समानान्तर सत्ता को चुनौती देने के लिए हो रहा है भाजपा में ही नया खेमा तैयार!
गाजियाबाद (करंट क्राइम)। चुनाव भले ही खामोश चल रहा हो लेकिन ये खामोशी तूफान से पहले की भी मानी जा सकती है। सियासी नब्ज को पकड़ने वाले लोग बता रहे हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद भगवागढ़ में सियासी धनुष पर भगवा टंकार होनी है। यहां सत्ता दो खेमों में बंटेगी और एक खेमा तैयार हो रहा है। कहानी तो पहले ही लिखी जा चुकी है लेकिन अब इसके किरदार भी तय हो रहे हैं। दरअसल भाजपा में लोकसभा चुनाव में जनरल वीके सिंह का टिकट कटने के बाद एक खेमा निर्णयायक वाली स्थिति में आ गया है।इसकी क्षमता शक्ति दोनों बढ़ गई है ये खेमा विधायक खेमा कहलाता है। अब किसी से छुपा नहीं है कि जनरली टिकट को लेकर इसी खेमे ने स्पेशल मुहिम चलाई थी। एक गुट बनाकर सब एकजुट हुए थे और टिकट कटवाने वाले मुहिम में राज्यसभा सांसद थे। उन्होंने लोकसभा उम्मीदवार अतुल गर्ग के नामांकन जुलुस वाले मंच पर कहा भी था कि वह इस टिकट को कटवाने में साथ थे। लेकिन सूत्र बताते हैं कि यहां पूर्व सांसद ये पूरा माहौल अपने लिए बना रहे थे और उन्हें ये उम्मीद तो थी कि जनरल वीके सिंह का टिकट कट जायेगा लेकिन जब उनकी खुद की उम्मीदवारी की बात आयेगी तो उनको ही झटका लगेगा, ये उन्हें उम्मीद नहीं थी। बहरहाल ताकत का मुलाहिजा हुआ और यहां एक खेमे ने अपनी ताकत दिखा दी और अब ये खेमा तीन तरह से शक्तिशाली हो गया है। क्योंकि लोकसभा का टिकट विधायकों का टिकट है। लोकसभा का टिकट महानगर संगठन का टिकट है और लोकसभा उम्मीदवार तो इस गुट में शामिल ही है। चर्चा है कि ये खेमा इतना पावरफुल हो चुका है कि आने वाले समय में कई राजनीतिक फैसलों को प्रभावित करेगा। सरकारी कृपा किसपर होगी इसे प्रभावित करेगा। सूत्र बताते है कि अब इस खेमे के सामने दूसरा खेमा तैयार हो रहा है जो इस बात को बतायेगा कि सत्ता का सारा करंट एक ही खेमे के पास नहीं जायेगा। सूत्र बताते है कि अगर एक खेमे का निर्माण हो गया है तो दूसरा खेमा भी पूरी तरह तैयार हो गया है। चुनाव के बाद भाजपा में ये खेमाबंदी दिखाई देगी और दोनों तरफ से दिखाई देगी।
एक दूसरे को लेकर लामबंदी होगी और इस खेमेबंदी लामबंदी की चर्चा लखनऊ तक पहुंच चुकी है। लखनऊ के बड़े दरबारों तक ये खबर है कि भगवागढ़ में सबकुछ सही नहीं चल रहा है। सूत्र बताते हैं कि शुरूआत हो चुकी है और चुनाव के बाद इसके इफैक्ट खुलकर सामने आ जायेंगे।
कौन होंगे नए खेमे के फेस
करंट क्राइम। विधायक खेमा अपनी टिकट सफलता से गद्गद है लेकिन यहां उसे चुनौती ही भाजपा के दूसरे जनप्रतिनिधियों से मिलने जा रही है। विधायक खेमा अगर पावरफुल स्थिति में है तो दूसरा खेमा भी अपनी बात को सरकार तक पहुंचाने की स्थिति में है। इनमें एक एमएलसी का नाम है। हालांकि वो विवाद से दूर रहते हैं लेकिन अगर बात आ जाये तो पीछे भी नहीं रहते हैं। उनके एक लैटर ने यहां भगवावॉर करा दी थी। प्रथम नागरिक की सियासी ट्यूनिंग सब जानते हैं और वो भाजपा की पुरानी नेता हैं। प्रदेश पदाधिकारी हैं और वो जानती हैं कि सत्ता के नजदीकी किसी भी गुट को असीमित अधिकार पाने से कैसे रोकना है। हालांकि खेमेबाजी से ज्यादा उनका फोकस अपनी जिम्मेदारी पर है। राज्य सरकार में मंत्री भी, राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। कई सरकारें देखी हैं संगठन से लेकर सरकार तक का अनुभव है। वो अपनी मुस्कुराहट
