वीर रस के एक काव्य युग का हुआ अंत, आप हमेशा रहेंगे जिंदाबाद
गाजियाबाद (करंट क्राइम)।
मेहरबान दोस्तों नौजवान साथियों कौन है जो देश के भविष्य को संवार ले। मुस्कुराकर जिंदगी को प्यार से दुलार ले।
एक इंकलाब आके लौट कर चला गया जैसी वीर रस की आवाज जो मंच से गूंजती थी, ओज रस की जो आवाज लालकिले के कविसम्मेलन से गूंजती थी और गाजियाबाद का नाम जिंदाबाद करती थी, वो आवाज गुरुवार को हमेशा के लिए खामोश हो गयी। राष्टÑीय कवि कृष्ण मित्र ने गुरुवार को यशोदा अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके निधन का समाचार मिलते ही काव्य जगत से लेकर शहर के सभी वर्गों में शोक की लहर व्याप्त हो गयी। राष्टÑीय कवि कृष्ण मित्र ने 92 वर्ष की अवस्था में इस दुनिया को अलविदा कहा। बुद्धिजीवी, साहित्यकारों और पत्रकारों ने उनके निधन पर शोक जताया। गाजियाबाद का नाम वीर रस के काव्य में अंतर्राष्टÑीय स्तर पर स्थापित करने वाले कवि कृष्ण मित्र पिछले कुछ दिनों से बीमार थे और उन्हें उपचार के लिए यशोदा अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार को हिन्डन घाट पर उनका अंतिम संस्कार हुआ। उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए बड़ी संख्या में लोग हिन्डन मोक्ष स्थल पर पहुंचे।
हरिओम पंवार पहुंचे हिन्डन मोक्ष स्थल पर और कुमार विश्वास पहुंचे घर
राष्टÑीय कवि कृष्ण मित्र के निधन पर कवियों ने शोक व्यक्त किया। ओज रस के कवि हरिओम पंवार राष्टÑीय कवि कृष्ण मित्र के निधन का समाचार मिलते ही गाजियाबाद आये। वह हिन्डन मोक्ष स्थल पर श्रृद्धांजलि अर्पित करने पहुंचे। वहीं सुविख्यात कवि कुमार विश्वास भी कृष्ण मित्र के निधन का समाचार मिलते ही कृष्ण मित्र के आवास पर पहुंचे। यहां उन्होंने स्वर्गीय कृष्ण मित्र के पुत्र तथा भाजपा पार्षद हिमांशु लव और पौत्र मनु वशिष्ठ से मिलकर शोक व्यक्त किया और कृष्ण मित्र को श्रृद्धांजलि दी। कवि गोविन्द गुलशन, रमा सिंह, विष्णु सक्सैना, आलोक यात्री, जकी तारीक, सरवर हसन सहित कई कवियों ने शोक व्यक्त किया।
शम्भू दयाल कॉलेज से एमए हिन्दी करने के बाद 22 वर्षों तक की शिक्षक की नौकरी
स्वर्गीय कृष्ण मित्र का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। उन्होंने पाकिस्तान के लॉयलपुर स्थित ब्रह्मचर्य गुरूकुल में रहकर संस्कृत की शिक्षा ग्रहण की और फिर पंजाब की हिन्दी रत्न परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद देश का विभाजन हो गया और उनका परिवार भारत आ गया। यहां पर कृष्ण मित्र ने हिन्दी रत्न के बाद प्रभाकर, प्राज्ञ, प्रथमा, मध्यमा, भूषण तथा साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की परीक्षा, साहित्य रत्न उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होंने शम्भू दयाल डिग्री कॉलेज से एमए हिन्दी किया और फिर दिल्ली में शिक्षक की नौकरी की। उन्होंने लगभग 22 वर्षों तक दिल्ली के विभिन्न विद्यालयों में हिन्दी-संस्कृत की नौकरी की और फिर 1981 में उन्होंने स्वयं सेवा निवृति ले ली।
16 वर्ष तक लगातार लाल किले के कवि सम्मेलन में गूंजती थी ओज की वाणी
कृष्ण मित्र शिक्षा विभाग से स्वैच्छिक सेवा निवृति लेने के बाद स्वतंत्र लेखन में सक्रिय हो गये। 1955 से वह हिन्दी मंचों में काव्यपाठ करते रहे। एतिहासिक लाल किले के कवि सम्मेलन से वह 1962 में जुड़े और 16 वर्ष तक लगातार ओज की ये आवाज लाल किले से गूंजती रही। देश के सभी वरिष्ठ कवियों के साथ उन्होंने मंच साझा किये हैं, काव्यपाठ किया है। रामधारी सिंह दिनकर, काका हाथरसी, गोपाल दास नीरज, हुल्लड़ मुरादाबादी जैसे कवियों के साथ कृष्ण मित्र ने कवितायें पढ़ी हैं।
