गाजियाबाद (करंट क्राइम)। राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार ने पत्र लिखा और पत्र में नाले और आरसीसी सड़क को लेकर कुछ ऐसा हो गया कि विधायकों और मेयर के बीच रड़क वाली स्थिति दिखाई देने लगी। दरअसल एमएलसी और मेयर के बीच इस लैटर से ज्यादा मेयर के कमेंट को विषय वस्तु माना जा रहा है। एक पार्षद के वार्ड में नाला बनना है और सीसी रोड़ बननी है। पार्षद ने राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार नरेन्द्र कश्यप को लैटर लिखा और पार्षद के लैटर पर संज्ञान लेते हुए राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार नरेन्द्र कश्यप ने नगर आयुक्त को पत्र लिखा। उन्होंने कहा कि वार्ड में यह काम करा दिया जाये। अब मेयर तक यह लैटर कैसे पहुंचा ये निगम वाले जानें लेकिन मेयर की टिप्पणी के बाद इसमें विधानसभा वाले भी कूदे। मेयर ने अपनी टिप्पणी में मंत्री को सुझाव दिया कि थोड़ी सी निधि अपनी खर्च कर लो। यहां एडवाईज में ये भी लिख दिया कि खाली बस स्टॉप शेड ही जरूरी नहीं है। अब राजनीति सभी शब्दों के खिलाड़ी होते हैं और जब वार्ड से लेकर लोकसभा तक भाजपा है। जब विधानसभा से लेकर राज्यसभा तक कमल का फूल खिला है तो फिर भाजपा वाले जानते हैं कि इस विषय पर सरकार और पार्टी से अलग कुछ नहीं बोला जा सकता। लेकिन प्रोटोकॉल के फ्रेम में रहकर विधायक ने उतने ही प्रेम से अपनी बात रख दी है।
एक विधायक का आॅफ द रिकार्ड कहना है कि मेयर की टिप्पणी से ऐसा लग रहा है कि वो एमएलसी-मंत्री और निगम को अलग अलग मान रही हैं। लेकिन विधायक का कहना है कि मंत्री-एमएलसी और मेयर अलग हो सकते हैं लेकिन यह भी सत्य है कि एमएलसी, विधायक, राज्यसभा सांसद, लोकसभा सांसद भी नगर निगम सदन का अंग होते हैं वो बोर्ड के सदस्य होते हैं और उन्हें निगम के चुनाव में मतदान का अधिकार है। उनका वोट कई बार निर्णयायक होता है। विधायकों ने यहां तर्क दिया है कि मेयर भले ही कह रहीं हो कि पत्र लिखने वाले अपनी निधि खर्च कर लें। लेकिन उन्हें शायद यह पता नहीं है कि मंत्री, एमएलसी, विधायक और सांसद भी बोर्ड के सदस्य होते हैं। एक विधायक ने आॅफ द रिकार्ड कहा कि हम भी निगम के सदस्य हैं, बैठक में जा सकते है। बोर्ड के चुनाव में मतदान कर सकते हैं तो इसी हिसाब से विधायक, एमएलसी और मंत्री पत्र भी लिख सकते हैं।
कश्यप रहेंगे खामोश लेकिन विधायकों में जारी है रोष
(करंट क्राइम)। विधायक अभी इस मुद्दे पर कुछ बोलना नहीं चाह रहे। वो सियासी कारणों से बिजी हैं। लेकिन सूत्र बताते हैं कि इस पत्र के बाद अब विधायक, एमएलसी और मंत्री इस बात पर भले ही खुलकर नहीं बोल रहे हैं लेकिन वो अपनी बात को पार्टी प्रोटोकॉल का पालन करते हुए रख रहे हैं। कश्यप सुलझे हुए नेता है लेकिन विधायक खेमे में चर्चा शुरू हो गई है। विधायकों का कहना है कि जब हम नगर निगम बोर्ड के सदस्य हैं और हमें वोट देने का अधिकार है तो फिर हमें इस मुद्दे पर बात रखने का भी अधिकार है। मेयर निगम की मुखिया हैं लेकिन हम भी निगम के सदस्य हैं। मंत्री ने ये लैटर अधिकारी को लिखा था और ये मेयर बेहतर जानती हैं कि उनके पास ये लैटर कहां से पहुंचा और क्या उन्हें इस लैटर पर राय देने का कोई अधिकार था। जनप्रतिनिधियों का कहना है कि हम बोर्ड के सदस्य हैं और हम अधिकारी को पत्र भी लिख सकते हैं और अपनी राय भी दे सकते हैं।