यकारों के जीवन दर्शन से समाज की कुरीतियों से सतत संर्घष की प्रेरणा मिलती हैं। प्रेमचन्द का साहित्य उनके जीवन काल जितना ही आज भी प्रासंगिक है क्यांे कि जिन सामाजिक, राजनैतिक व धार्मिक विकृतियों से प्रेमचन्द लड़े, वे हमारे समाज में आज भी विद्यमान हैं। श्री यादव ने जोर देकर कहा कि साम्प्रदायिक ताकतों एवं तत्वांे से मुंशी प्रेमचन्द और उनके साहित्य को आधार बनाकर निर्णायक लड़ाई लड़ी जा सकती हैं।
परिचर्चा का संचालन करते हुए समाजवादी चिन्तन सभा के अध्यक्ष दीपक मिश्र ने कहा कि प्रेमचन्द स्थानीय एवं ग्रामीण समस्याओं को उठाते हुए भी वैश्विक दृष्टि से परिपूर्ण थे। उन्होंने लेखन के माध्यम से न केवल सदियों पुरानी विडम्बनाओं पर प्रहार किया अपितु विकृतियों के खिलाफ जनमत बनाया। “सोज़-ए-वतन” पढ़कर प्रतीत होता है कि वे जितने महान उपन्यासकार उतने ही बड़े देश भक्त भी थे।
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