लेकिन नहीं निकला बिजली के बिल और कार्यालय सहायक की तनख्वाह का उपचार
वरिष्ठ संवाददाता (करंट क्राइम)
गाजियाबाद। चुनावों से पहले जब ये शोर था कि आ रहे हैं अखिलेश तो साइकिल सवारों ने भी रफ्तार पकड़ ली थी। लेकिन चुनावों के बाद जब सरकार की बजाए हिस्से में हार आई तो फिर समाजवादी दफ्तर से बहार ही गायब हो गई। आरडीसी वाले समाजवादी दफ्तर के बाहर ही बाहर से उसके लीडर गुजरने लगे। कचहरी जाने का रास्ता यही है तो निकलेंगे इधर से लेकिन वास्ता दफ्तर से नहीं रखेंगे। कई जयंती, कई बर्थडे ऐसे निकले जब संगठन के अध्यक्ष भी नहीं पहुंचे। लेकिन सोमवार को समाजवादी दफ्तर का नजारा कुछ अलग था। यहां पर बहुत दिनों के बाद पूर्व एमएलसी से लेकर पूर्व अध्यक्ष तक मौजूद थे। पूर्व विधान परिषद सदस्य राकेश यादव, पूर्व अध्यक्ष धर्मवीर डबास, पूर्व अध्यक्ष जेपी कश्यप, पूर्व अध्यक्ष संजय यादव, सपा नेता ताहिर हुसैन, मनोज पंडित, आनंद चौधरी, नरेश बत्रा सहित अन्य नेता भी थे।
आखिर पूर्व एमएलसी और पूर्व अध्यक्ष सपा कार्यालय पर क्यों आए थे, ये वजह जब जानी गई तो पता चला कि दफ्तर का बिजली का बिल तीन महीने से नहीं गया है और कार्यालय सहायक को दो महीने से वेतन नहीं मिला है। मामला पूर्व एमएलसी राकेश यादव के पास पहुंचा था तो उन्हें सुनकर अजीब लगा। उन्होंने पुराने समाजवादियों को कॉल की। सूत्र बताते हैं कि यहां इस समस्या को लेकर पुराने अध्यक्ष बैठे तो सही लेकिन कोई हल नहीं निकला। सूत्र बताते हैं कि पहले सत्ता न होने की बात कही गई, फिर बिल से लेकर वेतन का मुद्दा आया। बताने वालों ने यहां तक बताया कि पानी की भी व्यवस्था नहीं है। लेकिन कौन जिम्मेदारी लेगा इस बात पर चुप्पी छा गई। चर्चा यही हुई कि जब हमें संगठन स्तर पर कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई है तो हम जिम्मेदारी क्यों ले और जिन्हें जिम्मेदारी दी गई है वो इस जिम्मेदारी से क्यों बच रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि कोई उपचार नहीं निकला है और अब तीन-चार दिन के बाद फिर से मीटिंग रखी जाएगी। लेकिन उपचार निकलेगा इसकी संभावना कम है।
राहुल-राशिद खुद नहीं आए या वो मीटिंग में नहीं गए बुलाए
(करंट क्राइम)। सरकार थी तो राकेश यादव एमएलसी थे और उनके एक फोन पर न जाने कौन-कौन सपा कार्यालय पहुंचते थे। लेकिन जब पार्टी के दफ्तर के बिजली बिल और कार्यालय सहायक राहुल रावत की सैलरी का मामला आया तो यहां महानगर अध्यक्ष राहुल चौधरी और जिलाध्यक्ष राशिद मलिक नहीं दिखाई दिए। संगठन भंग कर दिया गया है तो वो निवर्तमान है लेकिन जब पूर्व अध्यक्ष आ सकते हैं तो निवर्तमान भी आ सकते हैं। सवाल यही उठा कि दोनों अध्यक्ष खुद नहीं आए या वो बुलाए नहीं गए। हालांकि दोनों अध्यक्षों की मौजूदगी तो तब भी नहीं हुई थी जब पार्टी कार्यालय में पार्टी के राष्टÑीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का बर्थडे केक काटा गया था। कई महापुरूष की जयंती भी अध्यक्षों की अनुपस्थिति में मनाई गई है। अब अध्यक्ष नहीं पहुंचे तो सवाल उठना लाजिमी था।