कालो के काल महाकाल शिव का निराकार स्वरूप ज्योतिपुंज के रूप में संसार को प्रकाशमय कर रहा है। मस्तक चन्द्र विराजे, डम-डम डमरू बाजे, शिव पुराण में भगवान शिव की महिमा और भक्ति के अतिरिक्त पूजा-पद्धति, अनेक ज्ञानप्रद आख्यान और शिक्षाप्रद कथाओं का सुन्दर वर्णन और भगवान शिव के भव्यतम व्यक्तित्व का गुणगान किया गया है। भगवान शिव जो स्वयंभू हैं, शाश्वत हैं, सर्वोच्च सत्ता है, विश्व चेतना हैं और ब्रह्माण्डीय अस्तित्व के आधार हैं। शिव पुराण में छह खण्ड और चौबीसो श्लोक है। इस पुराण में भगवान शिव के विविध रूपों, अवतारों, ज्योतिर्लिंगों, भक्तों और भक्ति का व्यापक वर्णन कहा गया है। शिव पुराण में देवो के देव महादेव का कल्याणकारी स्वरूप का यथार्थ विवेचन, रहस्य, महिमा और उपासना का सविस्तार वर्णन कहा गया है।
लगभग सभी पुराणों में भगवान शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति बताया गया है। भगवान शिव सहज रूप से ही प्रसन्न हो जाते है,और मनोवांछित फल देने वाले हैं। परंतु शिव पुराण में भगवान शिव का जीवन चरित्र निम्नलिखित है।
विद्येश्वर संहिता, रुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिता, कैलास संहिता, वायु संहिता, उमा संहिता।
शिव, हिन्दू धर्म में त्रिदेवों में से एक, ब्रह्मा और विष्णु के साथ मिलकर ब्रह्मा-विष्णु-महेश (त्रिमूर्ति) के रूप में पूजे जाने वाले परमेश्वर के रूप में जाने जाते हैं. उन्हें आदियोगी, भूतनाथ, भूतेश, रुद्र, नीलकंठ, आदिनाथ, गिरीश, भैरव, शंकर, त्रिलोचन, शिवशंकर आदि नामों से भी पुकारा जाता है. शिव का दर्शन सातरह पुराणों में मुख्य रूप से मिलता है, और उनकी कहानियां और लीलाएं उनके भक्तों को धार्मिक और आध्यात्मिक शिक्षाएं देने के लिए उपयोगी हैं. शिव की पहचान विशेष रूप से उनके त्रिशूल, गंगा नदी का धारा धारण करने, सर्पों को गले में लटका रहने, चंद्रमा को जटा में सजाकर, नीला ठंडा रंग, और आँधी और तांडव नृत्य करते हुए दिखती है. भगवान शिव का पूजा-अर्चना, महाशिवरात्रि, कार्तिक मास, और सोमवार को उनकी विशेष उपासना की जाती है. उनका ध्यान और भक्ति से विशेष रूप से मुक्ति और आत्मा की शान्ति प्राप्त होती है. भगवान शिव को सद्गुरु, अद्वितीय ब्रह्म, और सर्वज्ञ भी माना जाता है, जो संसार के चक्र में फंसे हुए जीवों को मोक्ष की प्राप्ति में मदद करते हैं. वह दैवी शक्ति पार्वती के साथ जुड़े हुए हैं और उनके साथ अर्धनारीश्वर रूप में पूजे जाते हैं।
त्रिमूर्ति का सिद्धांत: शिव पुराण में त्रिमूर्ति का सिद्धांत व्यक्त होता है, जिसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) एक अद्भुत तात्त्विकता में हैं. यह सिद्धांत बताता है कि सृष्टि, स्थिति और संहार में तीनों देवताएं एक में हैं, जो हमें सार्वभौमिक एकता का आभास कराता है. शिव पुराण में शिव की ध्यान और साधना को महत्वपूर्ण रूप से बताया गया है. शिवाजी की ध्यान से ही अध्यात्मिक ऊर्जा और शांति मिलती है, जो हमें जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालती है. शिव पुराण में नाद योग का वर्णन है, जो मानव जीवन को ध्यान और समाधि की दिशा में प्रेरित करता है। नाद योग के माध्यम से अपने आत्मा का साक्षात्कार होता है और व्यक्ति आत्मनिरीक्षण में अग्रणी होता है. शिव पुराण भक्ति के मार्ग को प्रमोट करता है. भक्ति शिव के प्रति श्रद्धा और प्रेम का अभ्यास करने से मानव जीवन में सामंजस्य और सत्य का अनुभव कर सकता है।
शिव पुराण में शिवरात्रि का विशेष महत्व है, जिसे शिव भक्त विशेष आस्था और श्रद्धा से मनाते हैं. शिव पुराण हमें जीवन के मार्गदर्शन में सहायक होता है, जिससे हम धार्मिक, नैतिक, और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से जीवन को समृद्धि और सम्मानपूर्ण बना सकते हैं।
शिव पुराण में अहिंसा का महत्वपूर्ण स्थान है और यह सिखाता है कि धर्मपरायण जीवन जीना हमें ऊँचाईयों तक पहुंचाता है. शिव पुराण में कर्मयोग के सिद्धांतों का विस्तार है, जो कहता है कि कर्मों को निष्काम भाव से करना चाहिए और फल की आसक्ति से बचना चाहिए. शिव पुराण में गंगा को महापवित्र नदी माना गया है और गंगा स्नान का महत्व उजागर किया गया है, जो आत्मशुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होता है. काल और मृत्यु का अद्भूत रूप: शिव पुराण में काल और मृत्यु का अद्भूत रूप का वर्णन है, जो जीवन की अनित्यता और अद्वितीयता का बोध कराता है.