वरिष्ठ संवाददाता (करंट क्राइम)
गाजियाबाद।
नगर निगम में पहली बार चुनाव जीतकर पहुंचे पार्षद पहले दौर में उत्साह से लबरेज थे। उनके लबों से बोल ही अलग थे और लहजे में अलग ही टौर थी। जनसेवा का सैलाब पूरा था लेकिन धीरे-धीरे अब इन पार्षदों को अजीब सा तनाव होने लगा है। वो इलैक्शन जीते हैं लेकिन इलैक्शन के बाद वो टेंशन में है। पार्षदों को उनका कोटा नहीं मिला है और पब्लिक उनसे अपेक्षाऐं कर रही है। जो धनराशि पार्षदों को देने के लिए 50 लाख तय हुई थी वो घट कर 30 लाख हो गई। सत्ताधारी दल के पार्षद एक लाईट के लिए निगम के दफ्तरों में सरकारी कर्मचारियों के सामने फाईट करते नजर आते हैं। जो पार्षद पहली बार पहुंचे हैं। वो कुछ ज्यादा ही तनाव में हैं और पुराने वाले पार्षद जानते हैं और वो स्थिति को एंज्वाय कर रहे हैं। किस्सा भाजपा महानगर अध्यक्ष संजीव शर्मा के बर्थडे का है। केक बधाई शुभकामनांए चल रहीं थी और इन सबके बीच पार्षद मनोज त्यागी विकास की बात बताकर अपनी भड़ास निकाल रहे थे। पहली बार जीते हैं लिहाजा उम्मीदें उन्हें खुद से ज्यादा हैं और निगम से उम्मीदें है। वो बता रहे थे कि अफसर सुन नहीं रहे, विकास कार्य हो नहीं रहे। जिस दिन से पार्षद बने हैं उस दिन से एक रूपये का विकास कार्य अपने वार्ड में नहीं करा पाये हैं। जनता से वादे करके चुनाव जीतकर आये हैं। काम नहीं करायेंगे तो जनता हमीं से सवाल करेगी। पार्षद वैसे भी जनप्रतिनिधि वाली सियासत में वो कड़ी है जो सीधे जनता से जुड़ी है। विधायक अपने प्रतिनिधि रख लेते हैं, सांसद अपने प्रतिनिधि रख लेते हैं और भले ही वो जनता दरबार लगाते हों लेकिन लोग इतनी आसानी से उन तक नहीं पहुंच पाते हैं। मगर पार्षद की कहानी यह है कि घर के आगे कूड़ा हो, गली की लाईट हो, जन्म-मरण का प्रमाण पत्र हो या फिर नल से आता पानी हो। कहानी में पार्षद जरूर आयेंगे। लोग सीधे फोन करेंगे और कुछ तो घर तक आयेंगे। पार्षद कब तक जनता को टाले और तनाव को कब तक टाले। जब अपने मन की पीड़ा मनोज त्यागी बता रहे थे तो यहां उनके मन के भाव को कई बार के पार्षद राजकुमार नागर बड़े धैर्य से मुस्कराते हुए सुन रहे थे। उन्होंने जब पहली बार के पार्षद मनोज त्यागी के मन की बात सुनी तो उनके कंधे पर हाथ रखकर वो मुस्कुराये और कहा कि इतना तनाव मत लो। उन्होंने अपने अनुभव से नए पार्षद को टिप्स देते हुए कहा कि मैं कई योजनाओं से पार्षद हूं और निगम के सदन से लेकर मौहल्ले के भवन तक विकास और प्रस्ताव की कहानी जानता हूं। हमने भी काम कराये हैं और आप भी काम कराओगे। निगम का काम अपने टाइम पर होता है और ये निगम ही काम करेगा। लेकिन आप इतना तनाव लोगे तो कैसे काम चलेगा।
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