समय के स्वर रहेंगे कृष्ण मित्र के शब्द सदा साक्षी रहेंगे
कृष्ण मित्र का जाना ओज के एक युग का जाना है। वीर रस की कविताओं के साथ साथ उन्होंने हमेशा मौजूदा घटनाओं को लेकर लिखा। उनकी 6 पुस्तकें प्रकाशित हुर्इं, जिनमें डाकिये कागज के, दूसरा डाकिया, तीसरा डाकिया, चौथा डाकिया और शब्द साक्षी बने तथा समय के स्वर प्रकाशित हो चुकी हैं। षटपदियां की शुरूआत काव्य लेखन में उन्होंने दैनिक घटनाओं पर आधारित घटनाक्रम से की थी और यह रचनायें दैनिक पंजाब केसरी में आज का छक्का शीर्षक नाम से छपती थीं। उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें साहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित किया। उनके कृतित्व व व्यक्तित्व पर कई शोधार्थियों ने शोध किये हैं और अब भी कई शोधार्थी शोध कर रहे हैं। उनकी कई पुस्तकों के संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।
करंट क्राइम को गर्व है कि हमारी
स्मृति में हैं उनका साक्षात्कार
(करंट क्राइम)। राष्टÑीय कवि कृष्ण मित्र का जाना काव्य जगत की एक बड़ी क्षति है। एक ऐसा नाम जिन्होंने गजियाबाद को काव्य के क्षेत्र में एक बड़ी पहचान दी। ऐसा विराट व्यक्तित्व जिनके सरल स्वभाव से हर कोई उनका मुरीद हो जाता था। ना जाने कितने कवि उनकी शब्दों की पाठशाला से सीखकर निकले हैं और इस समय कुछ तो राष्टÑीय और अंतर्राष्टÑीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके हैं। दैनिक करंट क्राइम को इस बात का गर्व है कि इतनी महान शख्सियत से रूबरू होने का मौका मिला और हमारी स्मृति में उनका साक्षात्कार आज एक यादगार के रूप में हमारे पास है।
अटल जी ने ही दिया था अपने साथी कृष्ण लाल को कृष्ण मित्र नाम
(करंट क्राइम)। कृष्ण मित्र एक ऐसा नाम हैं जिनके बिना गाजियाबाद में काव्य यात्रा का सफर शुरू नहीं होता। कृष्ण मित्र उन नवरत्नों में हैं जिन्होंने भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ अपने पत्रकारिता कैरियर की शुरूआत की थी। लगभग 1952 से पहले की बात है तब आरएसएस और हिन्दु महासभा थे लेकिन जनसंघ का गठन नहीं हुआ था। यही जनसंघ बाद में भाजपा बना। दैनिक वीर अर्जुन के सम्पादक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे। कृष्ण मित्र ने उनके साथ सम्पादकीय विभाग में डेढ़ वर्ष तक काम किया था। कृष्ण मित्र का नाम कृष्ण लाल था और इसे कृष्ण मित्र के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने ही रखा था।
कभी नहीं भुलाया जा सकेगा राष्टÑीय कवि कृष्ण मित्र जी को : वेद प्रकाश गर्ग
(करंट क्राइम)। वेद प्रकाश गर्ग और उनके परिवार का नाम शहर की हर सांस्कृतिक गतिविधि को धरोहर के रूप में संजोने के लिए लिया जाता है। काव्य का क्षेत्र हो , नाट्य का क्षेत्र हो सांस्कृतिक गतिविधियों को हमेशा से वेद प्रकाश गर्ग और उनका परिवार आगे बढ़ाने में सहायक रहा है। वेद प्रकाश गर्ग खादी वाले लोक परिषद से भी जुड़े रहे हैं और कृष्ण मित्र तथा उनके परिवार से उनका लगाव रहा है। कृष्ण मित्र जैसे काव्य जगत के पुरोधा का सानिध्य उन्हें मिला है। उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए वेद प्रकाश गर्ग खादी वालों ने कहा कि उन्होंने हमेशा अपनी कलम से राष्टÑवाद का संदेश दिया और उनके जीवन व्यवहार से हमें हमेशा मानवता का पाठ सीखा। काव्य जगत की इस हस्ती को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।