कहते हैं काशी के कण-कण में शिव का वास है। यहां भारत की सभी संस्कृतियां, परंपराएं लघु-दीर्घ रूप में जरूर मिलेंगे। और यही इसकी खासियत है। बनारस हिंदू धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है तो सारनाथ बौद्धधर्मावलंबिंयों की देवभूमि। कला-संगीत और शिक्षा की भागीरथी भी यहां से निकलती है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि वाराणसी में मृत्यु होने पर सीधे मोक्ष प्राप्ति होती है। यही कारण कि लोग अपना अंतिम समय शिवधाम में बिताना चाहते हैं। कैसे आएंरू बनारस आने के लिए देश के लगभग हर कोने से रेल यातायात सुलभ है। यहां का बाबतपुर हवाई अड्डा दिल्ली सहित सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है।
आवगमन सुलभ
स्थानीय परिवहन के लिए ऑटो, किराए पर टैक्सी सुलभ है। कब आएंरू सभी मौसम यहां के लिए अनुकूल हैं। गर्मी के बावजूद बनारस की सुबह और शाम बहुत सुहानी होती है। क्या खाएंरू बनारस का अपना खानपान है। उत्तर भारत के प्रसिद्ध व्यंजनों के साथ ही यहां देश-दुनिया के प्रसिद्ध खाने सुलभ हैं। वैसे बनारस की खासियत है यहां की लस्सी और दूध। सुबह के समय कचैरी और जलेबी खाएं और दोपहर में सादा खाना। शाम को लौंगलता के साथ समोसा और गुलाब जामुन ले सकते हैं। इसके बाद बनारस की प्रसिद्ध ठंडाई पीना और पान खाना न भूलें। बनारसी साडियां और सिल्क के कपडे तो दुनियाभर में अपनी अलग पहचान रखते है। इसलिए थोडी खरीददारी भी करें। कहां-कहां जाएं- बाबा विश्वनाथ मंदिर रू गंगा के तट पर स्थित शिवलिंग 12 ज्योतिर्रि्लंगों में से एक है। तंग गलियों के बीच से होकर मंदिर तक जाना पड़ता है। मंदिर-मस्जिद विवाद को लेकर यहां सुरक्षा काफी कड़ी कर दी गई है। गली में भगवान को चढ़ाने के लिए फूल-प्रसाद के अलावा कपड़ों, रत्नों की भी दुकानें हैं। आगे पुलिस की तलाशी के बाद आप अन्नपूर्ण मंदिर के आगे से होकर बाबा विश्वनाथ मंदिर में पहुंचेगे। पंजाब के महाराजा रणीजत सिंह द्वारा स्वर्णाच्छादित कराए गए गुंबद के नीचे चांदी के अर्घे में श्यामवर्ण का शिवलिंग स्थापित है। यहां पांच बार आरती और पूजन होता है। मंदिर की व्यवस्था सरकार करती है। मंदिर सुबह 4 बजे से 11 बजे तक और फिर दोपहर 12 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है। रात 11 बजे भगवान की भव्य शयन आरती होती है। बाहर निकलकर मां अन्नपूर्णा मंदिर के दर्शन होते हैं। ज्ञानवापीरू विश्वनाथ मंदिर के बगल स्थित मस्जिद में श्रृंगारगौरी मां की मूर्ति है। मस्जिद के बाहर मंदिर परिसर में विशाल कुंआ है और उसके बाहर विशालकाय नंदी है जो मस्जिद की ओर देख रहा है। यहां कुएं का जल लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। काल भैरवरू काल भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है। बाबा विश्वनाथ से लगभग एक किमी दूरी पर यह मंदिर स्थित है। दुर्गाकुंडरू आदिशक्ति मां दुर्गा का यह मंदिर पवित्र सरोवर दुर्गाकुंड के किनारे है। मान्यता है कि यहां मां की मूर्ति को स्थापित नहीं किया गया था बल्कि स्वयं प्रकट हुई थी। नवरात्रि में यहां दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है। तुलसी मानस मंदिररू दुर्गाकुंड के नजदीक ही सफेद संगमरमर से बना विशाल तुलसी मानस मंदिर है। भगवान राम को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 1964 में हुआ था। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण उसी जगह पर किया गया है जहां पर बैठकर तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना की थी। मानस मंदिर की दीवारों पर रामचरित मानस की चैपाइयां लिखी है। संकटमोचन मंदिर मानस मंदिर से आधा किमी की दूरी पर स्थित संकटमोचन मंदिर हनुमान जी का प्राचीन मंदिर है। यहां साल में एक बार संगीत समारोह आयोजित होता जिसमें विख्यात कलाकार प्रस्तुति देते हैं। भारतमाता मंदिररू कैंट स्टेशन से लगभग दो किमी दूर भारत माता को समर्पित यह एक अनोखा मंदिर है। 