Ghaziabad: तीन महीने बाद देश में लोकसभा चुनाव की घड़ी बजने की तैयारी है। राजनीतिक दल इस बार वोटों के मनीषी को बनाए रखने के लिए जातियों को मना लेने में जुटे हुए हैं। यह उत्तर प्रदेश है, जो लोकसभा सीटों की सबसे बड़ी संख्या के साथ आता है। यहां 80 सीटों से पार्टीयां लड़ रही हैं, और इन सीटों के माध्यम से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर कदम रखने का मौका पाने की राह तैय हो रही है। इस संदर्भ में, छोटे दलों के अलावा बड़े सियासी दल भी अपनी रणनीति में बदलाव कर रहे हैं। इसी कड़ी में, गुरुवार को सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओपी राजभर ने गाजियाबाद के मुरादनगर में एक घड़ी बैठक के दौरान कई महत्वपूर्ण सवालों के जवाब दिए।
गठबंधन में बदलाव की चर्चा
चुनावों से पहले गठबंधन तोड़ने और नए गठबंधन बनाने में निपुण सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने साइकिल की सवारी छोड़कर कमल खिलाने की दिशा में कदम बढ़ाया है। उन्होंने गाजियाबाद के मुरादनगर में एक बैठक के दौरान सवालों के उत्तर दिए, और उनकी बेबाकी से चर्चा हुई।
राजनेता की सटीकता और विवेचना
ओपी राजभर को एक कुशल राजनेता के रूप में समझा जा रहा है और उन्हें राजनीति का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता है। सपा को छोड़ने के पीछे बड़ी वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि गठबंधन कैसे तोड़ा जाता है, यह सपा को ज्ञान नहीं है। उन्होंने समझाया कि सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया तो सोनिया गांधी को दोषी ठहराया गया, जबकि बसपा के साथ गठबंधन करते समय मायावती को दोषी ठहराया गया। सुभासपा के साथ गठबंधन करते समय भी उन्होंने खुद को दोषी बताया। इसके साथ ही, उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव को सीखना चाहिए कि लोगों को साथ लेकर कैसे आगे बढ़ता है।
प्रधानमंत्री से चर्चा
ओपी राजभर ने बताया कि यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने गठबंधन के लिए कई बार प्रयास किए हैं, क्योंकि तब सुभासपा ने सपा के साथ दूर तक चला गया था। उन्होंने बताया कि इसलिए यह भयंकर था कि वह फिर से वापस लौटेंगे। राजभर ने बताया कि सुभासपा को बेचा जाने का आरोप लगा है और उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री से भी उनके साथ साथ रहने का वादा किया गया था। उन्होंने आगे कहा कि यूपी में भाजपा और सुभासपा के बीच समझौता हुआ है, और उन्हें मंत्री पद नहीं मिला है।
एक दर्जन सीटों पर होगा फायदा
ओम प्रकाश राजभर का कहना है कि उन्होंने समाजवादी पार्टी को छोड़कर एनडीए में शामिल होने का निर्णय लिया है, क्योंकि वह देख रहे थे कि सुभासपा सपा के साथ बहुत दूर तक चली गई थी। एनडीए में शामिल होकर, राजभर ने कहा है कि वे उत्तर प्रदेश में बीजेपी को मजबूत करने का काम करेंगे और एक दर्जन सीटों पर एनडीए को मदद मिलेगी।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और ओपी राजभर के बीच छत्तीस का आंकड़ा दिखाता है कि योगी सरकार में ओपी राजभर को मंत्री बनाए जाने को लेकर संशय है। माना जा रहा है कि इस विषय में ओपी राजभर और योगी आदित्यनाथ दोनों दिल्ली की दौड़ लगा चुके हैं। योगी सरकार में मंत्रिमंडल में विस्तार में देरी की वजह ओपी राजभर को माना जा रहा है। एनडीए में शामिल होने के बाद ओम प्रकाश राजभर की वापसी से भी बीजेपी को उम्मीद है कि गाजीपुर, बलिया, आजमगढ़, लालगंज, संत कबीर नगर, अंबेडकर नगर, जौनपुर, , घोसी, चंदौली, मछल्ला, मछलीशहर, और अन्य क्षेत्रों में एनडीए को मजबूती हासिल होगी।
नए मोड़ की संभावना
अगर आप तकनीकी संदर्भ में देखें, तो यह उत्तर प्रदेश में राजनीतिक गतिविधियों के लिए एक नया मोड़ खोल सकता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और ओपी राजभर के बीच चल रहे तनाव के कारण, मन्त्रिमंडल में उनकी स्थिति के बारे में चर्चाएं हैं। आपको बता दें कि एनडीए में शामिल होने के बाद ओम प्रकाश राजभर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की तारीफ की हैं, जिससे उनका रूख स्पष्टता से दिखता है।
यहां एक नजर डालने पर प्रमुख विपक्षी दलों और उनके नेताओं के साथ संबंध तय हो सकते हैं, जिससे यह नतीजा निकलता है कि एनडीए में शामिल होने के बाद उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। अब उम्मीद है कि ओपी राजभर का एनडीए में समर्थन मिले और वह अपने पूर्व दल से जुड़कर चुनावी परिस्थितियों में बदलाव ला सकें। इस समय की राजनीतिक स्थिति में कोई भी चुनौती का सामना करना नहीं आसान है, लेकिन ओपी राजभर ने अपनी बहादुरी और रणनीतिक कुशलता के साथ यह निर्णय लिया है कि वह चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। इस प्रकार, उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नया चरण शुरू हो रहा है, और ओपी राजभर की एनडीए में शामिलता इसे और भी रोचक बना रही है।