गाजियाबाद, करंट क्राइम। वैज्ञानिकों का मत है कि शरीर के अंदर बहुत सारी बीमारियों से लड़ने की क्षमता के कीटाणु मौजूद हैं। अगर बीमारी भयंकर नहीं है तो बहुत सारी बीमारियों से मुक्ति शरीर की स्वयं की व्यवस्था से ठीक हो जाती हैं। इसलिए लोग प्रतिरोधक क्षमताओं को विकसित करने पर बल देते हैं। मैं इसे केवल मानव शरीर विज्ञान की रचना के रूप में नहीं देखता बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी देखता हूँ। सबसे अधिक राजनीति में भी देखता हूँ।
चुनावों के समय राजनैतिक दलों को चुनौतियां केवल विपक्ष से नहीं मिलती बल्कि अपने अंदर से भी खड़ी होती हैं। और उनका सबसे बेहतर इलाज अंदर से ही सम्भव है। आजकल भाजपा से ठाकुरों की नाराजगी का प्रचार प्रसार बड़े जोर शौर से किया जा रहा है। विपक्षी दल इसे खूब हवा दे रहे हैं। इसमें सच्चाई कितनी है ,इसका पता तो चुनाव परिणामों के बाद चलेगा लेकिन अभी तो उम्मीदवारों को डराने के लिए काफी है। भाजपा ने इसके निराकरण के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी की तीन सभाएं कराई हैं। एक कहावत है कि जहां चम्मच से काम चल जाय , वहां चाकू का प्रयोग न करें। लेकिन भाजपा ने तो तोप ही चला दी। अब तो सम्भवत: बहुत सारी भ्रांतियां समाप्त हो गई होंगी। और समाज का मत बड़ी संख्या में भाजपा को मिलेगा ही।
वैसे गाजियाबाद के भाजपा प्रत्याशी अतुल गर्ग ने पूर्व सांसद रमेशचन्द्र तोमर से क्षत्रिय समाज में फैली इस भ्रांति का निराकरण करने के लिए कमान संभालने का अनुरोध किया। तोमर साहब ने भी इसको स्वीकार कर इस पर कार्य प्रारम्भ कर दिया है। मैं तोमर साहब को इसके लिए साधुवाद देता हूँ। वैसे भाजपा संगठन ने क्षत्रिय समाज के कई लोगों को संगठन में महत्वपूर्ण सम्मान दिया है। उनकी संगठन के बहुत सारे महत्वपूर्ण फैसलों में निर्णायक भूमिका है। वे संगठन के कर्ताधर्ता माने जाते हैं। मंचों पर लगने वाले बैनरों में भी उनके बड़े बड़े फोटो शोभा बढ़ाते हैं। उन्हें देश के प्रधानमंत्री जी और मुख्यमंत्री जी के साथ मंच साझा करने के सम्मान मिलते हैं । फिर वे क्यों नहीं आगे बढ़कर इन चचार्ओं को विराम लगाने के लिए अग्रसर होते ? क्यों भाजपा संगठन इन लोगों को ये जिम्मेदारी नहीं सौंपती कि वे अपने समाज में भाजपा के बारे में फैलाई गई भाँतियों का निराकरण करें? अगर उनमें इतनी क्षमता नहीं है तो फिर इतना बड़ा सम्मान क्यों और क्षमता है तो उसका उपयोग क्यों नहीं किया जा रहा है?