भगवद् गीता में अध्याय 17 धार्मिकता के तीन प्रमुख अंशों को विस्तार से वर्णित करता है – श्रद्धा, यज्ञ, और तपस्या। यह अध्याय भक्ति के विभिन्न रूपों और उनके महत्व के बारे में भी चर्चा करता है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं का संक्षेप में विवरण दिया गया है:
1. **त्रिविध श्रद्धा (Tribidha Shraddha)**: श्रद्धा का वर्णन किया गया है, जो तीन प्रकार की होती है – सात्त्विक, राजसिक, और तामसिक। सात्त्विक श्रद्धा में विवेक, प्रेम, और शांति की भावना होती है, राजसिक श्रद्धा में आकांक्षा और लोभ होता है, और तामसिक श्रद्धा में अनादर और अज्ञान होता है।
2. **त्रिविध यज्ञ (Tribidha Yajna)**: यज्ञ का तीन प्रकारों में वर्णन किया गया है – मन, वचन, और काया के द्वारा उपासना। यह यज्ञ तत्त्व की प्रशंसा करता है और अनाहुति, दान, और तप के रूप में विविध धर्मिक क्रियाओं का वर्णन करता है।
3. **त्रिविध तपस्या (Tribidha Tapasya)**: तपस्या को तीन प्रकारों में वर्णित किया गया है – शारीरिक, वाचिक, और मानसिक। यह अध्याय तपस्या के महत्व को समझाने के लिए बताता है, जो आत्मा को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
इस अध्याय में भगवद् गीता के शिक्षाओं को व्याख्यात किया गया है और धार्मिक जीवन के महत्वपूर्ण तत्त्वों पर चर्चा की गई है। यह अध्याय भक्ति, सेवा, और साधना के माध्यम से धार्मिक उन्नति को प्रोत्साहित करता है।