फैशन के बदलते स्वरूप के अनुसार परिधानों का स्वरूप बदलता है, यहाँ तक की चश्में, जूते, गहने, सौंदर्य प्रसाधनों में तक इसके बदलते स्वरूप को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। किसी समय में परिधान और अन्य वस्तुएँ मात्र शरीर को ढकने या सजाने का कार्य करती थी।उनकी आवश्यकता समय के अनुसार थी। विवाह, त्योहार आदि अवसरों पर लोग स्वयं को थोड़ा सा विशेष बनाने का प्रयास करते थे। परन्तु आज के दौर में लोग आम जीवन में भी स्वयं को अलग दिखाना चाहते हैं। वे स्वयं को फैशनेबल दिखाना चाहते हैं। परिधानों, जूतों तथा अन्य सामग्री को खरीदने के लिए उन्हें पैसा खर्च भी करना पड़े, तो वह घबराते नहीं है। फैशन ने लोगों के जीवन में अद्भुत परिवर्तन किया है।
फैशन मेकअप और कपड़ों की खासियत है। खुद को समाज के सामने प्रदर्शित करना फैशन है। फैशन कपड़े बदलने का आनंद है।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है, सृष्टि की सुंदरता इसी में है। बदलाव फैशन का स्वभाव है. इटालियन कवि दाउते का मत है, ”मनुष्य के रीति-रिवाज और फैशन पेड़ की शाखाओं के पत्तों की तरह बदलते रहते हैं। कुछ जाते हैं और दूसरे आते हैं।” ऑस्कर वाइल्ड इस बदलाव में मजबूरी देखते हैं। वह कहते हैं, “फैशन कुरूपता का एक रूप है, जो इतना लाइलाज है कि हमें इसे छह महीने में बदलना पड़ता है।”
आकर्षक दिखना मानव स्वभाव है
महत्वपूर्ण बनने और आकर्षक दिखने की चाहत मानव स्वभाव है। इसके लिए दूसरों से अलग दिखना जरूरी है। आप दूसरों से अलग कपड़े पहनेंगे, आपका खान-पान भी दूसरों से अलग होगा। आपके घर की सजावट दूसरों से अलग होगी, तभी आप समाज में अपनी खास जगह बना पाएंगे और आपकी गतिविधियां लोगों के आकर्षण का केंद्र बनेंगी। यही चाहत फैशन का मार्ग प्रशस्त करती है। जब किसी फैशन स्टाइल को आम जनता अपना लेती है तो नए स्टाइल की तलाश होती है। इसके साथ ही फैशन में बदलाव का सिलसिला शुरू हो जाता है जो लगातार जारी रहता है। इसीलिए सोनाली बेंद्रे का मानना है कि ‘आजकल फैशन दशकों में नहीं बल्कि महीनों में बदल रहा है।’
फैशन केवल कपड़ों तक ही सीमित नहीं है, यह जीवनशैली, व्यवहार, भाषण, सार्वजनिक व्यवहार, मेकअप, फिनिशिंग आदि तक फैला हुआ है। देवानंद की उच्चारण शैली, दिलीप कुमार की हेयर स्टाइल और राज कपूर की ‘शो मैन शिप’ फैशन के अलावा और कुछ नहीं हैं। ‘अनुसरण’ (अनुकरण) का सिद्धांत इसके विकास का आधार है और ‘प्रतिस्पर्धा’ इसका मूल मंत्र है।
आधुनिक युग में जीवन के प्रति सोच में बदलाव
आधुनिक युग में जीवन की हर सोच तेजी से बदल रही है। जो आज सुंदर है वह कल कुरूप हो जाता है। सादा जीवन और उच्च विचार वाले लोग अब चकाचौंध भरी जिंदगी में भी ऊंची जिंदगी देखते हैं। फिर सादगी के रूप में साफ-सुथरा और सभ्य दिखने की कोशिश भी एक तरह का फैशन है।
