गाजियाबाद (करंट क्राइम)। भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा है। प्रत्येक दल भ्रष्टाचार समाप्त करने की घोषणा के साथ मतदाताओं से वोट मांगते हैं। एक दूसरे पर भ्रष्ट आचरण के आरोप भी लगाते हैं। लेकिन जब अवसर होते हैं तब भ्रष्टाचार के विरुद्ध कदम उठाने से पीछे हट जाते हैं। पिछले दिनों कुछ ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जिनमें भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाने के बाद भी सरकार के मंत्रियों को मंत्रिमंडल से बर्खास्त नहीं किया गया है। महाराष्ट्र की महाअघाड़ी सरकार के मंत्री रहे नवाब मलिक जेल में रहते हुए भी सरकार के मंत्री रहे। उन्हें तत्कालीन उद्धव सरकार ने बर्खास्त नहीं किया था। हांलांकि उद्धव सरकार के पतन के साथ ही नवाब मलिक का मंत्री पद चला गया।
दूसरे , दिल्ली की केजरीवाल सरकार के मंत्री सतेंद्र जैन जेल में हैं लेकिन केजरीवाल जी ने उन्हें अभी भी मंत्रिमंडल से नहीं हटाया है। तीसरे, पश्चिमी बंगाल सरकार के मंत्री पार्थ चटर्जी जेल में हैं लेकिन ममता बनर्जी ने उन्हें मंत्री पद से हटाया नहीं है।
पहले परम्परा थी कि एफआईआर दर्ज होते ही मंत्री/ मुख्यमंत्री को त्यागपत्र देना पड़ता था। मुझे याद है कि मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री रहते सुश्री उमाभारती ने कर्नाटक में अपने विरुद्ध एफआईआर दर्ज होते ही मुख्यमंत्री पद से त्याग पत्र दे दिया था। एक बार हवाला प्रकरण में जैन डायरी में श्री लालकृष्ण आडवाणी का नाम आने पर उन्होंने न केवल संसद से त्यागपत्र दे दिया था बल्कि घोषणा की थी कि जब तक न्यायालय से बरी नहीं हो जाऊंगा तब तक संसद में कदम नहीं रखूंगा और इसे निभाया भी था। इससे ईमानदारी के प्रति प्रतिबद्धता का सन्देश निकलता है। लेकिन वर्तमान समय मे विभिन्न सरकारों द्वारा भ्रष्टाचारों के आरोपों में जेल जाने वाले मंत्रियों को बर्खास्त न करने का स्पष्ट सन्देश है कि वे सरकारें और उन सरकारों के मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार को लेकर संवेदनहीन हैं। ये आरोप कि ईडी का दुरुपयोग हो रहा है अगर इसे थोड़ी देर के लिए तर्क के तौर पर सही भी मान भी लें तो क्या न्यायालयों द्वारा उनको जमानत न देना ये प्रदर्शित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि प्रथम दृष्टया आरोपों में दम है? फिर भी ऐसे आरोपियों को जेल में रहते हुए भी मंत्री बनाये रखना ईमानदारी के मुंह पर तमाचा नहीं है?
आज देश के आम लोगों को समझ में आने लगा है कि पहले राजनैतिक दलों में अंडरस्टैंडिंग थी कि बड़े नेताओं के भ्रष्टाचार पर कोई कार्यवाही नहीं करेगा। इसीलिए बड़े नेता बड़े राजनैतिक परिवारों की लूट पर कभी कोई कार्यवाही नहीं होती थी। उत्तर प्रदेश में मायावती जी ने घोषणा की कि अगर सत्ता में आई तो मुलायम सिंह को जेल भेज दूंगी लेकिन सत्ता रूढ़ होते ही सब मामले ठंडे बस्ते में चले गए। ऐसा ही अखिलेश यादव जी ने किया । आज मोदी सरकार ने उस अंडरस्टैंडिंग को तोड़ा है और बड़े लोगों के विरुद्ध कार्यवाही की जा रही है इसलिए ‘चोर मचाये शोर ‘ वाली उक्ति चरितार्थ हो रही है।