वर्ष 2023 के नौ महीने के दौरान हाइटेक सिटी नोएडा और ग्रेटर नोएडा में औसतन हर चौथे दिन एक अज्ञात शव मिला है। इस दौरान पूरे उत्तर प्रदेश में कुल 173 अज्ञात शव मिले हैं। इसका मतलब है कि नौ महीने के दौरान प्रदेश में मिले गए कुल अज्ञात शवों में से 40% शव जनपद गौतमबुद्धनगर में मिले हैं। इस मामले में गौतमबुद्धनगर ने प्रदेश के सभी जनपदों को पीछे छोड़ दिया है, और इन अज्ञात शवों में अधिकांश पुरुष हैं।
वर्ष 2023 के जनवरी से सितंबर के बीच, पूरे उत्तर प्रदेश में कुल 173 अज्ञात शव मिले हैं। इनमें सबसे अधिक 71 शव गौतमबुद्धनगर जनपद में मिले हैं, जिनकी शिनाख्त अब तक स्पष्ट नहीं हो पाई है। शहर के विभिन्न स्थानों में, जैसे कि नालों, सड़कों, और ग्रीन बेल्ट में, औसतन चार दिनों में एक अज्ञात शव मिल रहा है। इनमें से अधिकांश शवों की पहचान अब तक नहीं हुई है। इन घटनाओं के परिणामस्वरूप, लोगों में डर का माहौल बन रहा है, हांफकि पुलिस के पास इसके लिए कोई ठोस योजना नहीं है।
इस वर्ष के आंकड़ों के अनुसार, कोतवाली फेज वन, सूरजपुर, बादलपुर, और दादरी क्षेत्रों में अधिकांश अज्ञात शव मिले हैं। इसके साथ ही, पुलिस द्वारा अपनाई जाने वाली पहचान प्रक्रिया पर भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, क्योंकि इसकी कमजोरी के कारण अज्ञात शवों की पहचान कई बार संभावना से भी बाहर हो जाती है।
अज्ञात शवों को मिलने के बाद पहले पुलिस कोई भी आवश्यक पहचान साधने की कोशिश करती है, जैसे कि शरीर पर गुदा हुआ नाम और शव मिलने के स्थान के आसपास के लोगों से पूछताछ करके। अगर 72 घंटे में शव की पहचान नहीं होती है, तो शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया जाता है। इसके बाद, पुलिस विभाग द्वारा अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित किया जाता है, ताकि शव की पहचान के लिए आवश्यक जानकारी प्राप्त की जा सके।
अज्ञात शवों की विसर्ग रिपोर्ट पर ध्यान नहीं दिया जाता है
अज्ञात शवों के मामले में पुलिस की लापरवाही एक चिंता का विषय है। इन मामलों में से ज्यादातर मौत के वास्तविक कारण की जांच करने का प्रयास नहीं करती है। यही कारण है कि पुलिस आमतौर पर अज्ञात शवों की विसरा रिपोर्ट प्राप्त करने पर ध्यान नहीं देती है। पुलिस अक्सर पोस्टमार्टम के दौरान डॉक्टर की बताई गई मौत की प्राथमिक कारण को ही सही मानती है और फिर बाद में न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करती है।
इस प्रकार की प्रथा मौत के अज्ञात कारणों की सही पहचान और उनके परिणामस्वरूप सुरक्षा के लिए एक स्वास्थ्यपूर्ण तरीके से काम नहीं कर सकती है। पुलिस और संबंधित अधिकारिकों को चाहिए कि वे इस प्रक्रिया को सुधारने और मौत के अज्ञात कारणों की पहचान के लिए सशक्तिकरण करें ताकि इसके परिणामस्वरूप सुरक्षा को और भी मजबूत बनाया जा सके।
75% अज्ञात शव 40 वर्ष से अधिक की आयु वालों के हैं
जनवरी से सितंबर तक, जिन अज्ञात शवों का पता नहीं चला, 75% शवों की आयु 40 वर्ष से अधिक है। इन अज्ञात शवों में करीब आधे, यानी 50%, वर्ग 55 वर्ष से अधिक की हैं। इसके अलावा, पिछले वर्ष के आंकड़ों में भी इसी प्रकार का आयु वर्ग प्रकट होता था।
पुलिस द्वारा दिए गए कफनों को श्मशान और कब्रिस्तान पहुंचाया जाता है
71 लोगों को जीते जी अपनों का सहारा मिला हो या नहीं, लेकिन मरने के बाद उनका कंधा नहीं मिला। इन्हें पुलिस का कफन दिया गया। पुलिस का दावा है कि अधिकतर अज्ञात शव भिखारी थे। शवों की पहचान के लिए पुलिस के पास 72 घंटे का समय होता है, जिस दौरान पुलिस मृतक की फोटो और पहचान के चिन्हों को मीडिया के माध्यम से प्रकाशित करती है। इसके अलावा, पुलिस पर्चे छपकर विभिन्न स्थानों पर लगाती है, ताकि शवों की पहचान के लिए जानकारी प्राप्त की जा सके
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