इस इलाके में इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को लेकर है। वैसे वे है तो मिजार्पुर के मगर उनकी कार्य स्थली दशकों से बुंदेलखंड और उसमें भी जालौन जिला रहा है। वे यहां से एक बार भाग्य आजमा भी चुके हैं। उन्होंने वर्ष 2012 में कालपी से विधानसभा का चुनाव लड़ा था मगर हार उनके खाते में आई थी।
बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के सात-सात जिलों को मिलाकर बनता है। उत्तर प्रदेश की कई विधानसभा सीटें ऐसी हैं जो मध्य प्रदेश से जुड़ी हुई तो है ही साथ में यहां के लोगों के रिश्ते नाते भी उनसे करीबी हैं। स्वतंत्र देव सिंह के लिए सबसे सुरक्षित सीट कौन होगी और उसमें मध्य प्रदेश क्या भूमिका निभा सकता है, इस पर पार्टी के भीतर मंथन चल रहा है। इतना तय है कि भाजपा प्रदेशाध्यक्ष केा चुनाव इसी इलाके से लड़ना है।
पार्टी के सूत्रों का दावा है कि प्रदेशाध्यक्ष बुंदेलखंड के ऐसे विधानसभा क्ष्ेात्र से चुनाव लड़ेंगे,पूरी तरह सुरक्षित है और पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। इसके लिए जालौन और झांसी की कुछ सीटों पर मंथन किया जा रहा है। झांसी जिले का गरौठा विधानसभा क्षेत्र ऐसा है जहां पिछड़ों की तादाद अच्छी खासी है और यहां से पिछले तीन चुनाव से इसी वर्ग का व्यक्ति चुनाव जीतता आ रहा है, इसके अलावा यहां ब्राह्मण वर्ग की भी अच्छी खासी आबादी है। इस वर्ग का वोट भी भाजपा केा मिलने की उम्मीद है। लिहाजा यहां से जो वर्तमान में भाजपा के विधायक जवाहर राजपूत है वह भी पिछड़े वर्ग से आते है और उनकी छवि साफ सुथरी है, जिसके चलते यहां जनता में नाराजगी भी नहीं है।
झांसी के गरौठा विधानसभा के स्वतंत्र देव सिंह के लिए प्राथमिकता में होने की एक और वजह है वह है कि यह विधानसभा जालौन लोकसभा क्षेत्र में आता है। इस क्षेत्र के लोगों से सिंह का सीधा संपर्क भी है। वहीं वर्तमान विधायक राजपूत केा दूसरी सीट पर शिफ्ट किया जाना भी आसान है। इसके साथ ही वर्ष 1957 के बाद हुए विधानसभा के चुनाव में एक-दो मर्तबा को छोड़कर ज्यादातर मौकों पर पिछड़े वर्ग के उम्मीदवार ही इस इलाके से जीते हैं।