चल रहा है वर्क विद तर्क ताकि रिजर्व वाले चेहरों का कमजोर हो मनोबल
वरिष्ठ संवाददाता (करंट क्राइम)
गाजियाबाद। राजनीति केवल समीकरण और सम्भावनाओं का नाम नहीं है। राजनीति एक तरह से मार्इंड गेम भी है और यहां पर माहौल केवल राजनीतिक गतिविधियों से नहीं बल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से भी बनाया जाता है। चुनावी परिपेक्ष में देखें तो आगामी चुनाव नगरनिगम का है। आगामी चुनाव मेयर सीट का है और नगरपालिका व नगरपंचायत का होना है। भगवागढ़ में मेयर सीट को लेकर अभी से दावेदारी का दंगल चल रहा है और अभी आरक्षण को लेकर शासन की ओर से कोई फैसला नहीं आया है लेकिन सूत्र बताते हैं कि भाजपा में एक लॉबी बड़े ही सधे हुए तरीके से आरक्षण को लेकर मार्इंड गेम चल रही है। इस लॉबी ने रणनीति के तहत ये संदेश देना शुरू कर दिया है कि सीट सामान्य ही रहेगी और इस बार सीट जनरल मेल रहेगी। जनरल मेल का ये खेल ही मेयर चुनाव के दूसरे दावेदारों के मनोबल को प्रभावित कर रहा है। सूत्र बताते हैं कि सधी हुई रणनीति के तहत इस संदेश को मेयर टिकट के ओबीसी और दलित दावेदारों तक मनोवैज्ञानिक रूप से पहुंचाया जा रहा है। सीट सामान्य रहेगी इसके लिए जगह जगह खास तौर से ओबीसी वर्ग में तर्क करो और तर्क पर वर्क करो। ऐसा होने से ओबीसी और दलित वर्ग के दावेदारों के होंसले पस्त रहेंगे। ये रणनीति है कि जब ये बात मन मस्तिष्क में घर कर जायेगी तो फिर दावेदार ईधर उधर जायेंगे ही नहीं और यही वो लॉबी चाहती है कि ये नेता भागदौड़ ना करें।
सीट जनरल रहे या रिजर्व यहां जीत तो भाजपा ही करती है डिजर्व
मेयर सीट को लेकर सबसे रोचक पहलू ये है कि यहां पर दावेदारी में एक दूसरे की टांग खींचने का सीन भी भाजपा में ही चल रहा है। भाजपा के पुराने खिलाड़ी जानते हैं कि इस मैच में टॉस ही सबकुछ है। जो टॉस जीत गया वो मैच जीत जाता है। पिच उसे सपोर्ट करती है, यानी लड़ाई केवल टिकट की है और जिसे भाजपा से टिकट मिल गया वो मेयर बन जाता है। इतिहास इसकी गवाही भी देता है। स्वर्गीय दिनेश चंद गर्ग दो बार भाजपा के टिकट पर ही मेयर बने। सीट जब महिला सामान्य आरक्षित हुई तो यहां राजनीति के मैदान में बिल्कुल नई खिलाड़ी के रूप में दमयंती गोयल को भाजपा मैदान में लाई और जीत हासिल हुई। मेयर सीट ओबीसी पुरूष आरक्षित हुई तो भाजपा अपने लाईफ टाईम कार्यकर्ता और पत्रकार तेलूराम काम्बोज को मैदान में लाई। तेलूराम काम्बोज कोई चुनाव इससे पहले नहीं लड़े थे और आधीरात को भाजपा उन्हें सपा सरकार में जिताकर लाई। उपचुनाव हुआ तो अशु वर्मा बेहद कम मतदान में बड़े वोटों के अंतराल से जीते। सीट महिला आरक्षित हुई तो आशा शर्मा जीतीं। यहां पर कहने का अर्थ ये है कि भाजपा के लिए सीट जनरल या रिजर्व होने का कोई फर्क नहीं पड़ता है। सीट जनरल रहे या रिजर्व रहे आंकड़े बता रहे हैं कि जीत तो भाजपा ही डिजर्व करती है।
जब नो आरक्षण का जायेगा मैसेज तो अपने आप हो जायेगा डैमेज
(करंट क्राइम)। सीट आरक्षित होगी तो चक्रानुक्रम में होगी । सीट रिजर्व रहेगी या जनरल रहेगी ये फैसला अभी आना है। लेकिन मेयर चुनाव की हर एंगल से केयर कर रही भाजपा की टोली जानती है कि उसे केवल मार्इंड गेम पर काम करना है। वो जानते हैं कि जब नो आरक्षण का मैसेज जायेगा तो डैमेज अपने आप हो जायेगा। क्योंकि जब आरक्षित वर्ग के चेहरों को ये यकीन दिला दिया जायेगा कि आरक्षण नहीं होगा तो वो फिर किसी भी दरवाजे पर अपनी बात रखने नहीं जायेंगे। ओबीसी वर्ग के गिनती के चेहरों को छोड़कर अन्य चेहरों को ये यकीन दिला दिया जायेगा कि वो बिना मतलब की भागदौड़ ना करें, ईधर उधर ना जायें।
इस तरह से मचेगा शोर, ओबीसी चेहरे होंगे इगनोर
(करंट क्राइम)। मेयर चुनाव में अब ज्यादा समय नहीं है और राजनीति के जानकार यहां जनरल बनाम ओबीसी को लेकर चल रहे गेम को समझ रहे हैं। जो ओबीसी चेहरे दावेदार हो सकते हैं उनके लिए ये माहौल अंदरखाने बना दिया गया है कि मेयर चुनाव छोड़ो और संगठन में ही अपनी हालत देख लो। बस पदों का एडजस्टमेंट है और ऐसे में मेयर का टिकट मिलेगा इसे लेकर हमें तो शक है।
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