पिता की इच्छा का सम्माान करना और परम्पराओं को निभाना नही है बुरी बात
वरिष्ठ संवाददाता (करंट क्राइम)
गाजियाबाद। भाजपा से बागी होकर बसपा के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले केके शुक्ला भले ही भाजपा में ना हों लेकिन वो संघ की विचार धारा के संग हैं। बताते हैं कि हाल ही में वो मंत्री दयाशंकर सिंह के यहां उनके पिता के निधन पर शोक व्यक्त करने पहुंचे थे। सोशल सर्किल आज भी भाजपाई है। केके शुक्ला तब चर्चा में आये जब उनके स्कूल में गुरू दक्षिणा कार्यक्रम आयोजित हुआ। भाजपा से जुड़ा हर बच्चा भी बता देगा कि गुरू दक्षिणा का अर्थ भाजपा में क्या होता है।
गुरू दक्षिणा कार्यक्रम पूरी तरह से संघ का कार्यक्रम होता है। अब जब के के शुक्ला के स्कूल में गुरू दक्षिणा का कार्यक्रम हुआ तो भाजपाई गलियारों में तेजी से ये चर्चा फैली कि केके शुक्ला भाजपाई हो गये हैं। सवाल उठने लाजमी थे और लोग जानना भी चाहते थे। दैनिक करंट क्राईम ने जब केके शुक्ला से ही पूछा कि क्या कोई गुरू दक्षिणा का कार्यक्रम आयोजित हुआ है और क्या आपने भी गुरू दक्षिणा दी है तो इस सवाल के जवाब में के के शुक्ला ने कहा कि परम्पराओं का पालन किया जाता है उन्हें कभी तोड़ा नहीं जाता। मेरे पिताजी ने मुझसे स्पष्ट कर दिया था कि गुरू दक्षिणा कार्यक्रम होना चाहिए। अब पिताजी की इच्छा का सम्मान भला कौन पुत्र नहीं करता। परम्पराओं का पालन होना ही चाहिए । जो परम्परा चल रही है उसे तोड़ा नहीं जाना चाहिए। जितने भी लोग हिन्दुत्व से जुड़े हैं वो गुरू दक्षिणा कार्यक्रम का समर्थन करेंगे। संघ विचारधारा कभी भी हिन्दुत्व का विरोध नहीं करती है और हर बात को सियासी नजरिये से देखा जाना खराब बात है। यह कार्यक्रम अभी हुआ है और आगे भी होगा। इसे सियासी चश्मे से ना देख जाए।
ना बसपा से दूरी और ना बसपा छोड़ रहा हूं
संघ के गुरू दक्षिणा कार्यक्रम का उनके स्कूल में आयोजन और भाजपा नेताओं के कार्यक्रम में मौजूदगी को लेकर जब ये पूछा गया कि क्या बसपा से दूरी बन रही है तो केके शुक्ला ने कहा कि ना तो बसपा से कोई दूरी है और ना ही मैं बसपा छोड़ रहा हूं। ये मामला भाजपा या बसपा का नहीं है। कहीं पुराने रिश्ते भी होते हैं और कहीं हिन्दुत्व की विचारधारा भी है इसलिए इन सब बातों को पॉलिटिकल नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए।
केके शुक्ला ने दिया बसपा को झटका और बसपा ने दिया केके शुक्ला को झटका
(करंट क्राइम)। के के शुक्ला बागी होकर विधानसभा का चुनाव लड़े। भाजपा के फूल को छोड़कर उन्होंने बसपा के नीले हाथी का साथ लिया। एक बड़ा झटका उन्होंने फूल को दिया और जिस डी एम वाले वोट बैंक की उम्मीद पर वो बसपा उम्मीदवार बनकर चुनावी मैदान में उतरे थे उस हाथी का साथी केके शुक्ला के साथ डीएम नहीं बना और केके शुक्ला को बड़ा झटका चुनाव में इसी हाथी से लगा। वो बागी होकर चुनाव लड़े थे। वो भले ही चुनाव में तीसरे नम्बर पर रहे हों। मगर उन्होंने ये मिसाल भी पेश कर डाली कि जब बड़े दल वाले कार्यकर्ता के दिल की न सुने तो कार्यकर्ता बड़ा दिल दिखाकर कुछ बड़ा करने का माद्दा भी रखता है। यहां पर भाजपा का जबरदस्त बूथ नेटवर्क भी अन्य दलों पर भारी पड़ा। लेकिन केके शुक्ला ने एहसास कराया कि राजनीति में हमेशा खामोश मत रहो और जहां अड़ना है वहां अड़ो और अगर विरोध है तो फिर खुलकर लड़ो। 2022 के चुनाव का जब भविष्य में जिक्र होगा तो उसमें केके शुक्ला के नाम का भी जिक्र भी तो होगा।
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