भगवान श्रीउवाच |
परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् |
यज्ज्यत्व मनुष्य: सर्वे परां सिद्धिमितो गता: || 1||
श्रीभगवान उवाच
परम भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानं ज्ञानं उत्तमं यज ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परम सिद्धिं
इतो गतः
भागवत गीता के अध्याय 14 में मोह, गुणों का विश्लेषण, और भगवान की परम प्राप्ति के लिए उपायों का विस्तृत विवेचन किया गया है। यह अध्याय गुणत्रय विभागयोग के रूप में भी जाना जाता है। इस अध्याय में तीनों गुणों – सत्त्व, रजस्, और तमस् – का विस्तृत विवरण प्रदान किया गया है, और यह बताया गया है कि ये गुण किस प्रकार व्यक्ति के व्यवहार, विचार, और प्रवृत्तियों को प्रभावित करते हैं।
यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः ॥ ॥ भावार्थ : भगवन श्रीकृष्णा बोले – पुनः समस्त ज्ञानों में भी अतिउत्तम ज्ञान है, उसे कहूंगा जिसे जानकार समस्त मुनि इस संसार से मुक्त होकर परम सिद्धि को प्राप्त हुए है । इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः ।
सत्त्व गुण का वर्णन करते हुए कहा गया है कि यह ज्ञान, ध्यान, और संतोष की भावना को उत्पन्न करता है। रजो गुण का वर्णन करते हुए कहा गया है कि यह क्रोध, लोभ, और अहंकार के विकास में सहायक होता है। तमो गुण का वर्णन करते हुए कहा गया है कि यह अज्ञान, अनिश्चितता, और आलस्य को बढ़ाता है।
इस अध्याय में यह भी बताया गया है कि सत्त्व गुण से युक्त व्यक्ति ज्ञान का प्राप्ति करता है, जिससे उसका मन शांत होता है। रजो गुण से युक्त व्यक्ति के मन में अनिश्चितता और अशांति बनी रहती है। तमो गुण से युक्त व्यक्ति का बुद्धि का विकास नहीं होता और वह अज्ञान में मग्न रहता है।
भगवान श्रीकृष्ण इस अध्याय में यह भी बताते हैं कि सत्त्व गुण को बढ़ाने के लिए आत्मसाक्षात्कार, ध्यान, और सात्विक आहार आदि को अपनाना चाहिए। रजो और तमो गुणों को कम करने के लिए श्रद्धा, ध्यान, और संस्कारों का त्याग करना चाहिए। इस अध्याय में गुणत्रय विभागयोग का महत्वपूर्ण ज्ञान प्रस्तुत किया गया है, जो व्यक्ति को उसके आत्मविकास में मदद करता है।