लखनऊ/गोरखपुर| धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन लिए प्रसिद्ध गीता प्रेस में प्रबंधन-कर्मचारियों का विवाद सुलझने का नाम नहीं ले रहा है। (up latest news) श्रम आयुक्त के प्रयासों के बावजूद प्रबंधन के अड़ियल रवैये की वजह से सुलह का संयोग नहीं बन पा रहा है। गीता प्रेस में 21 दिनों से ताला बंद है। कर्मचारियों का आरोप है कि प्रबंधन खुद सामने आने की बजाय लीगल एडवाइजर एस.के. माथुर के माध्यम से मामले का निबटारा चाह रहा है। प्रबंधन खुद सामने आए, तभी बात बनेगी।
गौरतलब है कि न्यूनतम वेतनमान लागू किए जाने की मांग कर रहे 12 कर्मचारियों के निलंबन के विरोध में एक बार फिर से गीता प्रेस के कर्मचारी एकजुट होकर आठ अगस्त से हड़ताल पर हैं। 21वें दिन भी हड़ताल के कारण गीता प्रेस के कामकाज पर बुरा असर पड़ा। किताबें लेने के लिए वहां पहुंचने वाले लोगों को भी मायूस होकर लौटना पड़ रहा है।
कर्मचारियों का कहना है कि उन्होंने मुख्यमंत्री से पूरे मामले की शिकायत की थी और शासन ने पूरे प्रकरण की जांच श्रम आयुक्त को सौंप दी है। श्रम आयुक्त यू.पी. सिंह आठ अगस्त को जांच के लिए आने वाले थे। लेकिन प्रबंधन ने एक दिन पहले 12 कर्मचारियों को निलंबित कर दिया, ताकि सही तरीके से जांच न हो सके।
इससे पहले 14 दिसंबर को जब न्यूनतम वेतनमान की मांग कर्मचारियों ने की तो चार कर्मचारियों को अनुशासनहीनता के आरोप में निलंबित कर दिया गया था। जांच के लिए श्रम अधिकारी अशोक श्रीवास्तव गीता प्रेस पहुंचे, लेकिन गीता प्रेस ट्रस्ट प्रबंधन की तरफ से कोई भी प्रेस में मौजूद नहीं था।
कर्मचारी नेता रमण कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि कर्मचारियों और उनके बच्चों का भरण-पोषण इसी गीता प्रेस पर निर्भर है, वे भला क्यूं गीता प्रेस को बंद कराना चाहेंगे।
उन्होंने कहा कि गीता प्रेस प्रबंधन वर्ष 1923 से ही खुद को घाटे में चलता हुआ बता रहा है, लेकिन करोड़ों की मशीनें लगवाता रहा है और बिल्डिंग बनवाता रहा है। प्रबंधन से जुड़े जो लोग कभी साइकिल से घूमकर कपड़ा बेचते थे, आज उनके पास अरबों के महल और गाड़ियां हैं। उनके परिवार के लोगों में ट्रस्टी बनने की होड़ मची हुई है। यह पैसा कहां से आ रहा है।
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