Ghaziabad: गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) और गाजियाबाद नगर निगम (जीएमसी) के बीच चल रहे मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है, जिसमें इन दो सिविक एजेंसियों को कड़ी फटकार लगाई गई है। इस मामले की शुरुआत गाजियाबाद के नागरिकों द्वारा की गई थी, जिन्होंने नागरिक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए किए जाने वाले खर्च के बजाय इसे अन्य मदों में खर्च करने की आलोचना की थी।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला ?
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसला दिया है, जिसमें इन सिविक एजेंसियों को इस्क्रो (ESCROW) खाते में 30 करोड़ रुपए जमा करने का आदेश दिया गया है। इस रकम का विभाजन किया गया है, जहां नगर निगम को 10 करोड़ रुपए और जीडीए को 20 करोड़ रुपए देने का निर्देश दिया गया है।
यह मामला वर्ष 2022 के सितंबर में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के फैसले के बाद उभरा था, जिसमें गाजियाबाद नगर निगम और गाजियाबाद विकास प्राधिकरण को 200 करोड़ रुपए का भुगतान करने का आदेश था। इसमें गाजियाबाद नगर निगम को 150 करोड़ रुपए और जीडीए को शेष 50 करोड़ रुपए देने के निर्देश थे, जिन्हें जिला मजिस्ट्रेट के पास एक समिति द्वारा उपयोग करने का निर्देश दिया गया था।
इसके बावजूद, गाजियाबाद की दोनों सिविक एजेंसियां इस फैसले के खिलाफ अपील कर दीं और इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले गईं। सुप्रीम कोर्ट ने अब इन सिविक एजेंसियों को इस्क्रो खाते में धन जमा करने का आदेश देते हुए इस निर्धारित राशि का उल्लंघन किया था। इस राशि का उपयोग नागरिक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए किया जाएगा, जैसे कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की अधिकारिकता को सुनिश्चित करने के लिए।
फैसले के बाद?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद, गाजियाबाद के नागरिकों के बीच मामले को एक महत्वपूर्ण कदम की ओर बढ़ाया गया है, जो सिविक एजेंसियों को जिम्मेदार बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण है। इस फैसले से साफ होता है कि एनजीटी के फैसले का पालन करना अनिवार्य है और नागरिकों के स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है।
इस फैसले के साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने सिविक एजेंसियों को जनता के साथ खुलकर साझा करने का निर्देश दिया है, ताकि लोग इन खर्चों को सही तरीके से निगरानी कर सकें और स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अधिक जागरूक बन सकें। गाजियाबाद नगर निगम और गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के बीच यह मामला बड़ी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दिखाता है कि सिविक एजेंसियों को जनता के साथ मिलकर उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए कैसे कठिन कदम उठाने चाहिए।
इस मामले के पीछे की कहानी उस समय की है, जब गाजियाबाद के नागरिक ने नागरिक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए किए जाने वाले खर्च को लेकर सवाल उठाया। वे यह पूछ रहे थे कि क्या इस धन का सही उपयोग किया जा रहा है और क्या वह नगर की साफ़ाई और स्वच्छता में सहायक हो रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, गाजियाबाद नगर निगम को 10 करोड़ रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया गया है, जबकि गाजियाबाद विकास प्राधिकरण को 20 करोड़ रुपए देने का निर्देश दिया गया है। यह धन नागरिक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए उपयोग किया जाएगा, जैसे कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के निर्माण में। इस फैसले के साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि सरकारी धन का सही उपयोग किया जाना चाहिए और सरकार को लोगों के द्वारा चुने गए उद्देश्यों की पूरी तरह से पालन करना होगा।