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सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा से भाजपा विधायकों के निलंबन पर फैसला सुरक्षित रखा

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नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सदन में कथित कदाचार और दुर्व्यवहार के लिए महाराष्ट्र विधानसभा के 12 भाजपा विधायकों के एक साल के निलंबन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

मामले में दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार ने फैसला सुरक्षित रख लिया।
निलंबित विधायकों के पक्ष में वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी, मुकुल रोहतगी, नीरज किशन कौल और सिद्धार्थ भटनागर ने दलीलें पेश कीं। वरिष्ठ अधिवक्ताओं को अधिवक्ता सिद्धार्थ धर्माधिकारी और अभिकल्प प्रताप सिंह ने सहायता प्रदान की।
वकीलों ने तर्क दिया कि अनुशासन के इरादे से निलंबन सदन के सत्र से आगे नहीं जा सकता।
महाराष्ट्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सी. ए. सुंदरम ने तर्क दिया कि एक सदस्य को एक साल के लिए विधानसभा से निलंबित करने का कार्य संविधान द्वारा प्रतिबंधित नहीं है।
दूसरी ओर, याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने तर्क दिया कि केवल निहित शक्ति का प्रयोग करने से सदन संविधान के विपरीत कार्य कर सकता है, और कोई भी प्रारंभिक शक्ति संविधान या मौलिक अधिकारों से परे नहीं जा सकती है। उन्होंने तर्क दिया कि निलंबन का कोई औचित्य नहीं है, जो निर्वाचन क्षेत्र के अधिकार को प्रभावित करता है। रोहतगी ने जोर देकर कहा कि 1 साल के निलंबन का निर्णय पूरी तरह से तर्कहीन है, क्योंकि इसमें प्राकृतिक न्याय का अनुपालन नहीं किया गया है।
मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति खानविलकर ने सुंदरम से कहा था कि विधायकों का निलंबन सदन के सत्र से बड़ा नहीं होना चाहिए और इसके अलावा कुछ भी तर्कहीन होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा था कि विधानसभा से एक साल के लिए निलंबित करने को कोई मकसद होना चाहिए और सदस्यों को अगले सत्र तक में शामिल होने की अनुमति नहीं देने का कोई जबरदस्त कारण होना चाहिए।
बीजेपी के 12 विधायकों ने एक साल के लिए निलंबित करने वाले विधानसभा में पारित प्रस्ताव को चुनौती दी है। उन्हें पिछले साल पांच जुलाई को विधानसभा से निलंबित कर दिया गया था। राज्य सरकार ने उन पर विधानसभा के अध्यक्ष के कक्ष में पीठासीन अधिकारी भास्कर जाधव के साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाया था।
न्यायमूर्ति रविकुमार ने कहा, एक और बात यह है कि ये लोकतंत्र के लिए खतरा है। मान लीजिए कि सत्ताधारी पार्टी (विधानसभा में) कमजोर है और 15 या 20 लोग निलंबित हैं, तो ऐसे में लोकतंत्र का भाग्य क्या होगा?
पीठ ने सुंदरम से पूछा, निलंबन किस अवधि तक और किस उद्देश्य के लिए है?
न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने कहा कि सदन सत्रों में आयोजित होता है और तर्क यह है कि जब एक नया सत्र शुरू होता है, तो नया कार्य शुरू होता है। उन्होंने आगे सवाल किया कि उन्हें एक विशेष सत्र के लिए निलंबित किया जा सकता है, लेकिन उस समय से परे तर्कसंगतता का सवाल उठता है।
11 जनवरी को, अदालत ने पाया था कि विधानसभा के अंदर और बाहर दोनों जगह, पीठासीन अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार करने के लिए जुलाई में 12 भाजपा विधायकों को एक साल के लिए निलंबित करना एक प्रकार से निष्कासन से भी बदतर है।

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