भागवद गीता का अध्याय 11 में कृष्ण अर्जुन को अपनी विश्वरूप दिखाते हैं, जो उनके दिव्य और अद्भुत स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है। यह अध्याय गीता का एक महत्वपूर्ण भाग है जिसमें दिव्य दर्शन का वर्णन है। इस अध्याय में अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण अपने सच्चे और दिव्य स्वरूप का दर्शन दिखाते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का उद्भव और संहार है।
यह अध्याय भागवत की महत्वपूर्ण योद्धा रूपाविष्टार योग है और अर्जुन की श्रद्धा और भक्ति की वृद्धि का विवरण करता है। अर्जुन के द्वारा दिखाई गई आश्चर्यजनक और विस्मयकारी घटना भी इस अध्याय का अभिन्न हिस्सा है।
इस अध्याय में अर्जुन को कृष्ण के अद्भुत स्वरूप का दर्शन होता है जिसमें वे जीवों के संपूर्ण संसार का उद्भव और संहार, उनकी अद्वितीय महिमा और उनका अनंत स्वरूप देखते हैं। यह अध्याय आध्यात्मिक ज्ञान को विस्तारपूर्वक समझाने का प्रयास करता है और भक्ति के माध्यम से परमात्मा के प्रति अर्जुन की आदर्श स्थिति को विवरणित करता है।
अध्याय 11 भगवद गीता में उदाहरण और व्याख्यान के द्वारा आध्यात्मिक ज्ञान का प्रदर्शन करता है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन करवाते हैं, जो उनके मानवीय स्वरूप से अत्यंत भिन्न और अद्वितीय है। यह दिव्य दर्शन अर्जुन को आश्चर्यचकित करते हैं और उन्हें भगवान के अद्वितीय शक्तियों और महिमा का अनुभव करने का अवसर देते हैं।
भगवान का दिव्य स्वरूप देखकर अर्जुन की आत्मा में भय और आश्चर्य का अनुभव होता है। वह देखते हैं कि सम्पूर्ण विश्व भगवान के शरीर में ही व्याप्त हैं, और उन्हें यह भी दिखाई देता है कि सम्पूर्ण शक्तियाँ भगवान में ही समाहित हैं।
इस अध्याय में श्रीकृष्ण अर्जुन को धर्म, भय, शक्ति, और संसार के रहस्य के बारे में शिक्षा देते हैं। अर्जुन को समझाया जाता है कि जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है और कैसे उसे प्राप्त किया जा सकता है।
अध्याय 11 भगवान की परम शक्ति और महिमा को प्रकट करता है, जो जीवन का अंतिम लक्ष्य है। इस अध्याय का संदेश है कि भगवान हमेशा हमारे साथ हैं और हमें सच्चे धर्म का पालन करना चाहिए।