एक समय था जब शांतिपूर्ण जीवन जीना फैशन था। आजकल तेज़ संगीत सुनना, मोटरसाइकिल या कार पर तेज़ चलना, रीबॉक जूते, बरमूडा, शॉर्ट्स, चड्डी पहनना, रंग-बिरंगे टैटू बनवाना आज के युवाओं का फैशन है। औपचारिकता उसे काटती है और रूढ़ियों का पालन उसे कष्ट पहुँचाता है। उसे खुली, सहज अनौपचारिकता की जरूरत है। उनकी इसी रुचि ने फैशन को ‘कैज़ुअल लुक’ दिया।
फैशन समाज की सोच और बदलाव का नाम
फैशन समाज के बदलाव और सोच का नाम है। पहले महिलाएं साड़ी पहनती थीं, जिसमें छाती के नीचे नग्नता एक फैशन था। फिर आया सलवार कुर्ता, जो पूरे शरीर को इस तरह ढकता है कि शरीर पर एक भी बाल नजर नहीं आता। समाज की सोच बदली, अब छाती के निचले हिस्से के साथ-साथ कमर और हाथों के कुछ हिस्से की नग्नता फैशन बन गई। अब महिलाएं दूसरों से अलग दिखने की चाह में कुछ ‘निश्चित आइडिया’ लेकर ड्रेस डिजाइनरों के पास जाती हैं।
जहां लड़की आंखें झुकाकर और सिर ढंककर शालीनता से चलती थी, वहीं आज वह ब्लाउज, जींस या स्कर्ट पहने, मेकअप किए, फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती, सिगरेट का कश लेती और अपने प्रेमी को चूमती नजर आती है।
फैशन डिजाइनर पियरे कार्डिन फैशन को कल्पना और व्यावसायिकता का संयोजन मानते हैं। उनके मुताबिक- फैशन आज की जरूरत है। यदि हम आज फैशन को अस्वीकार करते हैं, तो हम मानव विकास की संपूर्ण प्रक्रिया को भी अस्वीकार करते हैं। वह जमाना गया जब घर के सभी सदस्यों के कपड़े एक ही जगह से सिले जाते थे। आज हर व्यक्ति, चाहे वह पुरुष हो या महिला, बूढ़ा हो या जवान, वयस्क हो या बच्चा, अपने पहनावे को लेकर सचेत है। इसी मानसिकता के कारण आजकल बच्चों के लिए किड्स कैंप खुल गए हैं। किशोरों के लिए टीन एज शो रूम हैं। पुरुषों और महिलाओं के कपड़ों के शो रूम किसी म्यूजियम से कम नहीं लगते।
हर व्यक्ति बदलते फैशन की ओर आकर्षित हो रहा है और किसी न किसी रूप में इसे पहनने के लिए उत्सुक है। फैशन में तेजी से बदलाव का श्रेय मंच कलाकारों, नर्तकों, गायकों, फैशन मॉडलों, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी और निजी विशेषज्ञों को जाता है। समाज में जो नया फैशन ‘प्रवर्तित’ होता है, वह फिल्मों के माध्यम से उन लोगों तक पहुंचता है जो उसके नये स्पर्श से अछूते हैं। फैशन शो का आयोजन और उसके कार्यक्रमों को दूरदर्शन पर प्रसारित करना सबसे तेज़ माध्यम है। व्यक्तित्व को नये रूप और नये ढंग से प्रस्तुत करना मनुष्य की शाश्वत अभिलाषा है। दूसरों को प्रभावित और सम्मोहित करना उसकी चाहत होती है। स्मार्ट और जीवंत दिखना उनकी शाश्वत इच्छा है। बदलाव के बिना ये संभव नहीं है. क्योंकि, सिर्फ ‘लुक’ के लिए नकल करने से आकर्षण खत्म हो जाता है। थोरो (वाल्डेन) के शब्दों में हर पीढ़ी पुराने फैशन पर हंसती है। इसलिए नई कल्पनाओं, नए विचारों ने व्यक्तित्व को और अधिक आकर्षक बना दिया, यह फैशन बन गया और परिवर्तन ही फैशन की नियति बन गया।