गाजियाबाद, करंट क्राइम । यूपीएसटीएफ ने अयोध्या से भाजपा नेताओं का खुद को करीबी बात कर ठगी का जाल फैलाने वाले महाठग अनूप चौधरी को गिरफ्तार किया है। पुलिस की एफआईआर के अनुसार अनूप चौधरी पिछले तीन सालों से गाजियाबाद पुलिस के जरिए गनर ले रहा था। वह बाकायदा गाजियाबाद के आलाधिकारियों को भारत सरकार के फर्जी लेटर हैड पर ई-मेल किया करता था। कभी किसी न किसी आयोग का सदस्य बना कर गनर हासिल करता था। अनूप चौधरी की गिरफ्तारी के बाद गाजियाबाद पुलिस-प्रशासन की गनर देने को लेकर की जाने वाली जांच और पूरी मॉनिटरिंग सेल सवालों के घेरे में आ गई है। सवाल उठता है कि जब जरूरतमंद लोगों को गनर की आवश्यकता पड़ती है तो तमाम तरीके की पेंचीदा जांच और प्रपत्रों का हवाला दिया जाता है लेकिन पहले पवन पांडे, फिर श्रीकांत त्यागी और अब गाजियाबाद पुलिस के सहारे रौब गालिब करने वाले अनूप चौधरी का मामला भी कुछ इसी तरह से है। इस मामले में गाजियाबाद पुलिस कमिश्नरेट ने अनूप चौधरी के साथ चल रहे गनर पर मुकदमा लिखा है कि वह बिना अधिकारियों को बताएं उसके साथ कैसे गैर जनपद में चल रहा था। फिलहाल इस मामले में जानकारी मिली है कि 2020, 2022 और 2023 में लगभग सात बार अलग-अलग जांच के आधार पर ही अनूप चौधरी के साथ गनर चल रहा था।
अनूप चौधरी कभी खुद को उत्तर रेलवे का सदस्य बताता था, तो कभी रेल मंत्रालय भारत सरकार एवं तकनीकी सदस्य फिल्म विकास परिषद उत्तर प्रदेश के साथ ही भारतीय खाद्य निगम मंत्रालय के फर्जी लेटर पैड के जरिए खुद को विशेष बताते हुए यह सुविधा हासिल कर लेता था। इस पूरे प्रकरण ने जहां गाजियाबाद पुलिस कमिश्नरेट के अधिकारियों की मॉनिटरिंग व्यवस्था की पोल खोली है ,तो वहीं सवाल उठ रहा है कि आखिर बिना जांच पड़ताल और मूल पते की जानकारी जुटा बिना कैसे गनर और क्यों मुहैया कराया गया था।
त्रिस्तरीय समिति करती है गनर देने का फैसला
करंट क्राइम। गनर दिए जाने का फैसला त्रिस्तरीय समिति करती है। पहले जिला स्तर पर एसएसपी या एसपी स्तर की रिपोर्ट पर जिला स्तरीय समिति संस्तुती करती है। जिसमें सबसे पहले चौकी थाने की रिपोर्ट को अधिकारियों के पास पहुंचा जाता है। फिर एसपी अपराध या एसपी प्रोटोकोल के साथ ही एलआईयू विभाग की भी रिपोर्ट ली जाती है। इसके बाद यह रिपोर्ट डीएम की रिपोर्ट पर मंडल स्तरीय समिति के समक्ष रखी जाती है, जिसकी स्वीकृति मंडलायुक्त देते हैं। उसके बाद शासन स्तर पर गठित उच्च स्तरीय समिति गनर दिए जाने पर अंतिम फैसला लेती है। वहीं उच्च स्तरीय समिति विशेष परिस्थितियों में निर्धारित शुल्क में बदलाव भी कर सकती है।
कमिश्नरेट सिस्टम में किया गया था रिव्यू का दावा
करंट क्राइम। समय-समय पर पुलिस विभाग में गनर जिन लोगों को दिया जाता है या पहले से मौजूद होता है उनकी सुरक्षा और अन्य मामलों का रिव्यू लिया जाता है। कहा गया है कि अनूप जब भी गाजियाबाद आता था, उससे पहले डीएम-एसएसपी को फर्जी लेटर हैड लगाकर एक ईमेल भेजता था। अफसर भी उस लेटर हेड की कोई जांच नहीं कराते थे और उसको गनर दे देते थे। कहा जा रहा है कि गाजियाबाद कमिश्नरेट के कई पुलिस अफसर अनूप चौधरी के खास हैं। इस वजह से उसे गनर मिलने में कोई दिक्कत नहीं आती थी।
कई अधिकारियों पर आएगी इस मामले की आंच
करंट क्राइम। पुलिस के विश्वसनीय सूत्र बता रहे हैं कि गाजियाबाद के अधिकारियों को आखिरी ईमेल गनर लेने के लिए 14 सितंबर 2023 को भेजा गया था। जिसके बाद पुलिस ने उसे अयोध्या से पड़ा है। मामले का खुलासा होने पर खुद के बचाव में एफआईआर दर्ज की गई है। गाजियाबाद पुलिस के वीआईपी सेल प्रभारी मयंक अरोड़ा ने अनूप चौधरी के खिलाफ थाना कवि नगर में आईपीसी की धारा-419, 467 और 471 में एफआईआर दर्ज कराई है। विभाग के सूत्र बता रहे हैं कि इस पूरे मामले में एडीसीपी, एसीपी और थाना व चौकी पुलिस की कार्रवाई व कार्यप्रणाली सवालों की घेरे में आ गई है। अनूप चौधरी ने 6 दिसंबर 2020, 18 दिसंबर 2020, 20 अगस्त 2022, 30 अगस्त 2022, 27 फरवरी 2023, 10 जुलाई 2023 और 14 सितंबर 2023 को भी गनर लिया। इसमें अनूप ने खुद को उत्तर रेलवे का सदस्य, फिल्म विकास परिषद उप्र का पूर्व सदस्य, भारतीय खाद्य निगम की सलाहकार समिति का सदस्य होने का फर्जी लेटर हेड लगाकर गनर लिया। हर बार अनूप चौधरी ने गाजियाबाद पुलिस को ई-मेल कर गनर लिया।
यूपी के गृह विभाग ने तलब की रिपोर्ट
जालसाज फ्रॉड और खुद को रेल मंत्रालय का सदस्य बताने वाले अनूप चौधरी की गिरफ्तारी के बाद एक के बाद एक खुलासे हो रहे हैं। गिरफ्तारी के बाद अनूप चौधरी की पूरी रिपोर्ट गृह विभाग में तलब की है।
इन बिंदुओं पर
मांगी रिपोर्ट
आखिर अनूप चौधरी किन लोगों से मुलाकात करता था।
उसका कारोबार क्या है।
अब तक कितने लोगों से ठगी
की है।
गृह विभाग तक की पैरवी करने वाले में कौन-कौन शामिल है।