1936 में इस मंदिर का निर्माण बाबू शिव प्रसाद गुप्त ने करवाया था। मंदिर में अविभाजित भारत का नक्शा बना है। संगमरमर से बने इस नक्शे में, मैदान, नदियों, पहाड़ों और समुद्र को बहुत ही बारीकी से उकेरा गया है। इसके अलावा काशी कई छोटे-बड़े अन्य मंदिर भी हैं। बनारस के घाट- बनारस शहर को चंद्राकार घेर हुए गांगा के छोटे-बड़े 84 घाट हैं। अस्सी घाट से लेकर राजघाट तक पैदल घूमने का अपना ही मजा है। अस्सी घाट के नजदीक ही महारानी लक्ष्मीबाई का जन्मस्थल है। आगे दसाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट, राजेंद्र प्रसाद घाट और भी । सुबह-शाम इन घाटों पर घूमने का अपना ही आनंद है। बनारस के घाट पर बैठकर सूर्योदय देखना अपने आप में अद्भुद अनुभव है। फिर शाम को गंगा आरती। आध्यात्म और संगीत का अनुपम संगम। सूर्योदय और गंगा आरती देखने के लिए प्रतिवर्ष लाखों लोग आते हैं। यहां नाव से भी आरती का आनंद लिया जा सकता है। यहीं बीच में है मणिकर्णिका घाट। जहां से गुजरते हुए बरबस संसार के सबसे बड़े सच से साक्षात्कार होता है। कहते हैं इस महाश्मशान में जिसका अंतिम संस्कार होता है उसे स्वर्ग में जगह मिलती है। बनारस में चर्च और कई प्रसिद्ध मस्जिद भी हैं। हां, बनारस आएं है तो कबीर की जन्मस्थली, लहरतारा और रविदास मंदिर देखकर ही जाएं। देव दीपावली रू कार्तिक पूर्णिमा के दिन वाराणसी में देव दीपावली मनाई जाती है। यह उत्सव बहुत ही अद्भुत और दुर्लभ है। इस दिन शहर के सभी घाटों को मिट्टी के दीये जलाकर सजाया जाता है। इस दृश्य को देखकर ऐसा लगता है कि मानों आकाश के सारे तारे बनारस के घाट पर उतरकर भगवान शिव की महाआरती कर रहे हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय- वाराणसी को श्सर्वविद्या की राजधनी कहा जाता है। महामना पंडित मदनमोहन मालवीय ने 1916 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की। 1300 एकड़ में फैला विश्वविद्यालय एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विवि है। इसके परिसर में स्थित नया विश्वनाथ मंदिर भी अच्छा दर्शनीय स्थल है। यह भव्य मंदिर परिसर की शान है।
बनारस जाएं तो यहां जरूर जाएं। दुनिया भर में बीचएयू नाम से प्रसिद्ध इस विवि में देश सहित दुनिया के कई देशों के विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। बनारस में काशी विद्यापीठ, संपूर्णानंद संस्कृत विवि और सारनाथ में तिब्बत उच्च शिक्षण संस्थान भी है। भारत कला भवनरू काशी हिंदू विश्वविद्यालय परिसर में स्थित यह कला और शिल्प संग्रहालय विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहां 15वीं और 16वीं शताब्दी की कई शिल्पकारियां रखी हैं। इसके साथ ही मुगलकाल तथा अन्य राजाओं के शासन काल की पेंटिंगों का विशाल संग्रह है। इस संग्रहालय में पुराने सिक्कों का भी बहुत अच्छा संग्रह है। आसपास रामनगर किलारू शहर से 14 किलोमीटर दूर गंगा के पूर्वी किनारे पर महाराजा काशी का किला है। इसका निर्माण महाराजा बलवंत सिंह ने करवाया था। लाल पत्थरों से निर्मित इस किले को संग्रहालय में बदलकर आम जनों के लिए खोल दिया गया है। इस संग्रहालय में राजसी ठाठबाट की तमाम चीजें गाडियां, गहने, कपड़े आदि के अलावा अस्त्र-शस्त्र का विशाल संग्रह है। अपनी तरह का यह एशिया का सबसे बड़ा संग्रहालय है। सारनाथ- बौद्धध्र्मावलम्बियों के लिए विशेष महत्व रखने वाला यह स्थल कई मायनों में महत्वपूर्ण है। भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना पहला उपदेश यहीं दिया था। धमेक स्तूपरू यह स्तूप सारनाथ की पहचान है। 43.6 मीटर लम्बा यह स्तूप ईंट और पत्थरों से बना हुआ है। इसमें भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेष रखे गए हैं।
मूलगंध कुटी विहार महात्मा बुद्ध का यह आधुनिक मंदिर महाबोधि सोसाइटी द्वारा बनवाया गया है। जिसमें भगवान बुद्ध की मनमोहक मूर्ति स्थापित है। कुछ पुराने मंदिर यहां जर्जर भी हो चुके हैं जिनका पुनरोद्धार कराया जा रहा है। यहां एक छोटा सा चिडिया घर और पुराने अवशेष हैं। सारनाथ संग्रहालयरू इस संग्रहालय में भारत का राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह अशोक स्तंभ संरक्षित है। इसके अलावा यहां बुद्ध और बोध्सित्व की मूर्तिकला का विशाल और दुर्लभ संग्रह है।….