से ही कई जवाब देते हैं। वो कभी किसी गुट में
नजर नहीं आते।
अनिल अग्रवाल की भी रहेगी दिल्ली वाले गलियारों में दखल
करंट क्राइम। भाजपा बाहर वालों से तो जीत जायेगी लेकिन जो जंग भाजपा के भीतर होने जा रही है उसका रंग दिखाई देगा। यहां पर पूर्व राज्य सभा सांसद अनिल अग्रवाल भी एक सियासी धुरी रहेंगे। राज्यसभा सांसद रहे हैं और दिल्ली के सत्ता गलियारों से परिचित है। संगठन के बड़े नेताओं में उनकी पकड़ बतायी जाती है। चर्चा है कि यहां वो किसी भी चेहरे को अनलिमिटेड पॉवर सेंटर नहीं बनने देंगे। सूत्र बताते हैं कि उनकी दखल रहेगी क्योंकि इस पूरे ऐपीसोड में मैनेजमेंट उन्होंने बिठाया और फिर डैमेज भी उन्हीं को हो गया। सूत्र बताते है कि इस नए खेमे में केवल जनप्रतिनिधि भी नहीं रहेंगे बल्कि कुछ पूर्व संगठन पदाधिकारी भी शामिल हो गये हैं। सूत्र बताते हैं कि ये खेमा विधायकों वाले खेमे को चुनौती देगा। ये खेमा अपनी अनदेखी से नाराज है और अब इस खेमे को सर्ववाईवल मोड में लाने की तैयारी हो गई है।
चर्चा है कि यहां अनिल अग्रवाल किसी भी चेहरे को अनलिमिटेड पावर सेंटर नहीं बनने देंगे।
कौन बनेगा भाजपाई ये परमीशन भी विधायक खेमे से आई
करंट क्राइम। भाजपा में तेजी से सत्ता के समानान्तर दूसरा मोर्चा खुलने की तैयारी हो गई है। इसकी वजह भी एक खेमे को बहुत अधिक ताकतवर होने से रोकना है। सूत्र बताते हैं कि इंटरनल अनदेखी से नाराज हैं और वो इस बात से भी नाराज हैं कि कौन भाजपा में शामिल होगा उसे भी विधायक खेमा तय कर रहा है। जबकि संगठन को यह काम देखना है। सूत्र बताते है कि एक मजबूत ज्वाइनिंग भी इसी खेमे की वजह से नहीं हो पाई है अगर यह ज्वाईनिंग हो जाती तो अतुल गर्ग को ही चुनावों में लाभ होता। लेकिन यहां गेम कुछ ऐसा सैट हो गया है कि एक खेमे के जनप्रतिनिधि दूसरे की विधानसभा में दखल नहीं दे रहे हैं। कौन भाजपा का भगवा पटका पहनेगा इस बात का ग्रीन सिग्नल भी अब विधायक खेमे से मिल रहा है।
जीडीए बोर्ड सदस्य से लेकर शहर सीट का उम्मीदवार भी तय करेगा ये खेमा
करंट क्राइम। भाजपा में तेजी से सत्ता के दूसरे पॉवर सेंटर का उदय हो रहा है। ये चर्चा भाजपा की हर जुबान पर हो रहा है। आखिर ऐसी क्या वजह हो गई कि भाजपा के भीतर ही ये रणभेरी बजी है। सूत्र बताते हैं कि सारा झगड़ा सरकारों से ज्यादा अधिकारों को लेकर है। अब एक खेमा पॉवर का विभाजन चाहता है। वो भी अपनी हिस्सेदारी चाहता है और वो अपने फैसलों को लेकर विधायक खेमे के आगे अनुयय विनय करने के मूड में नहीं है। ये खेमा बता रहा है कि ये तक तय हो गया है कि जीडीए बोर्ड सदस्य कौन बनेगा। नामित पार्षद कौन बनेगा और शहर सीट पर उपचुनाव में चेहरा कौन होगा। यह बात सत्ता के दूसरे खेमे को पसंद नहीं आई है। उनका कहना है कि भाजपा में नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे चक्र चलता है। अगर एक कोकस मजबूत हो गया तो फिर खेमेबंदी में लोकसभा से लेकर महानगर संगठन तक एक ही नाम चलेगा जो कि सही नहीं है।