वो कहते है न, भारत की भूमि अगर कभी वीर विहीन नहीं हुई तो कभी संत विहीन भी नहीं रही। क्योंकि इस भूमि पर बाबा सियाराम जी जैसे संत आज भी जीवित है। ध्यान साधना के बल पर बाबा सियाराम ने खुद को इतना मजबूत बना लिया है कि कड़ाके की ठंड और दहकती गर्मी भी उनका कुछ नही बिगाड़ सकती। वे एक छोटे से लंगोट में ही सारे मौसम निकाल देते हैं। न उन्हें कूलर-ऐसी की ज़रूरत पड़ती है और ना ही कम्बल स्वेटर की। बाबा शतक पार कर चुके हैं लेकिन आज भी स्वालंबी है। वे अपना भोजन स्वयं बनाते हैं और कई सारे काम खुद करते हैं। समय-समय पर इस धरती पर ऐसे-ऐसे संत साधू हुये जिनकी तप-तपस्या से समाज को नया उजाला मिलता रहा है। ऐसे ही एक संत शिरोमणि हैं संत सियाराम जी की, जिनकी उम्र 109 वर्ष से अधिक बताई जाती है और वो आज भी हर रोज 21 घंटे रामायण का पाठ करते हैं। वो भी बिना चश्मे के।
सियाराम बाबा का जन्म
संत सियाराम बाबा का जन्म मुंबई में हुआ था उनकी उम्र 109 साल है। हालांकि कई लोग उनकी उम्र 80 बताते हैं तो कोई 130। बाल अवस्था में उन्हें एक संत मिले जिनके संपर्क में आने के बाद भक्ति का ऐसा रस चढ़ा कि उन्होंने वैराग्य धारण कर घर का त्याग दिया। उसके बाद संत सियाराम बाबा ने कुछ समय तक हिमालय में तपस्या की। इसके बाद का उनका जीवन पूरी तरह से रहस्यमई है। संत सियाराम बाबा आज से 72 साल पहले 1951 में मध्य प्रदेश के खरगोन के भट्यान गांव में नर्मदा किनारे आकर बस गए थे और तब से आज तक वे इसी जगह पर रहकर राम नाम की धारा बहा रहे है।
मानसून में मां नर्मदा से बात करते हैं बात
देश विदेश से लोग नर्मदा किनारे बाबा के आश्रम में पहुंचते है सिर्फ और सिर्फ बाबा की एक झलक पाने ले लिए। विदेशों से भी लोग यहां आते हैं। कहते हैं मानसून के समय में इलाके के लोग यहाँ से चले जाते है क्यों की बारिश के समय कई बार गाँव नदी में सामने का खतरा रहता है, लेकिन बाबा यहीं निवास करते हैं। कहने वाले कहते हैं कि यही वो समय होता है जब सियाराम बाबा मां नर्मदा से बातें करते हैं। सियाराम बाबा का ये आश्रम आज मालवा-निमाड़ के इलाके का लोकप्रिय तीर्थ बन गया है। यहां लोग असंख्य प्रश्नों के साथ पहुंचते है लेकिन बाबा कुछ कहते नहीं है। सियाराम बाबा कष्ट में डूबे लोगों का मार्ग अपने मौन के पुल से बनाकर ईश्वर तक पहुंचते हैं।
20 सालों से है बाबा के पैर में घाव
सियाराम बाबा के पैर में एक घाव है लोग कहते हैं कि 20 सलों से ज्यादा का समय हो चूका है लेकिन यह घाव बाबा का पीछा नहीं छोड़ रहा है। यही कारण है कि जब भी आप संत सियाराम बाबा के दर्शन करेंगे या उनकी तस्वीर देखंगे तो आपको उनके पैर हमेशा सफ़ेद पट्टियों से जकड़े हुए दिखेंगे।
12 वर्षों से मौन धारण करने के बाद मुख से निकला पहला शब्द बन गया उनका नाम
बाबा ने 12 वर्षों तक मौन धारण किया था। मौन व्रत तोड़ने के बाद उन्होंने सबसे पहले ‘सियाराम’ शब्द का उच्चारण किया। हनुमान भक्त होने के नाते उनके दिल मे भी राम-सीता बसते हैं। तभी से उनका नाम सियाराम बाबा पड़ गया और वे उसी नाम से प्रसिद्ध हुए। कहा जाता है कि बाबा ने खडेश्वर तप भी किया है। इस तप में खड़े होकर ही दिन के सारे काम करने पड़ते हैं। जिस दौरान बाबा खडेश्वर तप में लगे हुए थे, उसी दौरान नर्मदा में बाढ़ आ गया था। नर्मदा का पानी बाबा के नाभि तक पहुंच गया था लेकिन बाबा ने तप जारी रखा।
हनुमान जी के है परम भक्त
बाबा के बारे में किसी को अधिक जानकारी नहीं है। ग्रामीणों के मुताबिक बाबा हनुमानजी के भक्त हैं। नर्मदा किनारे ही हनुमानजी का एक छोटा-सा मंदिर है, लेकिन किसी विवाद के चलते मंदिर को दीवार से पूरा ढंक दिया गया है। ग्रामीणों का कहना है कि मंदिर पर दीवार होने के बाद कान लगाने पर भी घंटी की आवाज आती है। ग्रामीण बताते हैं कि बाबा वर्षों पूर्व महाराष्ट्र से नर्मदा किनारे आए थे।
करोड़ों का दान देते है पर दक्षिणा में 10 रुपया ही लेते हैं बाबा
संत सियाराम की सबसे ज्यादा चर्चा उनके दानी स्वभाव को लेकर होती है। बाबा बडे़ दानी हैं। उन्होंने समय-समय पर समाज की भलाई के लिये बड़े दान दिये हैं। फिर चाहे बात नर्मदा घाट की मरम्मत के लिये 2 करोड़ 57 लाख रुपये के दान की हो या यहीं बन रहे एक मंदिर के लिये 5 लाख, ऐसे कई धार्मिक कार्यों के लिये उन्होंने अब तक करोड़ रूपये दान कर दिये हैं। बाबा के दर्शन करने वाले लोग उन्हें दान में ढेरों पैसे देने को तैयार हैं लेकिन बाबा ने कभी भी किसी से 10 रुपये से ज्यादा नही लिए। कई विदेशी उनसे मिलकर खुश हुए और पैसे देने चाहे लेकिन बाबा ने दस रुपया लिया और बाकी पैसे लौटा दिए।