सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर पार्टी के साथ परिवार को भी दिल्ली पहुंचाने की जिम्मेदारी है। मुलायम के बाद परिवार अखिलेश के सहारे है। उनपर पार्टी का भी दारोमदार है। चुनाव लड़ रहे परिवार के सदस्यों में अखिलेश यादव ही सबसे सीनियर हैं।
सपा संस्थापक मुलायम सिंह के निधन के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव है। सियासी दंगल में उतरे यादव परिवार में अखिलेश सबसे सीनियर हैं। ऐसे में पार्टी के साथ ही मैदान में उतरे परिवार के सदस्यों को जिताने की जिम्मेदारी भी उन्हीं के कंधे पर है। अब देखना है कि वह परिवार के कितने सदस्यों के साथ संसद पहुंचते हैं।
सियासत में सैफई परिवार के नाम से मशहूर यादव कुनबे के जो पांच सदस्य इस बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, उनमें अखिलेश यादव ही सबसे ज्यादा अनुभवी हैं। ढाई दशक के सियासी कॅरिअर में उनके पास सांसद, विधायक, विधान परिषद सदस्य रहने का अनुभव है। अखिलेश जब-जब कन्नौज से लड़े, उनके समर्थन में मुलायम सिंह यहां पहुंचे।
वर्ष 2000 के उपचुनाव में तो उन्होंने बोर्डिंग हाउस में हुई जनसभा के दौरान अखिलेश का हाथ उठाकर कहा था कि बेटा छोड़कर जा रहा हूं, इसे सांसद बना देना। वर्ष 2019 में खराब सेहत के बावजूद मुलायम सिंह यादव ने डिंपल यादव के लिए सभा की थी।
हर चुनाव जीता
वर्ष 2017 में पार्टी में मचे घमासान के बाद आखिरकार अंदरूनी लड़ाई जीतने वाले अखिलेश यादव हर सियासी समर में हमेशा विजेता बनकर उभरे हैं। इस बार अपने परिवार के सदस्यों में लोकसभा चुनाव लड़ने वालों में वही सबसे ज्यादा अनुभवी हैं। कन्नौज से तीन बार और आजमगढ़ से एक बार सांसद रहे अखिलेश यादव इन दिनों मैनपुरी की करहल सीट से विधायक भी हैं। वर्ष 2000 से अब तक लड़े हर चुनाव में उन्हें कामयाबी मिलती रही है। इस बार फिर से कन्नौज के सियासी समर में हैं। पार्टी के साथ ही उन पर आम लोगों की भी निगाहें लगी हैं।
तीन बार की सांसद डिंपल यादव, निर्विरोध निर्वाचन का रिकॉर्ड
अखिलेश यादव के बाद परिवार में सबसे ज्यादा बार संसद तक पहुंचने का रिकॉर्ड उनकी पत्नी डिंपल यादव के पास है। उन्होंने अब तक पांच बार किस्मत आजामई है, इसमें तीन बार कामयाबी मिली है। पहला चुनाव 2009 के उपुचनाव में फिरोजाबाद से लड़ा था, जिसमें नाकामी मिली। उसके बाद वर्ष 2012 के उपचुनाव में कन्नौज से निर्विरोध निर्वाचित हुईं। 2014 के मोदी लहर में भी अपनी सीट बचाई। 2019 के नजदीकी मुकाबले में भाजपा से हारीं। 2022 में ससुर मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद हुए उपचुनाव में मैनपुरी में जीतकर फिर से संसद पहुंचीं। छठी बार लोकसभा का चुनाव लड़ रही हैं।
अब आजमगढ़ का गढ़ बचाने की चुनौती
बदायूं से वर्ष 2009 और 2014 में लगातार दो बार सांसद रहे धर्मेंद्र यादव चार चुनाव लड़़ चुके हैं। दो बार नाकाम रहे हैं। 2019 में भाजपा से हारे थे। इस बार पार्टी ने उन्हें पूर्वांचल को सहेजने के लिए आजमगढ़ के दंगल में उतारा है। वर्ष 2019 में इस सीट से सपा मुखिया अखिलेश यादव जीते थे। 2022 के विधानसभा चुनाव में करहल से विधायक बनने के बाद उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया था। उपचुनाव में धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा। नजदीकी मुकाबले में 8679 वोट से हार गए थे। अब पांचवीं बार मैदान में हैं।