गाजियाबाद (करंट क्राइम)। कलेक्ट्रेट से जिला चलता है और कलेक्ट्रेट अब कमिश्नरेट बन गई है। बहुत कुछ बदला है और यहां प्रशासन की कई पावर पुलिस के पास गई है और पुलिस विभाग को अधिकारों का एक टॉवर मिला है। जिस जिले में एसएसपी पूरे पुलिस विभाग को संभालते थे उस जिले में अब आईजी स्तर के पुलिस अधिकारी पुलिस कमिश्नर के रूप में जिला संभालेंगे। कई चीजें ऐसी है जो प्रशासन के कोटे से पुलिस के पास गई है। गुंडा एक्ट, जिला बदर, गैंगस्टर की जो फाइले प्रशासन के यहां से तय होती थी वो अब पुलिस कार्यालय से तय होंगी। जनसुनवाई के कई मामलों में भी एक्यूरेशी आएगी।
तहसील दिवस से लेकर थाना दिवस तक प्रशासन से ज्यादा पुलिस की भूमिका मजबूत होगी। 144 की धारा पुलिस लगाएगी। लेकिन यहां पर जनता और खासतौर से राजनीतिक दलों से जुड़े लोग ध्यान दें, क्योंकि डीएम कक्ष के बाहर कई बार सूचना का पर्चा उन्हीं की वजह से लगता है। शस्त्र लाइसेंस आवेदक अभी संपर्क न करें। जिलाधिकारी के लिए शस्त्र लाइसेंस को लेकर सिफारिश का दबाव रहता है। किसी भी सियासत, कारोबारी व्यक्ति से अगर डीएम से संबंधित कोई काम पूछ लो तो शस्त्र लाइसेंस की फाइल की सिफारिश निकल आती है। तो उन्हीं के लिए सूचना है कि भले ही कलेक्ट्रेट से जिला कमिश्नरेट हो गया है लेकिन शस्त्र लाइसेंस बनाने की पॉवर जिलाधिकारी के पास रहेगी। बार लाइसेंस से लेकर सराय एक्ट की पॉवर भी जिलाधिकारी के पास ही रहेंगी।
गनर संस्तुति के लिए अब जाइए पुलिस कमिश्नर के पास
कलेक्ट्रेट के कमिश्नरेट हो जाने के बाद बहुत सी चीजें इस दफ्तर से उस दफ्तर के पास पहुंची है। शस्त्र अपना चाहिए तो जिलाधिकारी के हाथ में ही पॉवर होगी। लेकिन अगर शस्त्र वाला गनर चाहिए तो फिर पुलिस कमिश्नर के पास जाना होगा। आमतौर पर पॉलिटिक्ल नेताओं को ही गनर की जरूरत महसूस होती है। उन्हीं के आवेदन अफसरों की टेबल पर होते है। मगर नए परिवर्तन के साथ अब गनर के लिए पुलिस कमिश्नर की संस्तुति जरूरी होगी।