भगवद् गीता के अध्याय 21 में जीवन की उच्चतम सिद्धि की चर्चा है। इस अध्याय में भगवान कृष्ण अर्जुन को उनके आश्चर्यजनक साधनों और ज्ञान के बारे में बताते हैं, जो एक विवेकी और अध्यात्मिक व्यक्ति के लिए उपलब्ध होते हैं। इस अध्याय में वर्णित किए गए कुछ मुख्य विषयों में जीवन का समर्थन और जीवन के उद्देश्य की चर्चा की गई है। यहां कुछ मुख्य बिंदुओं का संक्षेपित सार है:
- समर्थन की प्राप्ति: भगवान कृष्ण बताते हैं कि एक व्यक्ति जीवन की सभी यात्राओं में उसे सहायता प्राप्त होती है जब वह भगवान की भक्ति में लगा रहता है।
- भगवान की प्राप्ति: अध्याय में भगवान की प्राप्ति के विभिन्न मार्गों का वर्णन किया गया है, जैसे कि भक्ति, ज्ञान, और कर्म।
- जीवन का उद्देश्य: इस अध्याय में वर्णित किया गया है कि एक व्यक्ति का असली उद्देश्य क्या होना चाहिए, और वह भगवान की भक्ति के माध्यम से कैसे प्राप्त किया जा सकता है।
यह अध्याय ज्ञान, ध्यान, और भक्ति के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति के महत्व को स्पष्ट करता है, जो एक व्यक्ति को सच्चे और आनंदमय जीवन की ओर ले जाता है।
भगवद् गीता के अध्याय 21 में भगवान कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं। यह अध्याय त्रिभागी विभाजित है:
- श्लोक 1-11: श्रद्धा त्रयोदश अध्याय – इस अध्याय के प्रारंभ में भगवान कृष्ण श्रद्धा के तीन प्रकार के विषय में बताते हैं: सात्त्विक, राजसिक, और तामसिक।
- श्लोक 12-30: प्राणविद्या – इस भाग में भगवान कृष्ण जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार प्राणविद्या की गुणवत्ता का वर्णन करते हैं।
- श्लोक 31-34: भगवती प्राप्ति का मार्ग – इस भाग में भगवान कृष्ण भक्ति मार्ग को श्रेष्ठ बताते हैं और उसके पालन से उत्तम परिणाम प्राप्त होता है।
अध्याय 21 में भगवान कृष्ण अर्जुन को उपदेश देकर उसे योग के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं और उसे जीवन के अध्यात्मिक तथा शारीरिक क्षेत्र में उच्चतम प्रगति की ओर उत्तेजित करते हैं।