रावण राज की मुनादी के साथ शुरू होती है 125 वर्ष से ये रामलीला। दिल्ली से सटा गाजियाबाद का इलाका है। यहां एक ऐसी रामलीला है जो अपने आप में एक अनूठा इतिहास समेटे हुए है। ये यूपी की और संभवत देश की पहली रामलीला है जो रावण राज की मुनादी के साथ शुरू होती है। रावण का दूत डोले में सवार होकर बाजारों में निकलता है। वो ढोल बजा कर एलान करता है मुनादी करता है कि अब नगर में रावण राज हो गया है कोई भी राम का नाम नहीं लेगा। यदि कोई ऐसा करेगा तो उसे दंडित किया जाएगा। मुनादी वाली ये रामलीला गाजियाबाद की श्री सुल्ला मल रामलीला है। जिसे आम जनता घंटाघर रामलीला मैदान से जानती है। इस मैदान का इतिहास भी रोचक है। रामलीला के लिए यह मैदान एक मुसलमान ने दान दिया था। गाजियाबाद के नवाब परिवार ने इस मैदान को रामलीला के लिए दान दिया। बताया ये भी जाता है कि इस मैदान में दो प्रवेश द्वार बनाए गए थे। एक द्वार मुस्लिमो के लिए और एक द्वार हिंदुओं के लिए था।
ये यूपी की पहली ऐसी रामलीला कमेटी है जिसके पास अपना खुद का मैदान है। राम की इस लीला की सबसे अदभुत लीला ये है कि इस रामलीला कमेटी में उस्ताद और खलीफा प्रमुख होते है। खलीफा मिलकर उस्ताद को चुनते हैं। मौजूदा समय में उस्ताद अशोक गोयल है। सुल्ला मल रामलीला मैदान की सबसे बड़ी खूबी इस रामलीला का मंच है। इस मंच का निर्माण इस तरीके से किया गया है कि मैदान के किसी भी कोने में आप खड़े हो जाएं तो आपको मंचन दिखाई देगा। यहां की रामलीला का मुख्य आकर्षण यहां निकलने वाली राम बारात है। इस बारात में 100 से भी अधिक बैंड बाजे, ढोल नगाड़े वाले शामिल होते हैं। बुलंदशहर मुरादाबाद से लेकर आगरा मथुरा से बैंड पार्टी आती है। बाजारों में दुकानदार राम बारात का स्वागत करते हैं और पूरी रात पुराना शहर इस बारात के जश्न में डूब जाता है। केवल राम बारात ही नहीं इस रामलीला की खूबियों में राम विवाह के बाद मां सीता जी की विदाई भी है। विदाई यात्रा बाजारों से निकलती है और महिलाएं पुरुषों की आस्था श्रद्धा भक्ति भाव दिखाई देता है। मां सीता को उपहार स्वरूप भक्त वस्त्र आभूषण आदि देते हैं। अपने आप में एक युग एक इतिहास समेटे यह रामलीला पुरातन मंचन से लेकर आज आधुनिक थियेटर के दौर मे आ गई है। रामलीला कमेटी के अध्यक्ष 75 वर्षीय वीरो बाबा है। कमेटी का सदस्य होना ही अपने आप में सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है।
125 वर्ष पुरानी रामलीला की शुरुआत पुराने शहर के चौपला इलाके से हुई थी। रामलीला के संस्थापक श्री सुल्ला मल के वंशज आज भी मौजूद है। कमेटी के पूर्व महामंत्री वीनू बाबा इसी परिवार से हैं। मयंक गर्ग सुल्लामल वाले इसी परिवार से हैं। दोनो की दिल्ली गेट इलाके में कार्डस गैलरी की दुकान है। 125 साल पुरानी रामलीला अपने आप में यादें ताजा कराती है। जब आप इस कमेटी के मैदान में बने दफ्तर में प्रवेश करते हैं तो यहां हॉल में कमेटी के पूर्व उस्ताद खलीफा और प्रधान के फोटो लगे हैं। ये पहली ऐसी रामलीला है जिसके पास सवारी निकालने के लिए अपने खुद के रथ है। रामलीला कमेटी केवल रामलीला तक ही सीमित नहीं हैं यह कमेटी समाज कल्याण समाज सेवा के मार्ग पर चलती है। कमेटी के पास खुद के शव वाहन है। किसी के निधन होने पर शव को शमशान घाट तक ले जाने के लिए कमेटी वाहन निशुल्क उपलब्ध कराती हैं। मैदान में ही 4 हॉल का निर्माण किया गया है। ये हॉल श्री राम भवन जानकी भवन के नाम से है। विवाह शादी से लेकर शोक सभा के लिए यह आम जनता को रियायती दर पर उपलब्ध कराए जाते हैं। इस रामलीला कमेटी का चुनाव बड़ा ही रोचक होता है। बड़े बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति इसके वोटर सदस्य हैं और बड़े उद्योग जगत के लोग इसका पदाधिकारी होने के लिए चुनाव लड़ते हैं। अन्य रामलीला में फंड की कमी होती होगी लेकिन यहां धन कोई मुद्दा नहीं है। एक बार तो रामलीला कमेटी ने बैंक को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि कमेटी के खाते में रुपए ना जमा किए जाएं। बताते हैं कि उस समय रामलीला कमेटी के बैंक खाते में 10 लाख रुपए कोई जमा कर गया था। बताया ये भी जाता है कि ये रकम नए सदस्यों के फार्म शुल्क की थी। इसके अलावा यहां निकलने वाली राम बारात का बजट ही एक करोड़ के लगभग होता है।
-story by Subhash