हादसे के बाद भी जारी है लापरवाहियों का सिलसिला, साहिबाबाद से लेकर गाजियाबाद तक नहीं हैं सुरक्षा के इंतजाम
गाजियाबाद (करंट क्राइम)। गाजियाबाद पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार बीते लगभग 12 महीने के दौरान 78 लोगों ने अलग-अलग ट्रेन दुर्घटनाओं, ट्रैक पार करने और फोन पर लीड लगाकर चलने से लेकर रील बनाने के चक्कर में जान गवाई है। इसके बावजूद भी लोग सबक लेने को तैयार नहीं हंै। बुधवार की रात मसूरी थानाक्षेत्र में पद्मावत एक्सप्रेस की चपेट में आने से तीन लोगों की दर्दनाक मौत के बाद भी गाजियाबाद रेलवे स्टेशन, साहिबाबाद रेलवे स्टेशन व नए गाजियाबाद रेलवे स्टेशन के रेलवे ट्रैक पर कोई बदलाव देखने को नहीं मिला। लापरवाह लोग फोन पर बातचीत करते हुए ना सिर्फ रेलवे ट्रैक पार करते हैं बल्कि ईयर फोन और हेडफोन का इस्तेमाल भी जारी रहता है। हादसों के बाद जीआरपी और सिविल पुलिस कुछ देर के लिए एक्शन मोड में आती है लेकिन लापरवाह लोगों के आगे पुलिस की संख्या सीमित रह जाती है। दैनिक करंट क्राइम ने गुरुवार को प्रमुख स्थानों का रियलिटी चेक किया, जहां की तस्वीरें बेहद चौंकाने वाली हैं। रेलवे ट्रैक से लेकर रेलवे फाटकों और रेलवे लाइन पर लोग अपनी ही धुन में नजर आते हैं। ना तो उनको जान की कोई परवाह नजर आती है और ना ही जीवन की कीमत। कैमरे में ऐसी तस्वीरें भी कैद हुई जो लोगों की लापरवाही को दर्शा रही हैं।
रेलवे कर्मचारी भी करते हैं नियमों का अनदेखा
रेलवे ट्रैक और रेलवे लाइन के आसपास नियमों को तोड़ने के मामले में लापरवाह जनता तो नियम तोड़ती है। इस दौरान रेलवे का काम करने वाले कर्मचारियों और अन्य लोग ऐसा जोखिम भरा काम करते हैं, जो जानलेवा साबित हो सकता है। रेलवे के ड्राइवर होर्न बजाते रहते हैं
लेकिन काम में लगे लोग सुनते नहीं हैं और कई बार हादसे की वजह भी बन जाते हैं।
ट्रैक को समझते हैं सैरगाह
(करंट क्राइम)। बात चाहे गाजियाबाद की हो या साहिबाबाद रेलवे स्टेशन की, लापरवाह लोगों की कमी दोनों ही जगह रही है। कुछ लोग तो अपने जीवन को ना महत्वपूर्ण मानते हैं बल्कि वह जानबूझकर रेलवे ट्रैक पर सफर करते हैं। रेलवे ट्रैक को वह सैरगाह मानकर उस पर लंबी दूरी भी तय करने से घबराते नहीं हैं। ऐसे ही लापरवाह लोगों की तस्वीरों को करंट क्राइम की टीम ने गुरुवार को अपने कैमरे में कैद करने का काम किया। पुराने गाजियाबाद रेलवे स्टेशन, नए गाजियाबाद रेलवे स्टेशन और साहिबाबाद तीनों ही जगह तस्वीरें एक जैसी थीं, बस लोगों की संख्या बदल रही थी।
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