शहर गाजियाबाद की रामलीलाओं में आज बात उस रामलीला की जो भव्यता की दृष्टि से न केवल गाजियाबाद बल्कि पूरे एनसीआर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नंबर वन मानी जाती है। गाजियाबाद के कविनगर रामलीला मैदान में आयोजित होने वाली रामलीला का इतिहास चार दशक से भी अधिक पुराना है। जिस रामलीला को आज आप भव्य रूप में देख रहे हैं इस रामलीला को यहां तक आने में चालीस साल लगे हैं। इस रामलीला से भाजपा के कई नेता जुड़े रहे हैं। इस रामलीला की शुरूआत वर्ष 1979 में हुई थी। तब आज के रामलीला मैदान के पीछे बने बी-ब्लॉक बिजली घर के बराबर में स्थित मंदिर में पहला मंचन हुआ था। इसके बाद कविनगर के निवासियों ने इस रामलीला में रूचि ली और अगला वर्ष आया तो रामलीला अपने मैदान में आ गई। वर्ष 1980 में जीडीए ने मैदान को रामलीला के लिए दिया और यहां पहली बार रामलीला का स्टेज बना। जिस स्थान पर आज कविनगर की रामलीला देखते हैं यह स्टेज यहां नहीं था। यह स्टेज इस स्थान से भी बहुत आगे बना था। इसके बाद कविनगर की रामलीला में स्थानीय लोगों के साथ साथ यहां के प्रतिष्ठित और गणमान्य लोगों ने रूचि लेनी शुरू की और रामलीला के विस्तार को लेकर प्रयास किये। रामलीला से जुड़े लोग बताते हैं कि शुरू में ये आलम था कि कविनगर की रामलीला के नाम से यहां कोई स्टॉल भी लगाने को तैयार नहीं था। तब दुकानदारों की रूचि घंटाघर के सुल्लामल रामलीला मैदान में अपना स्टॉल लगाने की होती थी। शुरू में यहा बाजार भी नहीं लगता था और कोई आने को भी तैयार नहीं था।
जेडी जैन से लेकर रामअवतार छारिया तक रामलीला का अध्यक्षीय सफर
रामलीला शुरू हुई तो जेडी जैन इसके अध्यक्ष बने। रामलीला की कमेटी बनी और फिर इसमें स्वर्गीय लाला गिरधारी लाल, भारत भूषण जैन के साथ-साथ भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री बलदेवराज शर्मा का योगदान रहा। इसके अलावा चौधरी परिवार से रमेश चौधरी, बृजेश चौधरी सभी चौधरी परिवार के सदस्यों ने रूचि ली। वर्ष 1991 में स्वर्गीय रामअवतार छारिया अध्यक्ष बने और मनोज गोयल बंटी इस रामलीला के महामंत्री बने। वर्ष 1991, 1992 में यह कमेटी चली और फिर इसके बाद इस कमेटी में विवाद हो गया। उस समय के प्रमुख भाजपाई राजनीतिक चेहरे इस रामलीला के संस्थापक सदस्य थे। उन्होंने अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए यहां रामलीला के ठेकेदार को पॉवर दे दी। इसके बाद रामलीला सदस्यता की रसीद को लेकर विवाद हुआ। 100 सदस्यों की 100 रुपए वाली सदस्यता रसीद का विवाद अदालत तक पहुंच गया। 1993 में चुनाव हुए और फिर से रामअवतार छारिया अध्यक्ष और मनोज गोयल बंटी महामंत्री पद पर जीते। लेकिन रसीद विवाद कोर्ट में आ गया और फिर यह पूरा ग्रुप रामलीला से बाहर हो गया। रामलीला के लोग बताते हैं कि उस समय के एक प्रभावशाली भाजपाई राजनीतिक व्यक्ति द्वारा अपने ठेकेदार चेले को इतना सक्षम किया गया कि वो 2012 तक रामलीला कमेटी में अपना अध्यक्ष और महामंत्री बनवाने में सक्षम हो गया। इस ठेकेदार का नाम संजय ठेकेदार बताया जाता है। समय ने करवट बदली और फिर भाजपा के वह प्रभावशाली राजनीतिक व्यक्ति और ठेकेदार व्यक्ति भी बाहर हो गये। 83-84 से शुरू हुआ ये सफर 92-93 में कोर्ट के झमेलों में फंस गया लेकिन उसके बाद कविनगर की रामलीला ने फिर धीरे-धीरे सफलता की डगर पर चलना शुरू किया।
ललित जायसवाल ने थामी कमान तो सफलता का छू लिया आसमान
सिविल डिफेंस के चीफ वार्डन ललित जायसवाल वर्ष 2012 में इस रामलीला से जुड़े। ललित जायसवाल पहले से ही सामाजिक और धार्मिक कामों को विशेष रूचि लेकर व्यवस्थित तरीके से कराने के लिए जाने जाते हैं। विवादों से दूर रहते हैं और प्रगतिवादी सोच के साथ चलते हैं। ललित जायसवाल अध्यक्ष बने और भूपेन्द्र चौपड़ा महामंत्री बने। वर्ष 2012 में इस जोड़ी ने कमान संभाली और फिर आज तक ये टीम काम कर रही है। मथुरा प्रसाद की टोली से लेकर आधुनिक थियेटर की बोली तक कविनगर की रामलीला ने सफर किया है। जिस रामलीला में कभी दुकानदार आने को तैयार नहीं थे। उस रामलीला में आज सबसे मंहगा स्टॉल बिकता है। हालांकि रामलीला कमेटी अपने बजट को लेकर खामोश रहती है लेकिन बताया ये जाता है कि इस रामलीला का बजट 2.5 करोड़ के लगभग होता है। ललित जायसवाल के अध्यक्ष बनने के बाद कविनगर की रामलीला में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सफलता का एक आसमान छुआ है। मंचन से लेकर बाजार तक यह रामलीला अपनी भव्यता के लिए जानी जाती है।
राजनगर के अरूण चाट वाले ने की थी यहां सबसे पहले स्टॉल की शुरूआत
कविनगर की रामलीला में आज पांव रखने को जगह नहीं होती। आज यहां नामी कंपनियां अपने स्टॉल लगाती हैं। कार निर्माता कंपनियों से लेकर इलैक्ट्रानिक उत्पादों की नामी कंपनियां यहां आती हैं। रामलीला के पुराने लोग बताते हैं कि कभी यहां बाजार नहीं लगता था और केवल दो रास्ते होते थे जिनके दोनों तरफ स्टॉल लगते थे। आज उन्हीं रास्तों पर चार रास्तें है जिस पर स्टॉल लगते हैं। आज यहां दिल्ली की नामी फूड कंपनियां अपने स्टॉल लगाती हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि कभी यहां सबसे पहले गाजियाबाद के राजनगर स्थित अरूण चाट भंडार ने अपना स्टॉल लगाकर शुरूआत की थी। उसके बाद फिर एक झूले वाला आया था और फिर गुब्बारे वालों के साथ धीरे धीरे यहां स्टॉल लगे थे।